किश्तवाड़ तशद्दुद में कोई बैरूनी हाथ नहीं

हुकूमत ने जम्मू-कश्मीर में फ़िर्कावाराना तशद्दुद से किसी दहश्तगर्दाना या बैरूनी जारहीयत के राबते को ख़ारिज अज़ इमकान क़रार दिया और दावा किया कि 1990 के वक़ियात को नहीं दोहराया जाएगा, जब पंडितों को वादी कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया गया था।

वज़ीर फैनान्स पी. चिदम़्बरम ने अलील वज़ीर-ए-दाख़िला सुशील कुमार शिंडे की तरफ़ से राज्य सभा में बयान देते हुए कहा कि रियासत की मजमूई सूरत-ए-हाल क़ाबू में है हालाँकि अरकान ने मुतनब्बा किया कि हालिया वाक़ियात को महिज़ बैन बिरादरी झड़प नहीं समझा जाना चाहिए क्योंकि मुल्क की इक़तिदारे आला और सालमियत दाव् पर लगी है।

ऐवान में इस रियासत की सूरत-ए-हाल पर बरमहल मुबाहिस देखने में आए जबकि अपोज़िशन के लीडर अरूण जेटली ने इस तशद्दुद का मसला उठाया, जो किश्तवाड़ टाउन में गुज़श्ता जुमा को शुरू हुआ और जम्मू सूबा के दीगर इलाक़ों तक फैल गया। इस सूरत-ए-हाल पर बी जे पी लीडर की तशवीश में कई दीगर अरकान ने साथ दिया, जैसे बी एस पी सरबराह मायावती, सी पी आई ऐम लीडर सीताराम येचुरी, सखीनदो शेखर राय (तृणमूल), करन सिंह (कांग्रेस), डी राजा (सी पी आई), अराकीन की तशवीश और अंदेशों पर जवाब देते हुए चिदम़्बरम ने कहा, ऐसा समझना या मान लेना दरुस्त नहीं होगा कि एक बिरादरी और दूसरी बिरादरी के दरमियान कशीदगी की लहर का दहश्तगर्दी या बैरूनी जारहियत से ताल्लुक़ होना ज़रूरी है।

उन्होंने कहा कि मुतास्सिरा इलाक़ों में माक़ूल फ़ौजी दस्ते तय‌नात किए गए और उन्होंने फ्लैग मार्च भी किए हैं।