काश! में ख़ाक होता

जिस रोज़ रूह और फ़रिश्ते पर बांध कर खड़े होंगे कोई ना बोल सकेगा, बजुज़ इस के जिस को रहमान इज़न दे और वो ठीक बात करे। ये दिन बरहक़ है, सो जिस का जी चाहे बना ले अपने रब के ज्वारे रहमत में अपना ठिकाना। बेशक हम ने डरा दिया है तुम्हें जल्द आने वाले अज़ाब से। इस दिन देख लेगा हर शख़्स (उन अम्लों को) जो इस ने आगे भेजे थे और काफ़िर (बसद हसरत) कहेगा काश! में ख़ाक होता। (सूरा अलनबा। ३८ ता ४०) रूह से मुराद अक्सर मुफ़स्सिरीन के नज़दीक जिब्रईल अमीन अलैहि अस्सलाम हैं। हज़रत इबन अब्बास रज़ी अल्लाह अनहो से मर्वी है कि जिब्रईल अलैहि अस्सलाम बारगाह ख़ुदावंद ज़ूलजलाल में दस्त बस्ता खड़े होंगे और मारे ख़ौफ़ के काँप रहे होंगे और उन की ज़बान पर ये जारी होगा लाअला इल्ला अंता …….। हज़रत जिब्रईल अलैहि स्सलाम के इलावा दीगर मलाइका भी सफ़ बांधे हाज़िर होंगे। जलाले ख़ुदावंदी का ये आलम होगा कि सब चुप, दमबख़ुद, किसी में लब हिलाने की भी हिम्मत ना होगी। अलबत्ता वो नफ़ूस क़ुदसिया जिन को इज़न गोयाई मिलेगा, वो अपने रब के हुज़ूर अपनी गुज़ारशात और अपनी इल्तिजाएं पेश कर रहे होंगे। इमाम बुख़ारी ने अपनी सही हदीस शफ़ाअत बड़ी मुफ़स्सिल दर्ज की है, जिस का ख़ुलासा पेशाख़िदमत है। काफ़ी अर्सा सब लोग ख़ामोशी से सर झुकाए खड़े रहेंगे और पसीनों मैं शराबोर होंगे। कोई टखनों तक पसीने में होगा, कोई घुटनों तक, कोई कमर तक, कोई गर्दन तक पसीने में डूबा होगा। आख़िर सब आदम अलैहि अस्सलाम के पास हाज़िर होकर शफ़ाअत के लिए दरख़ास्त करेंगी। आप अपनी माज़ूरी ब्यान करेंगे। चुनांचे मुख़्तलिफ़ अनबया-ए-किराम के पास बारी बारी हाज़िर होंगी, लेकिन नाउम्मीद होकर लौटेंगी। आख़िर में जब हज़रत ऐसी अलैहि अस्सलाम के पास जाऐंगे तो आप जवाब देंगे कि मैं ख़ुद तो शफ़ाअत की जुर्रत नहीं करसकता, अलबत्ता तुम्हें एक ऐसी हस्ती का पता बताता हूँ, जिस के पास से कोई साइल नामुराद वापिस नहीं लौटता। वो सब को बारगाह मुहम्मद मुस्तफ़ा अलैहि वाली आला त्यब -की तरफ़ जाने का हुक्म देंगे। जब दर दर की ठोकरें खाने के बाद सब मख़लूक़ शिकस्ता ख़ातिर, परागंदाहाल वहां जाएगे और शफ़ाअत की दरख़ास्त करेगे। इन दरख़ास्त करने वालों में वो लोग भी शामिल होंगे, जो आज बड़े तमतराक़ से शफ़ाअत मुस्तफ़वी का इनकार करते हैं और अगर इनकार नहीं करसकते तो इस की ऐसी तावील करते हैं और इस के साथ ऐसी ख़ुद साख़ता शराइत का इज़ाफ़ा करते हैं कि शान मुस्तफ़वी का ज़हूर नहीं होता। वो लोग भी इस दिन हाज़िर होंगे। हुज़ूर सरवर आलम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम सब की फ़र्याद सुन कर फ़रमाएंगे कि मैं तुम्हारी शफ़ाअत करूंगा, हाँ मुझे ये मंसब हासिल है कि मैं तुम्हारी शफ़ाअत करूं। चुनांचे हुज़ूर अर्श अलहि के क़रीब जाकर सजदा रेज़ हो जाऐंगे और अपने परवरदिगार की हमद-ओ-तौसीफ करेंगे। अर्श वाला फ़रमाएगा ए पैकर हर ख़ूबी-ओ-ज़ेबाई! अपना सर मुबारक तुम मांगते जाओ, में देता जाउं गा। तुम शफ़ाअत करते जाओ, मैं शफ़ाअत क़बूल करता जाउं गा। इज़न शफ़ाअत से शरफ़ याब होकर मुक़ाम महमूद पर जलवा फ़िगन होंगी। लौह-ए-अलहम्द (हमद का पर्चम) दस्त मुबारक में झूम रहा होगा और जो आएगा सब को पनाह देते जाएंगे। आख़िर में फिर बता दिया कि इस दिन का आना बरहक़ है, इस में शक-ओ-शुबा की कोई गुंजाइश नहीं, जिस का जी चाहे आज इस रास्ता पर चल खड़ा हो, जो इस को इस के रब की तरफ़ ले जाता है। कुफ़्फ़ार के आमाल का कच्चा चट्ठा उन के सामने खोल कर रख दिया जाएगा। इस वक़्त सारे नशे हिरन हो जाएंगी, सारी नख़वतें ख़ाक में मिल जाएंगी, बसद हसरत-ओ-यास कहेगा काश! में मिट्टी में मिल कर मिट्टी हो गया होता और मुझे ये रोज़ बद देखना ना पड़ता। बाअज़ उल्मा ने अलका फ़र्र से मुराद इबलीस लिया है। इस रोज़ जब औलाद-ए-आदम के नेको कारों की ये इज़्ज़त अफ़ज़ाईआं देखेगा तो कहेगा कि काश! मुझे आग से पैदा ना किया जाता और इस की वजह से मग़रूर होकर मैं गुमराह ना होता। काश! मेरी तख़लीक़ मिट्टी से होती, में अपने रब के हुज़ूर अजुज़-ओ-इनकिसारी इख़तियार करता और आज इस रुसवाई से दो चार ना होता।