काली कमान हाई स्कूल की आपा नूर उन्नीसा 10 माह से तनख़्वाह से महरूम

नुमाइंदा ख़ुसूसी
वक़्त किसी का साथ नहीं देता और ये क़ानून क़ुदरत है कि किसी के हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते कई उसे लोगों को हम और आप ने देखा है जिन का कल तक दौलतमंद ख़ुशहाल इज़्ज़त वाले लोगों में शुमार होता था । नौकर चाकर ख़िदमत के लिये उन के अतराफ़ मँडलाया करते थे । रिश्तेदार उन के नाज़-ओ-नख़रे बर्दाश्त करने के लिये हमेशा तय्यार रहा करते थे ।

लेकिन आज उन की हालत देख कर यक़ीन नहीं होता कि कल तक दौलत-ओ-हशमत जाह-ओ-जलाल और लाड-ओ-प्यार के माहौल में पलने वालों के हालात किस क़दर ख़राब होगए हैं । ज़िंदगी गुज़ारने के लिये उन्हें ज़ईफ़ी-ओ-कमज़ोरी के बावजूद सख़्त मेहनत-ओ-जद्द-ओ-जहद से दो-चार होना पड़ रहा है । एसे ही लोगों में एक ज़ईफ़(बूढी) ख़ातून नूर उन्नीसा भी शामिल हैं जो गुज़शता 26 साल से काली कमान हाई स्कूल में साफ़ सफ़ाई का काम अंजाम दे रही हैं और महंगाई के इस दौर में उन्हें माहाना 1600 रुपये की हक़ीर तनख़्वाह हासिल होती है ।

अपने चेहरे नाक-ओ-नक़्शा से नूर उन्नीसा किसी शाही ख़ानदान की रुक्न(सदस्य) लगती हैं । उन्हों ने 25 रुपये माहाना तनख़्वाह पर अपने काम का आग़ाज़ किया था । हद तो ये है कि इस गरीब और हालात की सताई ख़ातून 10 माह की तनख़्वाह से महरूम है । महिकमा तालीमात उस की वजह बजट की कमी बताता है जब कि स्कूल की हैड मिस्ट्रेस पी एल पद्मजा ने बताया कि नूर उन्नीसा अपना काम बड़ी दियानतदारी के साथ करती हैं ।

स्कूल इंतिज़ामीया ने महिकमा को नूर उन्नीसा की तनख़्वाह में ताख़ीर के बारे में लिख दिया है और उम्मीद है कि आइन्दा हफ़्ता मुकम्मल तनख़्वाह मिल जाएगी । नूर उन्नीसा चार लड़कियों और चार बेटों की माँ है तीन बेटियां बेवा होचुकी हैं जब कि एक बेटा इसी स्कूल में वाच मैन की हैसियत से काम करता है । नूर उन्नीसा के शौहर का भी इंतिक़ाल होगया ।

उन्हों ने बताया कि वो बदवेल के जागीरदार की दुख़तर(बेटी) हैं एक वक़्त था कि इन के घर में भी नौकर चाकर हुआ करते थे लेकिन हालात एसे बदले के दो वक़्त की रोटी के लिये साफ़ सफ़ाई का काम करना पड़ रहा है । नूर उन्नीसा स्कूल में साफ़ सफ़ाई और पानी का इंतिज़ाम करती हैं और उन ख़िदमात की अंजाम दही के बाद वक़्त मिलता है तो स्कूल के अहाता में चॉकलेट बिस्कुटस वगैरह फ़रोख़त करती हैं ।

