नुमाइंदा ख़ुसूसी-काग़ज़ात के मसारिफ़ और ज़ेया वक़्त से बचने के लिए जी एच एम सी और जनरल कौंसल में मुत्तफ़िक़ा फैसला लिया गया था कि बेहतर तरीका से काम की अंजाम दही के लिए हर कारपोरेटर को एक लेयाप टाप और प्रिंटर मुहय्या किया जाना चाहीए चुनांचे हर कारपोरेटर को 35 हज़ार मालियत से ज़्यादा का एक लेयाप टाप और प्रिंटर फ़राहम किया गया था ।
इलावा अज़ीं इंटरनेट की सहूलयात से मुस्तफ़ीद होने के लिए सालाना 9 हज़ार रुपये हर कारपोरेटर के लिए मंज़ूर किए गए थे और फिटिंग चार्जज़ के नाम पर हर एक को 4 हज़ार रुपये भी दीए गए । ये सहूलत जुमला 150 कारपोरेटर और 5 कवावपटेड (Co-opted) मैंबरस को फ़राहम की गई जिस पर 88 लाख 50 हज़ार का जुमला ख़र्च आया ।
लेकिन जदीद तालीम से महरूमी और कंप्यूटर-ओ-लेयाप टाप के इस्तिमाल से ना वाक़फ़ीयत की वजह से अक्सर कारपोरेटर के पास रखे रखाए लेयाप टाप पर गर्द जम गई जिस की वजह से महकमा अपने मक़ासिद में बुरी तरह नाकाम होगया । नीज़ कई एक कार्पोरेटर्स ने अपने बच्चों को इस्तिमाल करने के लिए लेयाप टाप दे दिया और ज़राए से ये बात भी मालूम हुई है कि चंद ने ये लेयाप टाप फ़रोख़त भी कर दिए हैं ।
तक़रीबन कार्पोरेटर्स नान मेट्रिक हैं , कई एक अंग्रेज़ी से नाबलद हैं । बहुत से कंप्यूटर की तालीम से नावाक़िफ़ हैं । जनाब मुहम्मद अबदुल बासित साबिक़ एसटानडिंग मैंबर के मुताबिक़ कई कार्पोरेटर्स एसे हैं जिन्हों ने कभी स्कूल में तालीम ही हासिल नहीं की और बहुत से कंप्यूटर की इबतिदाई मालूमात से ना आश्ना हैं । ओहदेदारों का कहना है कि कारपोरेटरों की अक्सरियत नाख़्वान्दा अफ़राद की है । मज़ीद ये कि बलदी इंतिख़ाबात के लिए किसी तालीमी काबिलियत की शर्त भी नहीं है ।
इंटरनेट से ना वाक़फ़ीयत की वजह से महकमा की जानिब से इरसाल किए जाने वाले ई मेल को चेक ना कर पाने की सलाहियत की बिना पर कई एक मीटिंगों में शिरकत नहीं करते हैं । इन वजूहात की बिना पर फिर साबिक़ की तरह काग़ज़ात के ज़रीया कार्रवाई का ही फैसला किया गया । ज़राए के मुताबिक़ मुक़ामी लोगों को शिकायत है कि इन के कोंस्लर ने कभी उन से ऑनलाइन राबिता करने की कोशिश नहीं की ।
मुग़ल पूरा का बाशिंदा वहाज उद्दीन का कहना है कि कारपोरेटरों ने इस हवाले से कभी शऊर बेदार करने की कोशिश ही नहीं की । उन्हें ऑनलाइन अवाम से राबिता में रहना चाहीए ताकि अवामी शिकायात पढ़ कर हल करने की संजीदा कोशिश की जाय । हैरत की बात है कि 21 वीं सदी जैसे टैक्नालोजी के ताल्लुक़ से इन्क़िलाबी सदी कहा जाता है इस में टैक्नालोजी ने जितनी तरक़्क़ी , शौहरत , मक़बूलियत और हमा गीरी हासिल की है पहले कभी उसे ये हासिल नहीं हुई थी ।
आज का हर बच्चा मोबाईल और कंप्यूटर की तजुर्बा रखता है । फिर सोने पर सुहागा ये कि हैदराबाद को साइबर सिटी कहा जाता है । हिंदूस्तान में जदीद टैक्नालोजी के एतबार से इस का आला मुक़ाम है । यहां के सरकारी हुक्काम के हवाले से अगर कहा जाय कि वो कंप्यूटर से बे बहरा हैं तो ये चिराग़ तले अंधेरा के मुताबिक़ होगा ।
नीज़ आज के तरक़्क़ी याफ़ता दौर में ये भी मुश्किल नहीं है कि चंद रोज़ की मेहनत के बाद कंप्यूटर के हवाले से थोड़ी बहुत मालूमात हासिल करली जाय अगर ये कार्पोरेटर्स अपनी ज़िम्मा दारीयों और फ़राइज़ के हवाले से हस्सास और संजीदा होते तो वो ये बा आसानी करसकते थे जिस के ज़रीया महकमा बलदिया के साथ साथ अवाम को भी इन से रब्त पैदा करने में बहुत सहूलत मिलती ।
और वो आसानी से ऑनलाइन अपनी शिकायात अपने इलाक़ा के मसाइल से मुताल्लिक़ा कार्पोरेटर्स को आगाह कर सकते थे । जिस के बहुत बेहतर नताइज बरामद होते । अवाम को राहत और सुकून हासिल होता । मज़ीद ये कि महकमा की जानिब से तमाम कारपोरेटरों को दीगर रियासतों का सरकारी दौरा करवाया गया था ताकि वहां के नज़म-ओ-नसक़ और तरक़्क़ी से तजुर्बा और सबक़ हासिल किया जाय । इस पर भी बलदिया पर तक़रीबन 50 लाख का बोझ पड़ा था ।
लेकिन इस का भी नतीजा सिफ़र रहा । इस के बाद भी यहां के ना तरीका कार में तबदीली आई और ना ही उन के मामूलात रोज़-ओ-शब में जैसे पहले थे वैसे ही रहे और भारी रक़म ख़र्च करने के बावजूद महकमा अपनी क़दीम रविष पर ही कारबन्द रहा । काबिल-ए-ग़ौर बात ये है कि 88 लाख 50 हज़ार की ख़तीर रक़म जो अवाम से मुख़्तलिफ़ टैक्सों की शक्ल में महकमा बलदिया वसूल करता है चनद कारपोरेटरों की ना अहली की वजह से ये अवामी पैसा सही तरीका पर इस्तिमाल ना होसका ।
ये चूँ कि अवाम का पैसा है लिहाज़ा अवाम को इस हवाले से हस्सास रहने की ज़रूरत है । अख़बारात की इन रिपोर्टों को आसानी से ना लिया जाय कि पढ़ कर अपनी मसरूफ़ियात में मशग़ूल हो कर उसे फ़रामोश कर दिया जाय बल्कि अवाम को हमेशा ज़हन में रखना चाहीए कि इन का पैसा चंद ना अहलों की वजह से कैसे इस्तिमाल होरहा है । ये इंतिहाई अफ़सोसनाक बात है ।।