किरदार की पुख़्तगी की वजह से दुआएं जल्द कुबूल होती हैं

जमादात, नबातात, हैवानात और इंसान सब में यही उसूल कारफ़रमा है कि बीमार अज़ू को ख़त्म करके बाक़ी जिस्म को बचा लिया जाए। ये उसूल फ़ित्रत है, दीन ए इस्लाम चूँकि दीन ए फ़ित्रत है, इसलिए शरीयत में ज़ानी को संगसार करके बाक़ी मुआशरा को बेहयाई के रुहानी मर्ज़ से बचाने का हुक्म दिया गया है।

अवामुन्नास को रजम से वहशत होने की एक वजह मजमा में ज़ानी को संगसार करना है। ये मंज़र सोच कर ही दिल पर दहशत तारी हो जाती है और अगर कोई देख ले तो फिर इसका क्या हाल होगा?। मगर शरीयत का मक़सूद भी यही है कि लोग एक मर्तबा किसी को रजम होता देख लेंगे तो बाक़ी सबकी मस्तियां ख़त्म हो जाएंगी।

हर किसी को गुनाह के बाद अपने अंजाम का अच्छी तरह पता चल जाएगा। ये दीन ए इस्लाम का हुस्न है कि एक ज़मानी को रजम करके बाक़ी मुआशरा को बेहयाई के वायरस से महफ़ूज़ कर लिया। इससे साबित हुआ कि इस्लामी सज़ा वहशियाना नहीं बल्कि मुंसिफ़ाना हैं। मज़लूम की दादरसी होती है और ज़ालिम को ज़ुल्म की सज़ा मिलती है।

रजम के जो ज़ाहिरी फ़वाइद नज़र आते हैं, वो ये हैं कि कोई मर्द किसी औरत को कमज़ोर जान कर, अकेला देख कर या ग़रीब-ओ-बेसहारा समझ कर उसकी इज़्ज़त-ओ-आबरू लूटने की कोशिश नहीं करेगा। इसी तरह कोई औरत किसी मर्द को फांसने के लिए मकर नहीं करेगी।

बेपर्दगी ख़त्म हो जाएगी। कोई औरत जिस्मफरोशी को अपना कारोबार नहीं बनाएगी। लोगों को या नौजवान लड़कों को बेराह रवी का शिकार नहीं बना सकेगी। ना बाज़ार‍ ए‍ हुस्न का कारोबार चल सकेगा। ना ही अमीर इलाक़ों की बड़ी कोठियों में शराब-ओ-शबाब की महफ़िलें मुनाक़िद हो सकेंगी।

मर्द अपनी बीवी पर ज़्यादा तवज्जा दिया करेंगे। बाज़ार में बेपर्दा ख़वातीन दावत गुनाह नहीं दे सकेंगी। ना ही मॉडल लड़कीया को देख कर ख़ावंद अपनी बीवीयों से उचाट होंगे। चोरी छिपे आश्नाईयां करने वाले और करने वालियां ख़त्म हो जाएंगी। याराना और दोस्तीयाँ ख़त्म हो जाएंगी।

कम्पयूटर की चैटिंग ख़त्म हो जाएगी। नौजवान लड़के और लड़कीयों का वक़्त बरबाद नहीं होगा। हंसते बस्ते घरों को उजाड़ने वाले ख़त्म हो जाएंगे। ना कोई मर्द किसी की बीवी को इसके ख़ावंद के ख़िलाफ़ भड़का सकेगा और ना कोई औरत किसी मर्द को अपनी बीवी से बेज़ार कर सकेगी, बल्कि हर शख़्स अपने अपने घर में आराम-ओ-सुकून की ज़िंदगी गुज़ार सकेगा।

ख़ावंद अगर दफ़्तर, दूकान या खेत पर काम करने के लिए चला गया तो कोई उसकी ग़ैर हाज़िरी में उसकी बीवी को घर में अकेला पाकर उसकी इज़्ज़त लूटने की कोशिश नहीं करेगा। बीवी को भी ख़ौफ़ नहीं होगा और ख़ावंद को भी अपनी ग़ैरमौजूदगी में बीवी की फ़िक्र नहीं होगी।

अम्र, गरबा ( गरीबों) की बीवीयों और बेटीयों पर ग़लत नज़र नहीं डालेंगे।अम्र अपनी बीवी के साथ कई कई दाश्ताएं नहीं रख सकेंगे। ये नहीं होगा कि औरत घर किसी का बसाए और दिल में किसी और को बसाए। बिन ब्याही माएं अपने बच्चों को गंदगी के ढेर पर नहीं फेंक सकेंगी।

