झारखंड हुकूमत ने वज़ीरे आज़म डॉ मनमोहन सिंह को खत लिख कर कोल इंडिया की कंपनियों से 31 सौ करोड़ की बकाया रकम की वसूली में मदद करने की दरख्वास्त किया है।
खत में कहा गया है कि झारखंड में कोल इंडिया की सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल खदानें हैं। सीसीएल की जानिब से ही हजारीबाग, रामगढ., रांची, लातेहार में 24 हजार एकड़ सरकारी जमीन इक्वायर की गयी है। इस जमीन के बदले हुकूमत को सीसीएल से एकमुश्त 2763 करोड़ रुपये की सलामी की रकम मिलनी है। इतना ही नहीं कंपनी की जानिब से इस्तेमाल में लायी जा रही ज़मीन का सालाना रेंट तकरीबन 138 करोड़ और दो सौ करोड़ रुपये का सेस भी नहीं मिला है।
वज़ीरे आला ने खत में लिखा है कि कोल इंडिया की कंपनियों से बकाया वसूली के लिए रियासती हुकूमत ने कई बार बैठक कर रसम पूरी की। पर अब तक इस सिम्त में कोई मुसबत पहल नहीं हुई है। कोल इंडिया के 60 फीसद कोयले का प्रोड़क़शन झारखंड में होता है। इन कंपनियों का यह ईखलाकी ज़िम्मेदारी और कानूनी ज़िम्मेदारी है कि वे रियासत के लोगों के लिए फ्लाही काम करें।
साथ ही हुकूमत के बकाये का अदायगी करें। गौरतलब है कि कोल बीयरिंग एरियाज (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट 1957 के नियमों के तहत कोयला कंपनियों ने सरकारी जमीन ली है। कानून के तहत कोयला कंपनियों को मुतल्लिक़ रियासत हुकूमतों को रायल्टी के तौर में एकमुश्त रकम की अदायगी करना है। इसमें लीज होल्डरों को माइनिंग लीज के तहत ट्रांसफर की गयी ज़मीन और राइट्स आफ रिकार्ड दिया जाना भी शामिल है। 1971 के बाद कोयला कंपनियों ने रियासत हुकूमत को इस मद में अदायगी नहीं किया है।