सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय विद्यालयों में सुबह हिंदी और संस्कृत में होने वाली प्रार्थना व स्तुति को मौलिक रूप से महत्वपूर्ण बताते हुए मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया। मध्य प्रदेश के एक वकील विनायक शाह ने याचिका दायर कर कहा था कि प्रार्थना हिंदू धर्म पर आधारित है और इसे दूसरे धर्म के बच्चों पर जबरन थोपा जा रहा है।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि यह मसला अत्यंत महत्वपूर्ण है। लिहाजा इसका संविधान पीठ द्वारा परीक्षण किया जाना चाहिए। पीठ ने मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजते हुए कहा कि वह प्रशासनिक तौर पर उचित पीठ का गठन करेंगे।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रार्थना में संस्कृत स्तुति ‘असतो मा सद्गमय’ का गान होता है। सभी धर्मों के ग्रंथों में इसे स्वीकार किया गया है। लिहाजा सिर्फ इसलिए इसे धार्मिक नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह संस्कृत में है।
ईसाई स्कूलों में ‘ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी’ कहा जाता है। विनायक शाह ने याचिका में दावा किया है कि केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना हिंदू धर्म को बढ़ावा देती है और यह यह अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है। साथ ही जमीयत उलेमा ए हिंद ने भी मामले में याचिका दायर कर पक्षकार बनाने की गुहार की है।
याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालय, राज्य के फंड से चलता है ऐसे में संविधान स्कूल को धर्म विशेष का उपदेश देने की इजाजत नहीं देता।
‘असतो मा सद्गमय’ तो सीधे तौर पर उपनिषद से लिया गया है।
-जस्टिस नरीमन
इसे धार्मिक निर्देश नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट का आधिकारिक प्रतीक भी भागवत गीता से लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के हर जज के पीछे ‘यतो धर्म ततो जय’ होता है। यानी जहां धर्म है वहां विजय है। इसमें कुछ भी धार्मिक नहीं है।
-सॉलिसिटर जनरल