करीब 21 साल पहले झामुमो सरबराह शिबू सोरेन और तीन मौजूदा एमपी ने रिश्वत लेकर पीवी नरसिंह राव हुकूमत को बचाया था। वे सुप्रीम कोर्ट से रिश्वत के इल्ज़ाम से तो बरी हो गए, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि उस रकम पर टैक्स बनता है। यानी उन्हें अब 1.76 करोड़ रुपए (घूस में मिले) पर टैक्स देना होगा। अदालत ने इन्कम टैक्स महकमा की दरख्वास्त पर फैसला सुनाया। इन्कम टैक्स अपीलीय पंचाट के फैसले को भी पलट दिया। पंचाट ने कहा था कि एमपी को मिला पैसा टैक्सेबल नहीं है। इन्कम टैक्स महकमा ने कहा था कि शिबू सोरेन, सूरज मंडल, साइमन मरांडी और शैलेंद्र महतो को मिली रिश्वत बिना ज़हीर किया इन्कम थी। इस पर टैक्स बनता है। महकमा की दलील को हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना व वी. कामेश्वर राव की बेंच ने सही माना।
क्या है मामला
जुलाई 1993 में राव हुकूमत के खिलाफ एमपी में बे एतमादी तजवीज 14 वोटों से खारिज हो गया था। इल्ज़ाम लगा था कि मरकज़ हुकूमत ने अपने हक़ में वोट देने के लिए झामुमो के मौजूदा चार एमपी समेत कई एमपी को रिश्वत दी थी। राव के इक्तिदार से बाहर होने के बाद सीबीआई ने राव समेत कई मुलजिमों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। आठ महीने में जांच पूरी कर सीबीआई ने एमपी की खरीद-फरोख्त के लिए नरसिंह राव, बूटा सिंह, सतीश शर्मा, शिबू सोरेन समेत कुल 20 मुल्जिमान के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में रिश्वत लेने वाले सभी नौ एमपी के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी। 2000 में अदालत ने सिर्फ राव व बूटा सिंह को मुजरिम करार दिया लेकिन 2002 में इन्हें भी बरी कर दिया गया।
शैलेंद्र महतो ने किया था खुलासा
मौजूदा झामुमो एमपी शैलेंद्र महतो ने खुलासा किया था कि उन्हें और उनके तीन एमपी साथियों को 30-30 लाख रुपए दिए गए थे ताकि नरसिंह राव हुकूमत को हिमायत देकर उसे बचाया जा सके। बाद में दीगर एमपी ने भी बदउनवान एंटी कानून के तहत मुकदमे की सुनवाई के दौरान कुबूल किया था कि 1993 में उन्हें एतमाद वोट के हक़ में वोट देने के लिए कांग्रेस पार्टी ने पैसा दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इनको रिश्वत के इल्ज़ाम से बरी कर दिया था कि कानून के आर्टिक्ल -105 के तहत एमपी को खास छूट हासिल है। पार्लियामेंट में दिए गए तक़रीर या वोट पर किसी भी एमपी के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई कार्यवाही नहीं हो सकती।