औरत घर में या सफ़र-ओ-हज़र में अपने आप को महफ़ूज़ समझेगी। अगर यमन से मदीना का सफ़र अकेले भी करेगी तो कोई इसकी जान, इसके माल, इसकी इज़्ज़त-ओ-आबरू की तरफ़ हाथ नहीं उठाएगा। हया और पाक दामनी के माहौल में अल्लाह तआला की रहमतें हर वक़्त बारिश की तरह बरसेंगी।

रिज़्क में बरकत होगी। तलाक़ों की शरह कम हो जाएगी। हर घर मियां बीवी के लिए जन्नत का छोटा सा नमूना बन जाएगा। अगर कोई मर्द किसी औरत को फुसलाने की कोशिश भी करेगा तो वो जवाब नफ़ी में पाएगा और अगर कोई औरत किसी मर्द को फुसलाने की कोशिश करेगी तो वो जवाब में मआज़ अल्लाह! सुनेगी, यानी मैं अल्लाह तआला की पनाह चाहता हूँ, इस तरह हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की याद ताज़ा हो जाएगी।

किरदार की पुख़्तगी की वजह से दुआएं जल्दी कुबूल होंगी। हर तरफ़ रहमत के आसार ज़ाहिर होंगे। दुनिया में इस्लाम का बोल बाला और कुफ्र का मुँह काला होगा।

वाज़िह रहे कि जिस तरह शराब की सज़ा और हुर्मत तदरीजन हुई, इसी तरह ज़िना की सज़ा भी तीन मराहिल में हुई। पहले मरहला में फ़रमाया गया कि दो मर्दों में बदकारी का सुबूत मिल जाए तो क़ाज़ी उन पर ताज़ीर लागू करे यानी मुनासिब सज़ा दे (सूरा अन निसा ) दूसरे मरहला में फ़रमाया गया कि ज़ानिया औरत और ज़ानी मर्दों को सौ कोड़े लगाओ। लोगों का मजमा होना चाहीए और नरमी हरगिज़ नहीं करनी चाहीए (सूरा अल-नूर। २) जबकि तीसरे मरहला में फ़रमाया गया कि शादीशुदा मर्द-ओ-औरत के लिए संगसारी और ग़ैर शादीशुदा के लिए सौ कोड़े मारने हैं। (बुख़ारी शरीफ़)

ज़िना की गवाही में चार मर्दों की शर्त रखी, चूँकी दो मर्द और दो औरत के लिए दो दो गवाह हों तो कुल चार हुए। दूसरा ये कि इस नाज़ुक मसला में औरत की गवाही कुबूल नहीं की गई, चूँकि औरतें इल्ज़ाम लगाने में जल्दबाज़ होती हैं।

ये भी वाज़िह हुआ कि जब सज़ा सख़्त हो तो इसके सुबूत की शराइत भी सख़्त होती हैं। इस्लाम ने इब्तिदा में सतर पोशी का मुआमला करने का हुक्म दिया, लेकिन जब चार शरई गवाह बतौर सुबूत पेश कर दें तो फिर इन ज़ानी मर्द-ओ-औरत की जी भरकर रुसवा करने का हुक्म दिया और नरमी बरतने से मना कर दिया, ताकि लोग इबरत हासिल कर सकें।

आम तौर पर मर्दों के हुक्म में औरतें शामिल होती हैं, मगर इस नाज़ुक मसला में ज़ानिया के लफ़्ज़ से औरत के ज़िक्र की वज़ाहत कर दी गई, ताकि कोई ये ना समझे कि रजम का हुक्म फ़क़त मर्दों के लिए है।

एक हदीस पाक से ये मालूम होता है कि ज़िना के छः नुक़्सानात हैं, तीन दुनिया के और तीन आख़िरत के। दुनिया के नुक़्सानात इस तरह हैं: (१) चेहरे की रौनक ख़त्म हो जाती है (२) फिक्र-ओ-तंगदस्ती पैदा हो जाती है (३) उम्र कम हो जाती है। जबकि आख़िरत के नुक़्सानात ये बयान किए गए हैं कि (१) अल्लाह तआला नाराज़ होता है (२) हिसाब सख़्ती से लिया जाएगा (३) दोज़ख़ में हमेशा हमेशा रहेगा।

अहदीस ए मुबारका के मुताला से ये बात भी मालूम होती है कि जो शख़्स ज़िना का मुर्तक़िब हुआ और बगै़र तौबा किए दुनिया से फ़ौत हो गया, इस पर मुसीबतों का दरवाज़ा खुल जाता है। इलावा अज़ीं जितनी तफ़सीली सज़ा ज़िना के अमल की मिलेगी, उतनी किसी और गुनाह की सज़ा नहीं मिलेगी। सब बड़ी सज़ा ये है कि अल्लाह तआला ऐसे शख़्स से हमकलाम होना पसंद नहीं फ़रमाएगा। अल्लाह तआला से दुआ है कि हम सब को और हमारी नसलों को इस फ़ेअले बद से महफ़ूज़ रखें। (आमीन)