कौंसलरों की ग़लत हरकात से अवाम और एम एल एज़ बदज़न

जी एच एम सी के हदूद में वाक़ै किसी भी मुहल्ला में तामीरी काम जारी हो तो फ़ौरी कुछ बलदी ओहदेदार वहां आ धमकते हैं और तामीरी काम पर मुख़्तलिफ़ एतराज़ात करते हुए मालिक मकान पर असर अंदाज़ होने की कोशिश करते हैं। इसी दौरान मुहल्ला के कुछ लोग वहां पहुंच कर मुआमला को लेन देन के ज़रीया रफ़ा दफ़ा करवा देते हैं और चंद ही मिनटों में एक ख़ास शख्सियत के पास ओहदेदार और मालिक मकान के दरमियान मुआमलत करवाने वाले पहूंच जाते हैं और यहां रक़म की आपस में तक़सीम अमल में आती है ।

अवाम के ख़्याल में ये ख़ास शख्सियत मुहल्ला के मुअज़्ज़िज़ कारपोरेटर की होती है । इसी तरह किसी बस्ती में शौहर और बीवी के दरमियान झगड़ा होजाता है । बात पुलिस इस्टेशन तक पहूंच जाती है वहां भी ये ख़ास शख्सियत यानी कारपोरेटर साहब पहूंच जाते हैं और सुलह-ओ-सफ़ाई की अच्छी ख़ासी कीमत वसूल कर के बड़ी बेशरमी से मुस्कुराते हुए निकल जाते हैं ।

क़ारईन आप को बतादें कि कौंसलरों की माहाना तनख़्वाह 4000 रुपये दी जाती है जब कि मज़ीद दो हज़ार रुपये टेलीफोन बिल की अदाएगी के तौर पर दीए जाते हैं । इस तरह बीवी और दो बच्चों को ईलाज की सहूलत हासिल है लेकिन हैरत-ओ-दिलचस्पी की बात ये है कि जी एच एम सी के बेशतर कारपोरेटर मोटर नशीन हैं हद तो ये है कि बाअज़ कौंसलरों के घरों पर चार चार गाड़ियां टहरी हुई हैं जिन में स्कारपियो , कवालीस , इनोवा जैसी कारें शामिल हैं ।

किसी भी गाड़ी की कीमत 10 लाख रुपये से कम नहीं है । अब यहां अवाम ये सवाल उठा रहे हैं कि माहाना 4 हज़ार रुपये तनख़्वाह पाने वाले कौंसलरों के पास ये गाड़ियां ये बंगले ये थाट बाट और अतराफ़ में नाक का बाल बने चमचे ( चापलूस ) कहाँ से आए । कौंसिलर तो कौंसिलरस बाअज़ सेमाजी जहद कारों का कहना है कि उन के चमचे भी कौंसलरों की आड़ में किसी ना किसी तरीकों से दौलत बटोर रहे हैं

वो शहर के अहम मुक़ामात पर कीमती होर्डिंग्स लगाते हुए ये ज़ाहिर करते हैं कि वो कौंसिलर के बिलकुल करीबी आदमी है और कोई भी उन के कमाने के अमल में रुकावट पैदा ना करे । ये लोग होर्डिंग्स पर कौंसलर और पार्टी के आला क़ाइदीन की तसावीर के साथ अपनी तस्वीर भी चस्पाँ करदेते हैं। शहर में कौंसलरों के बारे में ये बात आम है कि वो अपने हलक़ा में किसी नई दुकान , पान का डिब्बा , होटल यहां तक हज्जाम की दुकान के इफ़्तिताह में मदऊ ना करने पर नाराज होजाते हैं

और अपने चमचों के ज़रीया नाराज़गी का इज़हार करते हैं और खासतौर पर बेचारा होटल वाला रात देर गए होटल भी खुली नहीं रख सकता । हाल ही में एक साहब ने अपने घर के सामने वाक़ै लाईट का पोल हटाने के लिये मुक़ामी कौंसलर से रुजू हुए तब उन्हों ने 10 ता 15 हज़ार रुपये तलब किए और इस बात का मुक़ामी एम एल ए को कोई इलम ही नहीं है ।

काश ये कौंसलर माज़ी के उन कौंसलरों की तरह ख़िदमत बजा लाते जो साइक़लों पर और ज़्यादा से ज़्यादा मोटर सैक़लों पर फिर फिर कर अवामी मसाइल से वाक़फ़ियत हासिल करके उन्हें हल करने की कोशिश करते हम तो यही कह सकते हैं कि मीआद का जो वक़्त बाक़ी रह गया है इस में तो इंसानियत-ओ-दियानतदारी का मुज़ाहरा करें ताकि गरीब अवाम की गालियों और बद दुआएं से महफ़ूज़ रह सकें ।।