क्या बड़ी बात थी होते जो मुसलमां भी एक

हलक़ा असेबली महबूबनगर के इंतेख़ाबात में मुस्लिम उम्मीदवार सैयद इब्राहीम की शिकस्त का गुमान ग़ालिब पहले से था । ये एक हक़ीक़त है कि मुस्लमानों को किसी भी पार्टी में कोई ख़ास कलीदी ओहदा नहीं दिया जाता है । अगर किसी को दिया भी जाता है तो इस की कारकर्दगी पर गहिरी नज़र रखी जाती है ।

मुस्लिम क़ाइदीन को बार बार इस का तजुर्बा हो चुका है । इसके बावजूद वो सबक़ हासिल नहीं कर रहे हैं । जब कि रेड्डी वीलमा बी सी और दीगर ग़ैर मुस्लिम तबक़ात से वाबस्ता सयासी क़ाइदीन हर हाल में अपनी कम्यूनिटी के मुफ़ाद को पेशे नज़र रखते हैं । वो पार्टी वाबस्तगी से बालातर होकर अपने तबक़ा की बरतरी की तरफ़ तवज्जा देते हैं ।

महबूबनगर में सय्यद इब्राहीम की नाकामी के कई अस्बाब हैं। रेड्डी तबक़ा ने महिज़ अपने तबक़ा के उम्मीदवार की कामयाबी के लिए पार्टी वाबस्तगी से बालातर होकर काम किया । बी जे पी ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी जब कि टी आर एस और जे ए सी से वाबस्ता क़ाइदीन जितेंदर रेड्डी को दंड इराम ने सैयद इबाहीम की नाकामी के लिए दरपर्दा कोशिश की । इन सब हक़ायक़ से के सी आर वाक़िफ़ थे इस के बावजूद उन्होंने शेखचिल्ली की तरह ब्यान देते हुए सय्यद इबराहीम की कामयाबी का इद्दिआ किया था ।

मुस्लमान आए दिन के सी आर की शातिराना चालों में फंसते ही जा रहे हैं । सभी पार्टीयां मुस्लमानों के वोट हासिल करने की कोशिश करती है लेकिन सियासत में हिस्सादारी को बर्दाश्त नहीं करती है । ये एक हक़ीक़त है कि कांग्रेस तेलगुदेशम और दीगर पार्टीयों से वाबस्ता मुस्लिम क़ाइदीन सिर्फ अपने ओहदों की फ़िक्र में रहते हैं और ऐसे ही क़ाइदीन सय्यद इब्राहीम की नाकामी का सबब बने हैं ।

ये भी एक हक़ीक़त है कि बाअज़ क़ाइदीन इंतेख़ाबात का वक़्त आता है तो शहर से अज़ला का रुख करते हैं और अपनी रोज़ी रोटी की ख़ातिर बड़े बड़े ब्यानात देते हैं । क्योंकि मुस्लमानों की कई एक तंज़ीमें बन चुकी हैं इस में तक़रीबन ख़ुद साख्ता तंज़ीमें हैं और इससे वाबस्ता क़ाइदीन इंतेख़ाबात के आलामीया के साथ ही सरगर्म हो जाते हैं और किसी ना किसी तरह से दौलतमंद उम्मीदवारों के पास पहुंचने में कामयाबी हासिल कर लेते हैं ।

बाअज़ तंज़ीमें जो मुस्लमानों की फ़लाह-ओ-बहबूद के दावा करती है वो मुस्लिम उम्मीदवार की शिकस्त पर अपने ग़म-ओ-ग़ुस्सा का इज़हार इस्लामी तर्ज़ अमल के ख़िलाफ़ करते हैं और सिर्फ अलामती पुतलों को नज़र-ए-आतिश करते हुए मुस्लमानों का ख़ैरख़ाह ज़ाहिर करते हैं ।

एहतिजाजी मुज़ाहिरों में सिर्फ चंद अफ़राद शामिल रहते हैं जब कि वहां पर जमा शूदा तमाशाइयों की तस्वीर अख़बारों में शाय करवाते हैं । आज ज़रूरत इस बात की है कि मुस्लमान तरक़्क़ी की राह पर क़दम बढ़ाने के लिए मुत्तहिद हो जाएं । वो किसी भी जमात से वाबस्ता हूँ लेकिन इजतिमाई मुफ़ादात पर मुत्तफ़िक़ा तौर पर फ़ैसला करने की ज़रूरत है बसूरत-ए-दीगर हिंदूस्तान में मुस्लिम अक़ल्लीयत के ग़लबा के बावजूद हमेशा ज़लील-ओ-ख़ार होते रहेंगे । मुफ़क्किर इस्लाम अल्लामा इक़बाल के इन अशआर पर ग़ौर करें :

मुनफ़अत एक है इस क़ौम की नुक़्सान भी एक
एक ही सब का नबी ए दीन भी ईमान भी एक
हरम पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
क्या बड़ी बात थी होते जो मुसलमां भी एक
फ़िर्काबंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
वैसे महबूबनगर के मुस्लमानों ने बहुत मुम्किना हद तक इत्तिहाद का मुज़ाहरा करते हुए सय्यद इबराहीम को कामयाब बनाने की कोशिश की लेकिन सरबराह टी आर एस चन्द्र शेखर राव के मुनाफ़िक़ाना तर्ज़ अमल और दीगर मकारों की वजह से सय्यद इब्राहीम को मामूली वोटों से नाकामी हुई । अब भी ज़रूरत इस बात की है कि मुस्लमान अपने शऊर को बेदार करें और एक प्लेटफार्म पर जमा हो जाएं ।