काम का आग़ाज़ और समाजी बाइकोट

रसूल ए अकरम स.व. ने अपने काम का आग़ाज़ खु़फ़ीया तौर पर किया और सब से पहले अपने क़रीबी दोस्तों, रिश्तेदारों को तब्लीग़ की और बाद में फिर शहर के अंदर और मुज़ाफ़ात में आम लोगों को भी अल्लाह का पेग़ाम पहुंचाना शुरू कर दिया। आप स.व. लोगों से एक ख़ुदा, रोज़ क़ियामत और आख़िरत पर ईमान लाने का मुतालिबा फ़रमाते और लोगों को ग़रीबों और मोहताजों की मदद की तल्क़ीन करते। आप स.व. ने वही के ज़रीया नाज़िल होने वाले क़ुरान को ना सिर्फ तहरीरी शक्ल में महफ़ूज़ करने का एहतिमाम किया, बल्कि सहाबा किराम (रज़ी.) को उसे हिफ़्ज़ करने का भी हुक्म दिया और ये सिल्सिला आप स.व. की पूरी हयात तय्यबा में जारी रहा, क्योंकि क़ुरान का नुज़ूल एक ही बार नहीं हुआ, बल्कि थोड़ा थोड़ा करके २३ बरस तक नाज़िल होता रहा।

हुज़ूर अकरम स.व. पर ईमान लाने वालों की तादाद बतदरीज बढ़ती चली गई, लेकिन जूं जूं मुशरिकाना अक़ाइद के ख़िलाफ़ काम्याबी का दायरा वसीअ होता गया, उन लोगों की तरफ़ से अहल इस्लाम की मुख़ालिफ़त भी इसी शिद्दत से बढ़ती गई, जो अपने बाप दादा के दीन को छोड़ने के लिए तैयार ना थे। हत्ता कि कुफ़्फ़ार मक्का रसूल अल्लाह स.व. और आप स.व. के पैरोकारों को जिस्मानी तकालीफ़ पहुंचाने से भी बाज़ ना आते। मज़ालिम का सिलसिला बढ़ता गया। अल्लाह और इस के रसूल स.व. के मानने वालों को शदीद गर्मी में नंगे बदन तप्ती रेत पर लिटाया जाता। इन के जिस्म गर्म लोहे से दागे़ जाते और हाथ पेर‌ ज़ंजीरों में जकड़कर डाल दिया जाता। बाज़ सख़्तियों की ताब ना लाकर मौत से हमकिनार हो गए, मगर उन्हों ने अल्लाह के दीन को ना छोड़ा। जब ज़ुल्म और ज़्यादतियां हद से बढ़ गईं तो आप स.व. ने अपने पैरोकारों को मक्का छोड़कर हब्शा (अबीसीनिया आज का एरीटीरया) हिज्रत की हिदायत दी कि वो एसा मुल्क हे, जहां एक आदिल शख़्स हुक्मराँ हे और जिस की सलतनत में किसी पर ज़ुल्म नहीं होता (इबन हिशाम) आप स.व. की हिदायत पर अमल करते हुए कई दर्जन मर्द और औरतें हब्शा चले गए। इन लोगों के बच निकलने पर कुफ़्फ़ार का गेज़-ओ-ग़ज़ब उरूज पर पहुंच गया और पीछे रह जाने वालों पर ताज़ीर-ओ-ताज़ीब का सिलसिला मज़ीद दराज़ हो गया।
हुज़ूर अकरम स.व. ने अपने दीन का नाम इस्लाम रखा, जिस का मत्लब है अपने आप को अल्लाह की रज़ा के सामने झुका देना। इस की दो नुमायां ख़ुसूसीयात हैं:

(१) दीन और दुनिया (रुहानी और जिस्मानी मुआमलात) में तवाज़ुन। अल्लाह ताला की अता कर्दा नेमतों से मुकम्मील हज़ (फ़ायदा) उठाने की इजाज़त (क़ुरान:७।३२) और इस के साथ साथ हर फ़र्द पर अल्लाह की तरफ़ से जो फ़राइज़ आइद किए गए हे, उन की मुकम्मील अदायगी, मसलन नमाज़, रोज़ा, ज़कात और दूसरे अरकान-ए-इस्लाम। इस्लाम को तमाम लोगों का दीन क़रार दिया गया ना कि ख़ास ख़ास अफ़राद का हे

