केंद्र की सलाह, आतंकवादियों के लिए पुनर्वास नीति को मजबूती करे जम्मू-कश्मीर सरकार

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अपनी हाल की शांति प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार को कश्मीरी आतंकियों के लिए एक नया आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति तैयार करने की सलाह दी है, जो बंदूक को छोड़ने के लिए तैयार हैं, जो कि उनकी आर्थिक पुनर्वास और उचित प्रशिक्षण पर केंद्रित है ताकि उन्हें मदद मिल सके।

यह विचार न केवल मुख्यधारा में लौटने की सुविधा प्रदान करता है बल्कि इन्हें लाभप्रद रूप से व्यस्त रखता है ताकि पोस्ट सरेंडर अवसरों के अभाव में निराशा के कारण वे आतंकवाद में वापस न जाए। 2004 और 2010 में तैयार किए गए मौजूदा समर्पण और पुनर्वास नीतियों ने बहुत सफलता नहीं देखी गयी है।

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह मेहबूबा मुफ्ती सरकार के साथ परामर्श में और साथ ही जम्मू-कश्मीर संवाद के लिए केंद्र के विशेष प्रतिनिधि दिनश्वर शर्मा ने पिछले कुछ महीनों में कश्मीरी युवाओं की शिकायतों को हल करने के लिए कई उपाय किए हैं।

पहली बार पत्थर फेंकने में शामिल लगभग 9,000 युवाओं को 3,685 रूपये से पहले ही लाभान्वित हुए हैं। माफी योजना के व्यापक स्तर को देखते हुए, केंद्र ने अब जम्मू-कश्मीर सरकार को सलाह दी है कि पीजीपी के बाकी सभी मामलों की समीक्षा करने के लिए डीजी / एडीजी-रैंक के अधिकारी के तहत एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाए।

गृह मंत्रालय पत्थरों के मामले में शामिल युवाओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने / बंद करने के पक्ष में है, जिनके कारण गंभीर चोटें नहीं हुई हैं। इस बीच, राज्य सरकार को भी जम्मू-कश्मीर में प्रवासियों की शिकायतों का निवारण करने की सलाह दी गई है, जिनमें कश्मीरी प्रवासियों, जम्मू प्रवासियों, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर और पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों के विस्थापित व्यक्ति शामिल हैं।

गौरतलब है कि 2004 में भी राज्य सरकार ने केंद्र की मदद से आतंकियों के लिए सरेंडर नीति बनाई थी। उसके बाद करीब छह साल पहले नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस गठबंधन सरकार ने भी सरहद पार बैठे राज्य के युवकों के लिए राहत एवं पुनर्वास नीति का एलान किया था। केंद्र ने 1990 के दशक में भी सरेंडर नीति बनाई थी। इसके तहत कई कश्मीरी आतंकियों को सरेंडर करने पर सीआरपीएफ, बीएसएफ और सेना में भर्ती भी किया था।संबंधित अधिकारियों ने बताया कि राज्य में इस समय आतंकियों को सरेंडर करने के लिए प्रेरित करने में पूरी तरह समर्थ कोई भी सरेंडर नीति नहीं है। इसलिए बीते कुछ वर्षों के दौरान हथियार डालने वाले सक्रिय आतंकियों की संख्या नगण्य ही है। जनवरी 2016 से नवंबर 2017 के पहले सप्ताह तक पूरे राज्य में आत्मसमर्पण करने वाले आतकियों की संख्या दहाई तक भी नहीं पहुंच पाई है।

सूत्रों ने बताया कि 2007 के बाद से राज्य में आत्मसमर्पण करने वाले स्थानीय आतंकियों की संख्या लगातार घटी है। बीते एक साल के दौरान सुरक्षाबलों ने कई बार स्थानीय आतंकियों को सरेंडर के लिए मनाने का प्रयास किया, मुठभेड़ के दौरान भी उन्हें मौका दिया गया, लेकिन उन्होंने हथियार छोड़ने के बजाय मरना बेहतर समझा।