क्याम ए अमन के लिए दस्तूर मदीना सबसे पहला क़ानून

जनाब मुहम्मद आसिफ़ उद्दीन रुकन जमात-ए-इस्लामी हिंद ( बीदर) ने कहा है कि इस्लाम ने कभी ख्वातीन को चार दीवारी में क़ैद नहीं रखा, मक्का मुअज़्ज़मा ही में ख्वातीन की तालीम-ओ-तर्बीयत का काफ़ी एहतिमाम था। जनाब आसिफ़ उद्दीन ने शहरी हुक़ूक़ और बलदियाती मसाइल पर भी रोशनी डाली।

उन्होंने एक वाक़िया की तरफ़ इशारा करते हुए बताया कि हुज़ूर स०अ०व० ने मदीना आकर फ़रमाया अपने रास्तों को कुशादा
करो, इतना कुशादा कि दो लदे हुए ऊंट गुज़र सकें और फिर घर की तामीर के वक़्त दो मकानात के दरमयान खुली जगह छोड़ने की हिदायत भी दी गई।

इलावा अज़ीं मदीना में पानी की निकासी के लिए नालीयों का मुनासिब इंतेज़ाम था। जनाब मुहम्मद रफ़ीक़ अहमद रुकन जमात-ए-इस्लामी हिंद बीदर ने अपनी तक़रीर में बताया कि हुज़ूर स्०अ०व० के दौर में मस्जिद को मर्कज़ीयत हासिल थी। मस्जिद नबवीऐ दरअसल अदालत थी, तर्बीयत गाह थी।

उन्होंने बताया कि तालीम के लिए पहला मदरसा सफ़ा मस्जिद ए नब्वी ही में क़्याम किया गया। मौलाना शिबली नुमानी और की तहक़ीक़ के मुताबिक़ मदीना मुनव्वरा में 9 मदर्से क़ायम हुए जिन नौ मुस्लिम हज़रात को इस्लाम की तालीम दी जाती थी।

उन्होंने कहा कि नबी करीम स्०अ०व० ने मदीना मुनव्वरा में 50 से ज़ाइद कुँवें खुदवाए और बंजर ज़मीन काबिल काश्त बनाने के लिए किसानों में मुफ़्त तक़्सीम कर दिए जिसके नताइज भी बेहतर निकले।

मदीना में अमन-ओ-अमान के क़ियाम के लिए दस्तूर मदीना 622 में तहरीर किया गया जिस में 47 शराइत थीं। दस्तूर मदीना पूरी इंसानियत केलिए पहला क़ानून था। जनाब मुहम्मद मुअज़्ज़म अमीर जमात-ए-इस्लामी बीदर ने अपने ख़िताब में कहा कि क़ियाम अमन-ओ-अमान से दावत दीन के मौक़े अता होते हैं। उन्होंने तल्क़ीन की कि हम जिस जगह भी रहें वहां अमन-ओ-अमान को फ़रोग़ देने की मसाई अंजाम दें।

इस मौक़ा पर तबादला-ए-ख़्याल की नशिस्त भी मुनाक़िद हुई जिसमें जनाब मुहम्मद इक़बाल अहमद और जनाब मुहम्मद यूसुफ़ रहीम बीदरी ने हिस्सा लिया। जनाब मुहम्मद आरिफ़ उद्दीन मुआविन अमीर मुक़ामी ने निज़ामत के फ़राइज़ अंजाम दिये। मौलाना सैयद अबू आला मौदूदी हाल में मुनाक़िदा प्रोग्राम हज़ा में ख़वातीन-ओ-हज़रात की कसीर तादाद ने शिरकत की।