कारवाँ कुलसूम पूरा की दो क़ुतुब शाही मसाजिद पर ग़ैर मुस्लिमों का क़बज़ा

अब्बू एमल हम ने पिछले तीन महीनों में मुसलसल ग़ैर आबाद मसाजिद की तफ़सीलात तस्वीरों और मुकम्मल वक़्फ़ रिकार्ड के साथ शाय की थीं जिन का ख़ातिर ख़वाह फ़ायदा भी सामने आचुका है। मसाजिद अल्लाह पाक का घर हैं जिन का तहफ़्फ़ुज़ और आबादकारी हर मोमिन का दीनी फ़रीज़ा है। इस लिए हम ने अपनी मुहिम ख़तम नहीं की, हमारी जानिबसे होनूज़ जद्द-ओ-जहद जारी है।

जब हम वक़्फ़ बोर्ड पहुंचे और वक़्फ़ की गज़्ट की वर्क़ गरदानी की तो हमें कारवाँ, कुलसूम पूरा के चिकि पहलवान की दो मसाजिद का तज़किरा मिला, मगर ताज्जुबख़ेज़ बात ये है कि जब वक़्फ़ रिकार्ड के मुताबिक़ हम ने कुलसूम पूरा मुहल्ला का सर्वे किया तो हमें किसी एक मस्जिद का भी नाम-ओ-निशान तक नहीं मिला।

बार बार की कोशिश के बावजूद मायूसी ही हमारे हाथ आई लेकिन हमारी आस नहीं टूटी, ख़ुदा पर ईमान और अपनी मेहनत पर यक़ीन रखते हुए सई (कोशिश) जारी रखी। लिहाज़ा दो में से एक मस्जिद का पता बड़ी मुश्किल से हाथ आया। हमें मालूम हुआ कि एक मस्जिद किसी ग़ैर मुस्लिम के क़बज़ा में है और इस के मकान के अंद्र मस्जिद है, हम इस मकान तक पहुंचे।

मकान नंबर 13-6-586/5/2 और मालिक मकान का नाम मलीश है, इस ने इंतिहाई ख़स्ता हालत में क़दीम क़ुतुब शाही मस्जिद को अपने घर में छिपा रखा है। हम जब इस के घर जा धमके तो हमें देख कर वो सटपटा या और ख़फ़गी का इज़हार किया और बड़ी मुश्किल से मस्जिद की तस्वीर लेने की इजाज़त दी। हम ने पूरी मस्जिद का मुआइना किया। मस्जिद इंतिहाई बोसीदा-ओ-ख़स्ता हालत में और अंदर से बिलकुल काली पड़ गई है।

मालूम करने से पता चला कि एक दिन पहले इस के घर में कोई तक़रीब थी जिस में इस ने मस्जिद की महिराब के पास ही पकवान किया था जिस के सबब पूरी मस्जिद काली होगई थी।इस ने बताया कि ये मस्जिद 20 साल से मेरे क़बज़ा में है और वो हम से बार बार यही सवाल करता रहा कि आख़िर 20साल के तवील अर्सा के बाद इस मस्जिद में आने की वजह किया है?।

इस ने कहा कि इस मुहल्ला में भी कसीर तादाद में मुस्लमान रहते हैं लेकिन आज तक मस्जिद के बारे में कोई पूछने तक नहीं आया, आज आप क्यों आए हैं?। हम ने बताया कि शहर की जुमला ग़ैर आबाद क़दीम मसाजिद को मंज़रे आम पर लाने का सिलसिला चल रहा है, इसी की एक कड़ी के तौर पर हमारा आप तक और आप के घर में मौजूद इस क़ुतुब शाही मस्जिद तक आना हुआ, और ये मस्जिद भी हम इंशाअल्लाह तस्वीर और वक़्फ़ रिकार्ड के साथ जल्द ही मंज़रे आम पर लाईंगे।

क़ारईन! अल्लाह पाक की मदद और इस का करिश्मा देखिए कि यही ग़ैर मुस्लिम इस के पड़ोस में मौजूद दूसरी मस्जिद तक रसाई का भी सबब बना क्योंकि इसी के ज़रीया मालूम हुआ कि यहां आस पास में एक और मस्जिद किसी ग़ैर मुस्लिम के क़बज़ा में है। इस ने हमारी जुर्रत और इक़दाम पर ग़ुस्सा होते हुए और अपने जुर्म को हल्का करने के लिए फ़ौरन कहा फिर मेरे पड़ोसी के घर में जो मस्जिद है वहां जाकर इस का मुशाहिदा क्यों नहीं करते, उस की तस्वीर क्यों नहीं लेते, मेरे ही घर में क्यों आए हो।

