कूड़ा क्रकट से मस्जिद बहादुर यार जंग (र) बेगम बाज़ार की बेहुर्मती

नुमाइंदा ख़ुसूसी-  मस्जिद बहादुर यार जंगजू बेगम बाज़ार में वाक़ै है । आस पास के लोग और पड़ोसी दूकानदारों ने मस्जिद के अतराफ़ और दीवार को निहायत गंदा कर रखा है । मस्जिद की दीवार से मुत्तसिल ही कचरा लाकर डाला जा रहा है जिस की वजह से मस्जिद के अतराफ़ में इंतिहाई ताफ़्फ़ुन और बदबू रहती है और मोस्लियों को आते जाते परेशानियों का सामना करना पड़ता है । जब कि मस्जिद से कुछ ही फ़ासिला पर कचरा दान भी मौजूद है लेकिन लोग कचरा वहां डालने के बजाय मस्जिद के पास लाकर फेंक रहे हैं ।

ना उन के दिलों में अल्लाह के घर का एहतिराम है ना लोगों की तकलीफ का ख़्याल । ग्रेटर हैदराबाद म़्यूनिसिपल कारपोरेशन की ज़िम्मेदारी है कि वहां सफ़ाई का एहतिमाम रखे और मस्जिद के अतराफ़ में कूड़ा डालने वाले अफ़राद को तंबीह की जाय । इसी तरह वहां मौजूद कुछ मुस्लिम दुकानदार हज़रात का भी दिनी फ़रीज़ा है कि मस्जिद की देख भाल रखें और कूड़ा डालने वालों को इस हरकत से बाज़ रखने की कोशिश करें ।

मालूम रहे कि ये छोटी सी दो मंज़िला मस्जिद है जो क़ाइद मिल्लत बहादुर यार जंग से मंसूब और आप की हवेली के रूबरू वाक़ै है । अल्हम्दुलिल्ला इस मस्जिद में पंच व़क़्ता नमाज़ होती है । जीने का सलीका और ज़िंदगी का शऊर सिखाने वाले क़ाइद मिल्लत की हवेली जो मस्जिद के करीब वाक़ै है आज खन्डरात में तब्दील होचुकी है कोई इस का पुर्साने हाल नहीं है ।

काश हम क़ौमी और मिली विरसा के तौर पर ही इस तारीख साज़ शख्सियत के दौलत कदा की हिफ़ाज़त कर लेते ।बेशक क़ाइद मिल्लत बहादुर यार जंग की निगाह बुलंद थी , सुख़न एसा दिलनवाज़ कि दिल से निकली बात दिल में उतर जाती कि मिस्दाक़ बड़ी तेज़ी के साथ असर कर जाता था । यही वजह थी कि जब आप ख़िताब के लिए उठते तो मजमा पर ख़ामोशी छा जाती । अवाम का बढ़ता हुआ सैले रवां (मजमा) साकित-ओ-जामिद होजाता ।

एसा लगता कि कुछ देर के लिए वक़्त थम सा गया है और शुरका जलसा के दिल धड़कना भूल गए होँ । हाँ उन के कानों में इक़बाल के मर्द मोमिन बहादुर यार जंग के वलवला अंगेज़ फ़िक्र-ओ-तदब्बुर से भरपूर क़ुरआन-ओ-सुन्नत की पाकीज़ा चादरें लिपटे हुए अलफ़ाज़ उतरते जाते और जिसे ही इस मर्द मुजाहिद के अलफ़ाज़ कानों में उतरते हर वो क़ौम में ज़िंदगी करवट लेने लगती । मायूसी के शिकार अफ़राद में बुलंद हौसलगी का तूफ़ान ठाठें मारने लगता और इन्क़िलाब दौड़ कर इस मजमा को अपने दामन में लपेट लेता ,

क़ारेईन ! क़ाइद मिल्लत ने एक उसे वक़्त बर्र-ए-सग़ीर बिलख़सूस हैदराबाद दक्कन के मुस्लमानों को ख़ाब-ए-ग़फ़लत से बेदार किया जब हर तरफ़ से ज़ुलम के पहाड़ उन पर टूटे जा रहे थे , सल़्तनतों से उन्हें महरूम किया जा रहा था दीन-ओ-अमान बर्बाद करने की शैतानी साज़िशें जारी थीं । उन ना मुसाइद हालात में सरज़मीन दक्कन से उठे नौजवान बहादुर ख़ान ने अपने असर अंगेज़ ख़ताबात के ज़रीया मायूस क़ौम में नई उम्मीदें जगाएं ।

बहादुर यार जंग के ख़ताबात का ये असर हुआ कि सूई क़ौम जाग उठी । मुर्दा क़ौम में फिर से हरकत रवां दवां होगई । दक्कन के इस अज़ीम फ़र्ज़ंद ने मिल्लत में एक नई रूह फूंकी , अपने हक़ के लिए लड़ने की उमंग और जीने की तमन्ना पैदा की । आज हमारी नसल नो इस अज़ीम क़ाइद और उन के कारनामों से ना वाक़िफ़ है ।

उन्हें बताया जाय कि 3 फरवरी 1905 को हज़रत नसीब यार जंग के घराने में आंखें खोलने वाले बहादुर ख़ां ने मिल्लत इस्लामीया की तरक़्क़ी और ममलकत इस्लामीया की बक़ा के लिए अपने सेहर अंगेज़ ख़ताबात के ज़रीया हिंदूस्तान में मुहम्मद अली जिनाह के बाद दूसरे सब से बड़े मुस्लिम क़ाइद का मुक़ाम हासिल किया था ।।