नई दिल्ली: कैग ने रिलायंस इंडस्ट्रीज की बंदरगाह और टर्मिनल कंपनी को 1,767 करोड़ रूपये का कर लाभ देने पर आयकर विभाग से जवाब माँगा है। आयकर विभाग ने कंपनी के स्वामित्व वाली जेट्टी को वे कर लाभ और छूट प्रदान की हैं जो सार्वजनिक कम्पनी को दी जाती हैं।
कैग ने कहा कि आयकर आकलन अधिकारी (एओ) ने पात्रता मानदंड की जांच के बिना ही रिलायंस पोर्ट्स एंड टर्मिनल्स लिमिटेड को गुजरात में पोर्ट सिक्का में चार बंदी घाटों के निर्माण करने के लिए 5,245.38 करोड़ रुपये की कटौती की अनुमति दे दी है।
संसद में आज पेश की गयी इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के विकास की ऑडिट रिपोर्ट में कैग ने कहा, “एओ के द्वारा कटौती की अनियमित अनुमति के परिणाम स्वरुप आय का आंकलन सिर्फ 5,245.38 करोड़ रूपये हुआ है जोकि कम है। इसमें 1,767 करोड़ रूपये की टैक्स छूट भी शामिल है।”
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि घाटों का इस्तेमाल रिलायंस पोर्ट्स करता और ये सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं होंगे, इसलिए एओ के द्वारा दी गयी कटौती की अनुमति सही नहीं थी।
आयकर विभाग ने हालांकि, कैग के अवलोकन को स्वीकार नहीं किया और कहा कि आयकर अधिनियम का 80 आईए एक निश्चित अवधि के लिए 100 फीसदी में बुनियादी ढांचे के विकास में शामिल कंपनियों को मुनाफे के संबंध में कटौती के दावे की सुविधा प्रदान करता है और यह “सार्वजनिक सुविधा” और “निजी सुविधा” बीच भेद का आधार नहीं प्रदान करता है।
आयकर विभाग की दलील है कि घाट की सुविधा का जब आरआईएल समूह की कंपनियों द्वारा नहीं उपयोग हो रहा था तब अन्य कम्पनियां इस्तेमाल कर रही थी। इस पर कैग ने सीबीडीटी से उन अन्य कंपनियों की जानकारी की मांग की है जिन्होंने इस सुविधा का इस्तेमाल किया था।
कैग ने कहा है कि आयकर विभाग ने अपनी दलील के समर्थन में किसी भी ऐसी कंपनी का नाम नहीं बताया है जिसने आरआईएल के इन घाटों के इस्तेमाल न करने के दौरान इन घाटों को इस्तेमाल किया हो।
कैग की रिपोर्ट 2012-13 और 2014-15 के बीच कैग द्वारा किए गए टेस्ट ऑडिट पर आधारित है।