काहिरा: अरबी कैलीग्राफी में भारत के मुक्तर अहमद ने जीता अवार्ड

भारत के अरबी भाषा के कैलिग्राफर मुक्तर अहमद को काहिरा अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव में अरबी कैलिग्राफी के लिए शीर्ष पुरस्कारों में से एक पुस्कार मिला है। पंद्रह अरब और दूसरे देशों के 115 प्रतिभागियों के बीच से मुक्तर को द्वितीय पुरस्कार के लिए चुना गया।

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काहिरा ओपन हाउस की आर्ट गैलरी में आठ दिनों के इस महोत्सव में अरबी कैलिग्राफी की सुंदरता को दिखाया गया। यह प्रदर्शनी रविवार को समाप्त हुई।मिस्र सरकार द्वारा आयोजित इस महोत्सव में मिस्र के खालिद मोहम्मद को प्रथम पुरस्कार हासिल हुआ।कई अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में पहचान बना चुके मुक्तर इस सम्मान से काफी खुश दिखे।

मूलत: तेलंगाना से संबंध रखने वाले मुक्तर ने आईएएनएस से बातचीत में पुरस्कार को ‘अल्लाह की नेमत’ बताया। मुक्तर की कलाकृतियां दुनिया की कई मस्जिदों, अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, स्वागत कक्षों और निजी विमानों की कंपनियों में लगी हैं।वह अकेले भारतीय हैं जिन्होंने साल 2003 में इस्तांबुल के आर्गनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन के सेंटर फार इस्लामिक हिस्ट्री, आर्ट एंड कल्चर (आईआरसीआईसीए) से इजाजह (मास्टर डिप्लोमा) हासिल किया। बेंगलुरु में दो दशकों से बसे मुक्तर कहते हैं कि अरबी कैलिग्राफी उनके लिए इबादत के समान है।

वह कहते हैं कि कुरान की आयत और हदीस (पैगंबर मोहम्मद की बातें) लिखना इबादत है। यह काम सवाब-ए-जरिया (लगातार पुण्य) पाने का है।48 वर्षीय मुक्तर भारत में कैलिग्राफी की कला को फिर से जिंदा करना चाहते हैं जिसे कभी यहां राजाओं का संरक्षण मिला हुआ था।तेलंगाना के मेडक जिले के किसान के बेटे मुक्तर वर्तमान में बेंगलुरु के इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-इस्लामिक आर्ट एंड कल्चर में पढ़ाते हैं।मुक्तर कैलिग्राफी की दुबई, शरजाह, अबुधाबी, मदीना, मलेशिया और अल्जीरिया की प्रदर्शनियों में भाग ले चुके हैं।सऊदी अरब में साल 2011 में लगी अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी के दौरान उनकी एक कृति मदीना के गवर्नर ने खरीदी थी।अपने अंतर्राष्ट्रीय कार्यो में उन्होंने अमेरिका के मामोन लुथफी सकाल की मदद ली है। उन दोनों की कलाकृति एक निजी विमान और कनाडा की मस्जिद में भी लगी है।

(साभार: headline24.in)