तो हम ने फ़ौरन हैरत से पूछा कि किस घर में मस्जिद है, ज़रा हमारे साथ आकर बताईए, हमारा कुछ तआवुन कीजिए, तो इस का साफ़ जवाब था कि जिस तरह तलाश करते करते मेरे घर तक पहुंचे हो, जाव इसी तरह तलाश करलो ये कहते हुए इस ने अंदर से अपने घर का दरवाज़ा बंद करलिया। आधा घंटा की मेहनत रंग लाई और दूसरी मस्जिद भी आसानी से हम को मिल गई। इस वक़्त हमारी ख़ुशी की इंतिहा मत पोछीए।

जब हम मस्जिद की ज़यारत के लिए अंदर दाख़िल हुए तो देखा कि मस्जिद इंतिहाई ख़स्ता और बोसीदा हालत में खड़ी है बिलकुल एक बूढ़ी माँ की तरह परागंदा हालत में अपने ज़ुलम की दास्तान सुना रही है और अपने बच्चों का बरसहा बरस से खड़ी इंतिज़ार कररही है। मुसलमानो! अब भी वक़्त है, अपनी आँखें खोलो, और उन मसाजिद की आबादकारी के लिए कमर बस्ता होजा, आज भी इन मसाजिद के दर-ओ-दीवार, उन की महिराब, उन की सफ़ें तुम्हारा और तुम्हारे सजदों का इंतिज़ार कररहे हैं।इस मस्जिद के अंदर हम ने देखा कि कपड़े सुखाने केलिए एक लंबा तार बांधा हुआ है जिस पर कपड़े भी फैले हुए हैं।

जैसे ही हम ने तस्वीर लेने की कोशिश की और कैमरा सँभाला, कुछ औरतें तेज़ी से आएं और कपड़े हटाने शुरू करदिए, साथ ही साथ तल्ख़ लहजे में हम पर बरस पड़ीं कहने लगीं कौन हो तुम, हमारे घर में आने की तुम्हें किस ने इजाज़त दी है? हम ने ख़ामोशी में नजात समझी और तस्वीर लेकर फ़ौरन बाहर आगए क्योंकि इस मुल्क में औरतों ही का क़ानून चलता है। ये मस्जिद जिस मकान में है इस का नंबर है 13-6-192/1, मज़कूरा बाला दोनों मसाजिदकी वक़्फ़ बोर्ड की तफ़सीलात आख़िर में मुलाहिज़ा करें। इस मस्जिद के अक़ब में बिलकुल इस से मुत्तसिल हुकूमत ने एक कम्यूनिटी हाल तामीर किया है जो मुकम्मल मस्जिद की अराज़ी पर क़ायम है।

दिलचस्प बात ये है कि वक़्फ़ रिकार्ड के मुताबिक़ इन दो मसाजिद के तहत 18हज़ार 147 मुरब्बा गज़ ज़मीन थी। अब सूरत-ए-हाल ये है कि मस्जिद का अपना वजूद ही ख़तरा में है। चे जाय के इस के तहत अराज़ी पर गुफ़्तगु की जाय। मस्जिद की मुकम्मल अराज़ी पर तक़रीबन मुहल्ला आबाद है।

सितम बालाए सितम ये कि मस्जिद पर भी बरसों से क़बज़ा किए बैठे हैं, इस का नाम-ओ-निशान भी दरपर्दा मिटाने की नापाक कोशिश जारी है।ग़ैर क़ौम के अंदर अपने मज़हब और मज़हबी और तारीख़ी आसार के तईं इतनी बेदारमग़ज़ी और फ़िक्र पाई जाती है कि वो मज़हब को फ़रोग़ देने में पेश पेश रहते हैं बल्कि क़ानून और हदूद भी पार कर जाते हैं। जबकि उन के पास ना कोई सही मज़हब है और ना काबिल शुमार क़दीम और तारीख़ी विरसा है।