(२) इस्लाम में किसी किस्म की ऊंच नीच नहीं, तमाम मुसल्मान भाई भाई हे और तमाम बराबर हे। नसल, तबक़ा या ज़बान की बिना पर किसी को कोई बरतरी हासिल हे ना इम्तेयाज़। बरतरी सिर्फ इस बुनियाद पर हे कि कौन ज़्यादा परहेज़गार यानी कौन ज़्यादा अल्लाह से डरने वाला है। (क़ुरान:४९।१३)

जब बड़ी तादाद में मुसल्मान हब्शा (अबीसीनिया) हिज्रत कर गए तो मुशरिकीन मक्का ने रसूल अल्लाह स.व. के क़बीला से मुतालिबा किया कि वो मुहम्मद (स.व.) से अपना ताल्लुक़ ख़त्म‌ करदें और उन्हें बाग़ी क़रार दे कर उन के हवाले करदें, ताकि वो आप स.व. को सज़ा दे कर आप स.व. का काम तमाम कर्दें। ताहम बनूहाशिम क़बीला के तमाम अफ़राद ने चाहे वो मुसल्मान थे या ग़ैर मुस्लिम, मुशरिकीन का ये मुतालिबा मुस्तर्द कर दिया (इबन हिशाम) जिस पर कुफ़्फ़ार मक्का ने बनूहाशिम के मुकम्मिल समाजी मुक़ातआ का फ़ैसला किया, जिस के तहत अहल शहर को पाबंद कर दिया गया कि वो बनू हाशिम से कलाम करेंगे ना ही किसी किस्म का कोई लेन देन करेंगे। हर किस्म के रिश्ते नाते करने की भी मुमानअत कर्दी गई। इस बाईकॉट में मक्का के मुज़ाफ़ात में आबाद क़ुरैश मक्का के हलीफ़ क़बाइल भी जो अहाबीश कहलाते थे, शामिल हो गए।

बाईकॉट के मुतास्सिरीन में बच्चे, ओरतें, नातवां बूढ़े, बीमार सब ही शामिल थे। सख़्तियों की ताब ना लाकर बाज़ ने जान देदी, ताहम कोई भी शख़्स हुज़ूर अकरम स.व. को काफ़िरों के हवाले करने पर तैयार ना हुआ। सिर्फ आप स.व. के चचा अबूलहब ने ख़ानदान से बग़ावत की और बाईकॉट करने वालों का साथ दिया।

बाईकॉट और मज़ालिम के इस सिल्सिले को जब तीन साल गुज़र गए, जिस के दौरान महसूरीन को दरख़्तों के पत्ते और चमड़ा भी उबाल कर खाना पड़ा। अहल ए मक्का में से कुछ निसबतन नरम दिल लोगों ने इस के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की और ग़ैर मुंसिफ़ाना पाबंदीयां ख़त्म‌ करने का मुतालिबा किया। इसी दौरान एक रोज़ हुज़ूर अकरम स.व. ने ख़बर दी कि बाईकॉट के लिए मुशरिकीन ने जो मुआहिदा तहरीर किया था और जो बैतुल्लाह में लट्काया गया था, उसे दीमक ने खा लिया हें। जब देखा गया तो ये बात दरुस्त निकली। मुआहिदा पर अल्लाह और मुहम्मद (स.व.) के बाबरकत नामों के सिवा सब कुछ दीमक ने चाट लिया था।

इस पर बाईकॉट के हामी तन्हा रह गए और मुक़ातआ की पाबंदीयां ख़त्म‌ करना पढी और बनू हाशिम तीन साल की महसुरी से आज़ाद हो गए, ताहम सख़्तियों की तिवालत ने आप स.व. की ग़मगुसार अहलिया हज़रत ख़दीजा (रज़ी.) और आप के चचा अबूतालिब की सेहत पर बहुत बुरा असर डाला और वो इस के बाद जल्द ही यके बाद दीगरे आप स.व. को दाग़ मुफ़ारिक़त दे गए, जिस के बाद आप स.व. का मुशरिक चचा अबूलहब क़बीला का सरदार बनने में काम्याब हो गया। (सीरत, इबन हिशाम)