इस से रोज़ाना गुज़र बसर का इंतिज़ाम करने में मदद मिल जाती है । नूर उन्नीसा का जो बेटा काली कमान हाई स्कूल में वाच मैन की हैसियत से तक़रीबन 5 बरसों से काम कर रहा है इस की तनख़्वाह सिर्फ़ 1000 रुपये है । इस ज़ईफ़(बूढी) ख़ातून ने बताया कि काली कमान हाई स्कूल 1933 से क़ायम है जो कोटला आलीजाह में काम करता था बाद में दार-उल-उलूम हाई स्कूल की इमारत में मुंतक़िल हुआ इस के बाद ताड़बन की एक किराया की इमारत में उसे शिफ़्ट किया गया जब कि गुज़शता 12 साल से मोची कॉलोनी ताड़बन में ली गई ज़ाती इमारत में चलाया जा रहा है । इस स्कूल में 400 स्टुडेंट्स तालीम हासिल कर रहे हैं ।

तलबा नूर उन्नीसा को बहुत चाहते हैं और आ पा माँ कह कर मुख़ातब करते हैं । ज़ईफ़(बूढी) नूर उन्नीसा का कहना है कि उन्हें बी पी है घुटनों में मुसलसल दर्द रहता है लेकिन महंगाई गरीबों के लिये तमाम बीमारियों से बड़ी और ख़तरनाक बीमारी है । यही वजह है कि मुझे इस उम्र में भी काम करना पड़ता है । इस ख़ातून ने दौरान गुफ़्तगु राक़िम उल-हरूफ़ से ही उल्टा सवाल कर दिया कि अगर महंगाई के इस दौर में किसी गरीब को दस दस माह की तनख़्वाह ना मिले या उसे रोक दी जाय तो घर कैसे चलेगा ।

नूर उन्नीसा जिन के चेहरे से ख़ुशहाल माज़ी वाज़ेह तौर पर झलक रहा था । पुरानी यादें ताज़ा करते हुए बताया कि चूँकि उन के वालिद जागीरदार थे इस लिये उन की इबतिदाई ज़िंदगी बड़ी आराम से गुज़री , उन के वालिद उन्हें अज़ीम पाशाह कह कर मुख़ातब किया करते थे । नूर उन्नीसा की हालत-ए-ज़ार देख कर हमें अफ़सोस हुआ कि एक गरीब ख़ातून दस माह की तनख़्वाह से महरूम होने के बावजूद मेहनत किये जा रही हैं और महिकमा की बेहिसी-ओ-मुजरिमाना ग़फ़लत का ये हाल है कि उसे नूर उन्नीसा के दर्द-ओ-अलम का कोई एहसास नहीं ,

तीन बेवा बेटियों की माँ का गुज़र बसर एक ज़ईफ़(बूढी) ख़ातून के लिये कितना दुशवार गुज़ार है इस का तसव्वुर कर के ही दिल काँप जाता है । हुकूमत और महिकमा तालीम को नूर उन्नीसा की बेबसी-ओ-मजबूरी पर तवज्जा देते हुए उन की दस माह से रुकी हुई तनख़्वाह को फ़ौरी जारी करना चाहीए । अगर 10 माह की जुमला तनख़्वाह का हिसाब लगाया जाय तो सिर्फ 16000 रुपये की मामूली रक़म बनती है जो कि एक टीचर की माहाना तनख़्वाह से भी कम होगी ।

स्कूल की हेड मिस्ट्रेस ने नूर उन्नीसा से इज़हार-ए-हमदर्दी करते हुए बताया कि वो और टीचर्स इस ख़ातून की मदद की भरपूर कोशिश करते हैं । उन्हों ने हमें बताया कि काली कमान हाई स्कूल का सब से बड़ा मसला ये है कि अब तक बाउंड्रीवाल तामीर नहीं की गई ओ दूसरा अहम मसला ये है कि अब तक तेलगू टीचर की तैनाती अमल में नहीं लाई गई ।

महिकमा तालीमात को नूर उन्नीसा जैसी ज़ईफ़(बूढी) ख़ातून की रुकी हुई तनख़्वाह फ़ौरी जारी करनी चाहीए जब कि स्कूल में तेलगू टीचर का तक़र्रुर करते हुए तलबा-ए-की मदद करना भी बहुत ज़रूरी है ।।