पुणे। अगर मेरे दोनों हाथ न होते हुए भी इतना सब कुछ कर सकता हूं तो वो लोग जिनके पास सब कुछ है, वो क्या नहीं कर सकते। कुछ इस अंदाज़ में साहिल अपनी बात रखते हैं। साल 2010 में पुणे के रहने वाले साहिल अपने घर की छत से गुज़रती एक बिजली की तार की चपेट में आए और अपने दोनों हाथ गँवा बैठे। 70 फीसदी तक जल चुके साहिल दो दिन कोमा में रहे और घर वालों ने उन्हें मृत मान लिया था लेकिन नियति की चोट 20 वर्षीय साहिल शेख़ को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाई।
साहिल ने 2010 के बाद अपनी पूरी शिक्षा ‘होम स्कूल’ के माध्यम से की और अपने पेपर लिखने के लिए उन्होंने अपने पैरों का इस्तेमाल किया, साहिल ने बताया, हादसे के बाद कई महीनों तक मैं कुछ भी करता नहीं था लेकिन फिर मेरे एक जानकार शिक्षक ने घर से पढ़ने की सलाह दी। वो बताते हैं, मैंने ओपन स्कूल के माध्यम से दसवीं कक्षा की पढ़ाई शुरू की लेकिन अपने एक्ज़ाम लिखने के लिए सह-लेखक लेने की बजाए मैंने अपने पैरों से लिखने का फ़ैसला किया।
साहिल पैरों से लिखने का फ़ैसला लेने के कई कारण बताते हैं कि मुझे कई लोगों ने कहा कि राइटर ले लो, लेकिन मैं इस पक्ष मैं नहीं था, उसकी लेखनी ख़राब आ सकती थी, वो ग़लती कर सकता था. मैं किसी और के हाथ में अपनी भविष्य नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने पैरों से लिखना शुरू किया। साहिल ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा पैरों से ही लिखी है और इनमें 54 प्रतिशत और 74 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। साहिल के मुताबिक़ इन परीक्षाओं को लिखने के लिए उन्हें एक घंटे का अधिक समय भी दिया गया था।
साहिल के हौसले और लगन को देखकर पुणे कॉलेज ऑफ़ ऑर्ट्स एंड कॉमर्स ने उन्हें बीकॉम में दाखिला दिया साथ ही उनकी फ़ीस भी माफ़ की। पुणे कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर रफ़ीक सरख़्वास कहते हैं कि इस बच्चे की लगन और मेहनत दूसरे नॉर्मल बच्चों के लिए मिसाल बन सकती है, हम इस पर दया नहीं कर रहे, हम इसे मौका दे रहे हैं ताकि ये अपनी मंज़िल को पाने की कोशिश तो कर सके।
साहिल का परिवार आर्थिक रूप से कमज़ोर है, साहिल का ध्यान रखने वाले उनके दादा अजीज़ शेख़ एक सब्ज़ी विक्रेता हैं और उनके पिता एक ट्रक ड्राइवर हैं और इसलिए साहिल सरकार की ओर से आर्थिक मदद की कई बार गुहार लगा चुके हैं। चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का सपना देखने वाले साहिल चाहते हैं, मैं अपना और अपने परिवार का ध्यान रखना चाहता हूं और पढ़ाई और नौकरी की अहमियत समझता हूं। अगर सरकार की ओर से मुझे बैट्री चलित हाथ मिल जाएं तो मेरा जीवन और भी आसान हो सकता है। फ़िलहाल साहिल सरकारी शिविर से मिले रबर के हाथों को पहनते हैं जिससे उन्हें संतुलन बनाने में आसानी होती है।