केरल में संघ पर लगाम, क्या उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारें ऐसा करने का दम रखती हैं?

देश की सबसे बड़ी मूतनाज़ा तंजीम आरएसएस जिसके लोगो लोगो पर महात्मा गांधी के कत्ल मे शामिल रहे और जिसे आज़ाद हिंदुस्तान मे मुल्क के पहले वज़ीर ए दाखिला सरदार बललबभाई पटेल ने बैन कर दिया था, उसने अपना सफर हिन्दुत्व राष्ट्र के लिए तय करते हुये उसकी सियासी तंजीम ने जहा देश मे मेजोरिटी से हुकूमत कायम कर ली वही आरएसएस के ही सेवक जनाब नरेंद्र मोदी वज़ीर ए आजम बन गए, संघ ने सेकुलर देश के कानून और आयीन की धज्जिया उड़ाते हुये प्राइवेट आर्मी और हथियारो की ट्रेनिंग जैसे कारनामे इस सेकुलर नेज़ाम मे अंजाम दे रहे थे उसे गांधी जी की हत्या के बाद पहली बार केरल मे बाया महाज हुकूमत के ओबीसी वज़ीर ए आला कॉमरेड पिनरायी विजयन ने उसकी मशकूक हरकतों पर लगाम लगाने की तयारी कर ली है

सरकार ने कहा है की यह तंजीम ग़ैर रूहानी तरीके से काम करते हुये लोगो मे नफरत और खौफ़्फ़ फैलाती है और हथियारो और लठियों की ट्रेनिग्न से लोगो डर पैदा होता है, केरल के सबसे बड़े मंदिर ट्रस्ट ट्रेवेनोकोर ने कहा है की संघ हामारी मंदिरो मे पूजा पाठ तो कर सकते है लेकिन हथियार की ट्रेनिग जैसे हरकते हमारे समाज को कुबूल नहीं, सरकार ने कहा है आरएसएस न तो किसी पब्लिक या जाती ज़मीन पर इस तरह की ट्रेनिंग का काम नहीं कर सकती है और अपने किसी भी कार्यक्रम के लिए उसे हुकूमत से परमीशन लेनी होगी! कम्युनिस्ट और आरएसएस टकराव वैसे तो कम्युनिस्ट और आरएसएस का टकराव बहुत पुराना है और नजरियाती तौर पर इन्हे दो दुशमन के नाम से जाना जता है, इस टकराव ने खूनी रंग ले रखा है, जिसमे केरल मे भी अनगिनत कम्युनिस्ट कारकुन को भी हलाक किया गया, लेकिन जिस तरह से आरएसएस ने 2014 लोकसभा के बाद अपना रंग और हुकूमत के इदारों, पॉलिसी पर अपने लोग बैठने शुरू किए है मुल्क के सेकुलर किरदार मे भगवा रंग चढ़ाने की भरपूर कोशिश हो रही है जिससे एक तनाव का माहौल पैदा हो चुका है

एक तरह जहा फ़ौरी तौर पर लालू यादव और समाजवादी ताकतों ने संघ बीजीपी को बिहार मे चारो खाने चित किया दूसरी सबसे बड़ा अम्ली काम कम्युनिस्ट हुकुमत ने कर दिखाया जिसकी ताईद सभी सियासी समाजी लोगो को करना चाहिए और केरल के ओबीसी वज़ीर ए आला की हिमायत होनी चाहिए! आरएसएस का विरोध क्यो? संघ के हमले पर कम्युनिस्ट, मुसलमान और ईसाई हमेशा से रहे है जिसे संघ अपना मूल दुश्मन मानती है इसी आधार पर संघ ने स्वतन्त्रता संग्राम मे हिस्सा नही लिया और और खुलकर अंग्रेज़ो का साथ दिया और मुसलमानो और ईसाई समाज पर हमेशा हमला करते हुये उनके बीच खौफ और की सियासत की और यहा तक की मुस्लिम नौजवानो की देश मे अनगिनत गिरफ्तारिया इसी का नतीजा है, संघ की सोच मनुस्मृती पर आधारित है जो दलित और ख़वातीन के त्यी भी खतरनाक है

मनुस्मृती के मुताबिक “महिला सबसे निचले स्तर की लालसा, नफरत छल, जलन, चरित्रहीनता का प्रतीक है, महिलाओ को कभी भी आज़ादी नही दी जानी चाहिए और किसी महिला, शूद्र या ला मजहब का खून करना गुनाह नहीं है” , आगे संघ पर उसकी पुस्तक (वी-आर आवर नेशनहुड डीफ़ाईंड) पर आयीन और देश के लिए इनके खयालात मे वो कहते है की “हिंदुस्थान की विलायती नसलों को या तो हिन्दू तहज़ीब और ज़बान को अपनाना होगा हिन्दू धर्म को आदर देना और पूजना होगा, हिन्दू नस्ल और तहजीब यानि हिन्दू राष्ट्र के तारीफ के अलावा और कोई भी विचार दिमाग़ से निकाल देना होगा और हिन्दू नस्ल मे जज़्ब हो जाने के लिए अपने दीघर वजूद को छोडना होगा हर तरह की दावेदारी छोडने होगी, हर तरह के फायदे की अहलियत छोडनी होगी, कोई प्राथमिकता वाला बर्ताव तो छोड़िए, शहरी के अधिकार तक से वंचित रेहना होगा, उनके लिए कोई रास्ता नहीं है, या कम से कम नहीं होना चाहिए!

