अक़वाम-ए-मुत्तहिदा और अरब लीग के मुशतर्का क़ासिद साबिक़ सेक्रेटरी जनरल अक़वाम-ए-मुत्तहिदा कोफ़ी अन्नान का दौरा-ए-शाम और अमन मिशन नाकाम रहा । तलातुम पसंद और शोरिश मिज़ाज हुकमरानों को समझाने के लिए जिस तर्ज़ के मिशन की ज़रूरत होती है इसमें यक़्तरफ़ा मक़सदी फार्मूला शामिल हो जाये तो फिर ख़ूँरेज़ी से मुतास्सिरा किसी भी सरज़मीन पर अमन लाने की कोशिशें कामयाब नहीं हो सकतीं।
कोफ़ी अन्नान ने भी शाम का दौरा करके दमिश्क़ के बुनियादी मसाइल पर तवज्जा देने से ज़्यादा हुक्मराँ बशार अल असद पर दबाव डालने की कोशिश की। अरब लीग का ये मिशन इससे क़ब्ल भी नाकाम रहा है। अक़वाम-ए-मुत्तहिदा को सारी दुनिया पर कंट्रोल करने के बाअज़ इख़्तेयारात में फिर भी ये इदारा मख़सूस लॉबी के हाथों का खिलौना बन कर अपना एजंडा मुरत्तिब करता है।
इसने शाम के लिए भी वहां के बुनियादी हक़ायक़ का अंदाज़ा किए बगै़र ही एजंडा बना लिया। सदर शाम बशर अल असद ने कोफ़ी अन्नान से मुलाक़ात के दौरान वाज़िह कर दिया कि मुल्क में ख़ूँरेज़ी के ज़िम्मेदार दहश्तगर्द हैं और जब तक मुस्लिम दहश्तगर्द ग्रुप सरगर्म हैं कोई अमन बातचीत कारगर नहीं हो सकती।
शाम में सरकारी ताक़तें और बाग़ीयों के ग्रुप के दरमयान घमासान की लड़ाई के असरात आम शहरीयों पर हो रहे हैं। इस तशद्दुद को रोकने के लिए आलमी सतह पर ताक़त के इस्तेमाल का जहां तक सवाल है इस बारे में सदर अमेरीका बारक ओबामा ने ये कह कर वक़्ती तौर पर सवाल को टाल दिया कि फ़ौजी कार्रवाई से गुरेज़ करने का मक़सद इंसानी बोहरान और आम ज़िंदगीयों के इत्तेलाफ़ को रोकना है। शाम में सूरत-ए-हाल पर आँखें बंद किए हुकूमत करने वाली बशर अल असद क़ियादत को अपने अवाम की शिकायत नज़र नहीं आ रही हैं।
जिस मुल्क के शहरों के हर कूचा-ओ-बाज़ार में मौत का सन्नाटा हो और फ़िज़ाएं फ़ौज की तोपों और एहितजाजियों के नारों से गूंज रही हूँ तो हुक्मराँ बशर अल असद को इन तमाम हक़ायक़ के चेहरे पर कालिख थोप कर अपने जबर ओ इस्तेदाद वाली फ़ौजी सरगर्मीयों को मज़ीद नुमायां करने का मौक़ा मिले तो ये एक अफ़सोसनाक सूरत-ए-हाल कहलाएगी।
कोफ़ी अन्नान को आलमी उमूर पर उबूर हासिल है इसके बावजूद वो बशर अल असद को अपनी बात मनवाने और अमन के लिए बातचीत करने के लिए राज़ी कराने में नाकाम हुए। इनकी शाम से ख़ाली हाथ वापसी के आलमी सतह पर आगे चल कर क्या असरात मुरत्तिब होंगे ये तो शाम के मुस्तक़बिल की सूरत-ए-हाल पर मुनहसिर है। शाम की सड़कों पर सरकारी फ़ौज अपनी जाबिराना कार्यवाईयों के ज़रीया बशर अल असद के क़सर सदारत की बुनियादों को अंदर ही अंदर खोखली कर रही है ब ज़ाहिर ये ताक़त सयासी मोर्चों पर फ़ुतूहात के पर्चम गाड़ते जा रही है।
