किसी को गुपचुप तरीके से फांसी नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने फांसी देने के मामले में अपने अहम फैसले में कहा है कि मुजरिम ठहराए गए कैदियों को गुपचुप तरीके से फांसी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि गुनाहगारों का भी वक़ार और इज़्ज़त होती है और हर तरह के कानूनी इलाज़ करने और खानदान वालों से मिलने की इज़ाज़त दी जानी चाहिए।

जस्टिस एके सीकरी और यूयू ललित ने उत्तर प्रदेश में 2008 में खानदान के सात लोगों के क़त्ल की मुजरिम एक खातून और उसके आशिक की फांसी पर रोक लगाते हुए तब्सिरा किया की- किसी को फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही आर्टिकल 21 के तहत फराहमीकर्दा ज़िंदगी का हुकूक खत्म नहीं हो जाता।

फांसी की सजा के मामले में भी मुजरिमों की ज़िंदगी के वक़ार का ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्हें मनमाने ढंग से, जल्दबाजी में या गुपचुप फांसी नहीं दी जा सकती।

अदालत ने आगे कहा कि, सेशन जज ने दोनों के खिलाफ जल्दबाजी में फैसला सुनाया और डेथ वारंट पर साइन किए। जजों ने मुल्ज़िमों को कानूनी इलाज़ का वक्त नहीं दिया।

मुजरिमो को नज़रे शानी की दरखास्त और रहम की दरखास्त दाखिल करने का वक्त मिलना चाहिए। कुदरती इंसाफ के नियमों पर अमल होना चाहिए और मुल्ज़िमों को बचाव का पूरा मौका दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह तब्सिरा कई मामलों में अहम है।

संसद हमले के मुजरिम अफजल गुरू को 2013 में गुपचुप फांसी दे दी गई थी। फांसी दिए जाने से पहले उसके खानदान को इत्तेला भी नहीं किया गया था। उसकी फांसी पर कई लोगों ने सवाल उठाए थे।