देश में देशद्रोह के कानून को लेकर चल रही बहस के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में सुधार किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक आईपीसी की समीक्षा किए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘पिछले 155 साल के दौरान आईपीसी में बहुत कम बदलाव हुए हैं। अपराधों की शुरुआती सूची में भी बहुत कम नए अपराधों को जोड़कर उन्हें सजा दिए जाने योग्य बताया गया है।’ राष्ट्रपति ने आईपीसी की 155वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम के दौरान ये बातें कहीं। उन्होंने आगे कहा, ‘अभी भी आईपीसी में ऐसे अपराध हैं जिन्हें अंग्रेजों ने अपनी औपनिवेशिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया था। कई तरह के नए अपराधों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें सही तरीके से परिभाषित किया जाना चाहिए।’
कथित रूप से राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के लिए JNU छात्रों के ऊपर लगाए गए देशद्रोह कानून के संदर्भ में आईपीसी की धारा 124ए को खत्म करने या फिर उसमें बदलाव किए जाने की जोरदार मांग हो रही है। आईपीसी की यह धारा देशद्रोह संबंधी मामले में लगाई जाती है।
राष्ट्रपति ने ‘पुरानी पड़ चुकी पुलिस व्यवस्था’ में भी बदलाव किए जाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस की छवि उसकी सक्रियता व गतिविधियों पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि तेज, न्यायसंगत व न्यायपूर्ण तरीके से कानून का पालन कर आम लोगों की नजर में पुलिस की छवि सकारात्मक हो सकती है।