और हमारी क़ौम मुस्लिम और इस के नौजवानों का हाल ये है कि उन पर मग़रबियत का भूत इस क़दर छागया कि उन्हों ने अपने इस्लामी इक़दार, रवायात और अपने इस्लाफ़ के नुक़ूश-ओ-बाक़ियात बिलकुल पसेपुश्त डाल दिए। क़ारेईन! हैदराबाद जो इस्लामी तहज़ीब-ओ-सक़ाफ़्त का शहर है, ये सरज़मीन उल्मा-ओ-सोफिया की ख़ाबगाह है।

आज भी इस की ख़ाक के पर्दे में हज़रात युसुफ़ैन ऒ जैसे ख़ुदा रसीदा बुज़्रगान-ए-दीन – आराम कररहे हैं। इस्लाम की अज़मत रफ़्ता की ताबिंदा पहचान जहां 800 साल तक इंतिहाई अदल-ओ-इंसाफ़ के साथ मुस्लमानों ने हुक्मरानी की। ये मीनारों का शहर , दरगाहों का शहर, मदारिस-ओ-मसाजिद का शहर, दाढ़ी टोपी वालों का शहर, पूरी दुनिया में जहां कहीं इस शहर का ज़िक्र होता है तो यहां के मुस्लमान, इस्लामी इक़दार-ओ-रवायात औरतारीख़ी इमारतें ज़रूर ज़ेर-ए-बहिस आती हैं।

ऐसे शहर में इतनी कसरत से मसाजिद का गेरा बाद होना और यही नहीं बल्कि ग़ैर मुस्लिमों के क़बज़ा में होना, जहां उन के एहतिराम की धज्जियां उड़ाई जा रही हूँ और उम्मत मुहम्मदिया का हनूज़ ख़ाब-ए-ग़फ़लत में पड़े रहना बाइस तशवीश ही नहीं बल्कि क़हर ख़ुदावंदी को दावत देना है। 20साल के तवील अर्सा से कारवाँ, कुलसूम पूरा की ये दो मसाजिद ग़ैरों के क़बज़ा में हैं और हमारी लापरवाही का आलम ये है कि हमें इस का इलम ही नहीं।

जबकि कारवाँ हैदराबाद के क़दीम तरीनबल्कि अव्वलीन महलों में से एक है, जहां मुस्लमानों की भी कसीर आबादी है। अपनेइलाक़ा में मस्जिद के साथ ये सुलूक होना इंतिहाई श्रम की बात है। इतने अर्सा से ये मसाजिद ग़ैर मुस्लिमों के क़बज़ा में हैं और वक़्फ़ बोर्ड को पता भी नहीं। मस्जिद के तहत 18147 मुरब्बा गज़ ज़मीन पर पूरा मुहल्ला क्यों और कैसे आबाद हुआ।

वक़्फ़ बोर्डफ़ालिजज़दा उज़ू की तरह होगया जिस में ना कोई हरकत है और ना वो किसी काम का बाक़ी रहा। आख़िर मसाजिद और उन के तहत इतनी वसीअ अराज़ी पर क़ाबज़ीन के ख़िलाफ़ हनूज़ वक़्फ़ बोर्ड ने कोई पेशरफ़्त क्यों नहीं की। क्या ये इस के फ़राइज़ में से नहीं है। अब वक़्फ़ बोर्ड की ज़िम्मेदारी है कि वो जल्द अज़ जल्द इन मसाजिद को अपने क़बज़ा में लेकर आबाद करे, और उन मसाजिद के तहत राज़ी पर क़ाबज़ीन के ख़िलाफ़ नोटिस जारी करे।

वर्ना कल क़ियामत के दिन ख़ुदा के रूबरू ये जवाबदेह होंगे। मज़कूरा बाला दोनोंमसाजिद की वक़्फ़ तफ़सीलात इस तरह हैं: हैदराबाद 1088/ उन के तहत एक क़ब्रिस्तान, पता : चकी पहलवान की दो मसाजिद कुलसूम पूरा, सीरियल नंबर 212 कारवाँ, वार्ड नंबर 13, जुमला अराज़ी 18,147 मुरब्बा गज़, गज़्ट नंबर 12-A ऐस वन। 1855। गज़्ट तारीख़ या फाईल नंबर 21-03-85 । सफ़ा नंबर 21। ये मुकम्मल तफ़सीलात वक़्फ़ रिकार्ड से ली गई हैं।