अर्श से फर्श पर पहुंच चुकी कांग्रेस पार्टी के लिए आखिरकार एक अच्छी खबर आई ह|येल यूनिवर्सिटी की तरफ की गई एक नई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मरकज़ में कांग्रेस की सरकार रहते हुए दंगे कम हुए हैं|
इस रिसर्च के मुताबिक 1962 से 2000 के बीच विधानसभा इंतेखाबात में कांग्रेस पार्टी के ज्यादा एमएलए की जीत की वजह से हिंदू-मुस्लिम तशद्दुद में कमी देखी गई|
इस रिसर्च में “Do parties matter for ethnic violence? Evidence from India” टाइटल से लिखे गए एक मज़मून में लिखा गया है कि एक अंदाज़े के मुताबिक एक अकेले कांग्रेस के एमएलए के जीतने पर उस विधानसभा हल्के में दंगों के इम्कानात में 32 फीसद तक की कमी देखी गई| जब कांग्रेस को सभी इलेक्शन में हार का सामना करना पड़ा उस वक्त दंगों में 10 फीसद की बढ़ोत्तरी देखी गई. यानी 998 दंगों के मुकाबले में मुल्क में 1,118 दंगे हुए|
जबकि दंगों में मरने वालों की तादाद में 46 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई. 30,000 की जगह 43,000 लोगों ने दंगो में अपनी जान गंवाई| इस नतीजे पर पहुंचने के लिए येल के Researcher ने हिंदू-मुस्लिम दंगों के आंकड़ों का तजज़िया किया| 1962 से 2000 के बीच 17 रियासतो के विधानसभा इंतेखाबात नतीजे और 315 जिलों के डेमोग्राफिक डाटा का इस्तेमाल किया| इसी से पता चला कि कांग्रेस पार्टी के एमएलए के इक्तेदार में रहते हुए फिर्कावाराना दंगों में कमी आई|
ताजा मरदुमशुमारी के मुताबिक हिंदुस्तान की कुल आबादी में तकरीबन लगभग 80 फीसद हिंदू हैं, जबकि मुल्क में सबसे बड़े अक्लीयती तब्का मुसलमानो की आबादी तकरीबन 13 फीसद है|
कांग्रेस के राज में कम फिर्कावाराना दंगे के लिए इस रिसर्च में खास तौर पर तीन वजुहात को दिखाया गया है-
कांग्रेस ने बड़ी तादाद में मुस्लिम वोटों को कम से कम महफूज़ कर लिया है. मुस्लिम फिर्के की ताईद के लिए भी कांग्रेस इंतेखाबी हौसला अफ्ज़ाई का काम करती है|
कांग्रेस पार्टी मरकज़ और रियासत दोनों में सालों तक इक्तेदार में रही है. शायद मज़हबी दंगो के असरात की वजह से ही कांग्रेस की गवर्नेंस साख कम भी हुई है|
हिंदू कैंडिडेट के ज्यादा सपोर्ट की वजह से भी हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई बढ़ सकती है और शायद इस वजह से भी कांग्रेस पार्टी के वोट की बुनियाद में कमी हुई है|
इस रिसर्च में आगे लिखा गया है कि आंकड़ों से पता चलता है कि इक्तेदार मे रहते हुए कांग्रेस पार्टी के लीडरों को हिंदू-मुस्लिम तशद्दुद रोकने के लिए दोनों तरफ से बराबर दवाब झेलना पड़ सकता है|
हालांकि मुहक्केकीन ( Researcher) का कहना है कि ये आंकड़े कुछ लोगों को खासकर कांग्रेस को चौंका सकते हैं क्योंकि मुसलसल कांग्रेस को मुल्क में कई दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है, खासकर 1984 के सिक्ख दंगों के लिए|
इस रिसर्च की शुरुआत रिसर्चर ने हिंदू-मुस्लिम दंगे का पर्दा उठा कर की है और ‘कांग्रेस पार्टी की इक्तेदार मुखालिफ लहर के औसत के असर’ का तजजिया भी किया है| इस स्टडी में सिर्फ एमएलए का तजज़िया किया है क्योंकि एमएलए मुकामी सियासी और सामाजी नेटवर्क में नोडल वाके में होते हैं|