हम एक क़दीम मुल्क है: आइये हम अपने देश मे बसी विलायती नसलों से वैसे ही पेश आए जिस तरह से पुराने राष्ट्र को पेश आना चाहिए और आते है”! अब अगर संघ की इस बुनियादी मनशूर को देखा जाए तो दलित ईसाई, कम्युनिस्ट और मुसलमान पर हमले इसी नज़रिये से किए गए है और आज जो हमला आयीन पर है मनुस्मृती मे बदलने की कोशिश करते हुये यह उसी का हिस्सा है जबकि संघ खुद को एक सांस्कृतिक तंजीम कहता है और दिखावे के लिए उसने मुसलमान, आदिवासी और दलित के शाखे भी खोल रखी है! यह सही है की किसी जम्हूरी मुल्क मे जब्र से किसी ख्याल को बैन करना ठीक नही लेकिन जिस अंदाज़ से पाकिस्तान जैसे मुल्क मे जमात उद दावा जैसी तंजीम जो खुद को अवामी समाजी क़ौमी तंजीमे कहती है और उस मुल्क को ऐसी तंजीमो ने खोखला कर दिया और मुल्क बारूद के ढेर पर बैठा है, जमात उत दावा जैसा ही काम भारत मे आरएसएस कर रही है इस लिए हमे पहले से सचेत होना पड़ेगा की और पाकिस्तान जैसे मुल्क बनने से पहले हमे संभालकर हमारी अज़ीम जम्हूरियत सेकुलर स्टेट को बचाना होगा इस लेहाज से संघ से निबटने का केरल मे उठाए कदम उचित है! इस आईने मे संघ देश के लिए, दलित, आदिवासी, अक़लियत बिलखसूस मुसलमानो के लिए सबसे बड़ा खतरा है

इस आईने मे केरल के वज़ीर ए आला कॉमरेड विजयन का यह कदम मुल्क और आयीन के हक़ मे है, जिन भी तंजीमो को समाज की खिदमत करनी है उन्हे आज़ादी होनी चाहिए लेकिन हथियार प्राइवेट आर्मी जैसा कुछ करके लोगो मे खौफ़्फ़ हरास पैदा करने की किसी को इजाज़त नही मिलनी चाहिए! अखिलेश और नीतीश संघ पर लगाम लगाए! उत्तर प्रदेश को संघ ने गुजरात के बाद अपनी लेबोरेट्री बनाई चुनी, जितने दंगे हुये उसमे सीधे रूप से संघ बीजेपी उसके हामी संगठन जिम्मेदार है लेकिन सरकार की चुप्पी, महकमे की नाकामी बताती है की समाजवाद का दम भरने वाली कुव्वत अखिलेश हुकूमत का सेकुलरिस्म सिर्फ रस्मी है और उनकी अंदरखाने इन फिरकापरस्त ताकतों से सम्झौता दिखता है, उत्तर प्रदेश के दलित मुसलमानो मे केरल के ओबीसी वज़ीर ए आला कॉमरेड विजयन के कदम की तारीफ हुयी है और कम्युनिस्ट पार्टी के लिए लोगो मे क़दर बढ़ रही है,

यह सही समय है जब अखिलेश सरकार को संघ की हरकतों पर नकेल कसना चाहिए और मुसलमानो को खासकर सरकार पर इसके लिए दबाव बनाना चाहिए, जिसकी उम्मीद कम है! यह देखा जा सकता है की जन जब तारीख मे दाया बाज़ू ताकते मजबूत हुयी, जम्हूरियत के जरिये ही वो हुकूमत मे आए और फासीवाद ग़ालिब हुया लेकिन इसका लाल झंडे के तले जनउभार से इन का खात्मा हुआ है, यानि संघ का उरूज़ होगा तो लाल झण्डा ही लड़ेगा जिसकी झलक केरल मे दिखी है लेकिन सिर्फ केरल से बात नहीं बनेगी, सरकार को घुटने मे बैठा देने वाली संघ को एक राज्य मात नहीं दे सकता इसके लिए मुल्कगीर पैमाने पर कम्युनिस्ट पार्टी को आवाम को बनाना होगा और कम्युनिस्ट कयादत को भी दलित अक़लियत पसमांदा ताकत को अगली सफ मे जगह देकर उनकी लड़ाई को मंज़िल तक पहुचना होगा!

  अमीक जामेई

(लेखक सीपीआई के फायर ब्रांड नेता है)