शाम के अवाम की नाशों पर पर्चम लहराने वाली ताक़त कब तक ख़ैर मना सकेगी, आने वाले हर सूरमा के घोड़ों की गर्द को कब तक अपनी पर ख़ाब आँखों का सुरमा बनाया जाता रहेगा। हुकूमत शाम ने अपने माज़ी और मुस्तक़बिल का जायज़ा लिया होता तो उसे हाफ़िज़ अल असद की सयासी बुर्दबारी और बसीरत के आईना में इक़्दामात करते हुए अवाम को राहत बख्श हुक्मरानी फ़राहम करने का तजुर्बा आसानी से अंजाम दिया जाता।
हाफ़िज़ अल असद ने आलमी ताक़तों की तमाम साज़िशों को अपने वक़्त शनासी के तजज़िया के सांचे में ढाल कर हुकूमत की थी उसी नक़्श-ए-क़दम पर चलने के बजाय बशर अल असद का तर्ज़ हुक्मरानी आलमी ताक़तों को मुल्क शाम के ख़िलाफ़ नया मोर्चा बनाने का बहाना बना रही है।
कोफ़ी अन्नान ने शाम पहुँचकर बशर अल असद के सामने जो तजावीज़ रखी थीं इसके पस-ए-मंज़र में आलमी ताक़तों की मनमानी झांक रही थी सलामती फोर्सेस और अपोज़ीशन के दरमयान जारी पर तशद्दुद महाज़ आराई को ख़तम करने की तजावीज़ तो पेश की गईं मगर शोरिश पसंदों की दरपर्दा हिमायत करने वाली ताक़तों के चेहरों को अयाँ करने से गुरेज़ किया गया।
अगर कोफ़ी अन्नान वाक़ई अरब लीग और अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के मिशन को कामयाब बनाना चाहते थे तो उन्हें शाम के मसला की यकसूई के लिए किसी इमानदाराना और संजीदा कोशिश का मुज़ाहरा करने की ज़रूरत थी क्योंकि सदर शाम ने पहले ही से अपना मौक़िफ़ बना लिया है कि वो दहश्तगर्दों से समझौता नहीं करेंगे। वो अपने ही अवाम की बाग़ियाना सरगर्मीयों को दहश्तगर्दी मुतसव्वर करते हैं तो सब से पहले इस ख़्याल को दरुस्त कराने की ज़रूरत के साथ ये वाज़िह होता है कि शाम के बाग़ी आया दहश्तगर्द हैं तो फिर उनसे किस तरह निमटा जाये।
ये बात वाज़िह है कि कोई अमन बातचीत उस वक़्त ही कामयाब होती है जब मुसल्लह दहश्तगर्द सरगर्मीयां रोक दी जाएं किसी सरज़मीन पर अफरा तफरी फैलाकर अदम इस्तेहकाम के हालात पैदा करके अगर अमन मिशन का ड्रामा रचाया जाये तो ये हर दो के लिए फ़ायदा नहीं होता।
अक़वाम-ए-मुत्तहिदा को शाम में हर दोनों ग्रुप के तक़ाज़ों का जायज़ा लेने की ज़रूरत है। सेक्रेटरी जनरल बैन की मून ने अपने क़ासिद कोफ़ी अन्नान के दौरा शाम से काफ़ी उम्मीद बांधी थी मगर ये दौरा कामयाब नहीं हो सका क्योंकि जिस वक़्त कोफ़ी अन्नान अमन मिशन पर दमिश्क़ पहूंचे थे शाम के शहरों को सरकारी फोर्सेस की ख़ूँरेज़ी में इज़ाफ़ा कर दिया गया। अलमीया यही है कि कोफ़ी अन्नान जिस रास्ते से अपनी मंज़िल मुराद पाना चाहते थे इस रास्ते पर उन्होंने मुसबत क़दम रखने से गुरेज़ किया और उबूरी सतह पर इक़्दामात करने की कोशिश की जो बेनतीजा साबित हुई।