क्या मस्जिद का सदर ऐसा होता है ?

मस्जिद  की इंतिज़ामी कमेटी की सदारत के मसला पर 3 जुलाई को एक नौजवान मुहम्मद एजाज़ उर्फ़ अबदुल्लाह के क़तल ने मुस्लमानों के ज़हनों में ये सवाल पैदा किया है कि आख़िर मस्जिद इंतिज़ामी कमेटी का सदर हो तो कैसा हो । इस वाक़िया ने ऐसा लगता है कि मुस्लिम मुआशरा के इस इंतिहाई अहम मौज़ू पर बहस के दरवाज़े खोल दiए हैं । रोज़नामा सियासत में इस वाक़िया की इशाअत के बाद आम मुस्लमान भी ये पूछता नज़र आरहा है कि आख़िर मसाजिद कमेटियों के सदूर कैसे हूँ ? क़ारईन ! हम ने मोइनाबाद वाक़िया से सबक़ लेते हुए शहर के दीगर सदूर के बारे में जानने की कोशिश की इस कोशिश में हमें एक मस्जिद के एसे सदर से वाक़िफ़ होने का मौक़ा मिला जो शहर की एक दो नहीं बल्कि सात मसाजिद के सदर हैं ।

आप समझ रहे होंगे कि ये साहब किसी दीनी मदर्रिसा के फ़ारिग़ उलतहसील होंगे । लोग उन के किरदार-ओ-गुफ़तार से मुतास्सिर होंगे । शरीयत की पाबंदी करने वाले सोम सलवात के पाबंद दयानतदार मिल्लत के हमदरद और ग़मख़वार और मसाजिद की ख़िदमत के जज़बा से सरशार होंगे । लेकिन ऐसा नहीं है । आप उन के बारे में पढ़ कर ना सिर्फ चौंक जाएंगे बल्कि उन की हरकात मसाजिद के इमामों पर उन की ज़्यादती और मौक़ूफ़ा आराज़ीयात पर उन की बुरी नज़र के बारे में जान कर फिर एकबार सोचने पर मजबूर हूजाएंगे कि क्या हमारी मसाजिद के ओहदा सदारत पर इस तरह के अफ़राद को फ़ाइज़ होना चाहीए ।

यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी होगा कि एक वक़्त था जब मस्जिद कमेटी के सदर के बावक़ार ओहदा पर मुहल्ला की सब से मुअज़्ज़िज़ पाबंद शरीयत मुहब्बत-ओ-मुरव्वत की हामिल जज़बा ख़िदमत से सरशार और रेयाकारी से दूर रहने वाले किसी बुज़ुर्ग को फ़ाइज़ किया जाता था और सारे मुहल्ला में सदर मस्जिद कमेटी को इज़्ज़त-ओ-एहतिराम की निगाह से देखा जाता था । यही नहीं बल्कि मुहल्ला और अतराफ़-ओ-अकनाफ़ के हिन्दू मुस्लिम मर्द-ओ-ख़वातीन मस्जिद के सदर से दुआ पढ़वाने या दुआ कराने मस्जिद के बाहर उनके मुंतज़िर रहा करते थे और शफ़एआब भी होते थे लेकिन आज मंज़र इस के बिलकुल बरअक्स(उलटा) होगया है अब तो मस्जिद कमेटी के शर से महफ़ूज़ रहने लोगों को दुआ करना पड़ रहा है ।

हाँ अब हम दुबारा इन साहब की बात करते हैं जो सात मसाजिद के सदर हैं । मौसूफ़ रिएल एस्टेट का बिज़नस करते हैं आप को इस बिज़नस के बारे में अच्छी तरह अंदाज़ा होगा कि इस से वाबस्ता चंद अफ़राद किस तरह के गुल खिलाते हैं । हमें इन साहब के बारे में सात मसाजिद में एक के इमाम ने बताया जनाब हम दूसरी रियासत से आकर यहां इमामत अंजाम दे रहे हैं और ये साहब हम से डरा धमकाकर ये काम लेते हैं । तनख़्वाह के बारे में पूछने पर वो कहते हैं कि तुम दूसरी रियासत से ताल्लुक़ रखते हो जब गावं जाउ गे तब तनख़्वाह दी जाएगी । वैसे भी तुम्हें यहां रहने मस्जिद में जगह दे दी गई है ।

इस के इलावा मुहल्ला के बच्चों को अरबी पढ़ा कर जो पैसे तुम वसूल करते हो इस से अपना घर चलालो । एक और मस्जिद के इमाम साहब ने बताया कि जब उन्हों ने मस्जिद के सदर से कहा कि घर में ( बीवी ) बीमार है और पैसों की शदीद ज़रूरत है तो उन का जवाब ये था कि तुम तो हाफ़िज़-ए-क़ुरआन हो फ़ोन पर दुआ पढ़ कर फूंक दो सब कुछ ठीक हो जाएगा । बहरहाल आइमा साहबेन के साथ इस सदर कमेटी की गुफ़्तगु से आप को अंदाज़ा हो गया होगा कि वो कितने तालीमयाफ्ता बा अख़लाक़ हैं ? इस सदर के मज़ालिम की दास्तान सुन कर हम ने सोचा कि क्यों ना उन से शख़्सी तौर पर बात की जाय चुनांचे अपनी शनाख़्त को छुपाते हुए आम मुसल्ली की हैसियत से हम ने इन से बात की ।

इसी के दौरान हमारी नज़र मस्जिद के बाज़ू ख़ाली वसीअ-ओ-अरीज़ अराज़ी(जमीन) पर पड़ी तो हम ने उन के इरादों को टटोलने कहदया ज़मीन बहुत अच्छी इतना सुनना ही था कि मौसूफ़ उछल पड़े और फ़ोरन जवाब दिया कि वो इस पर शादी ख़ाना बनाने के ख़ाहां है । उन्हों ने ये भी बताया कि इस मौक़ूफ़ा अराज़ी पर शादी ख़ाना की तामीर में अगर कोई पार्टी इन का साथ देती है तो वो फिफ्टी । फिफ्टी पर काम कर सकते हैं और तामीर में जो भी रुकावट आएगी में उसे माइनेज करलूंगा । उन की ज़बान से पता चला कि वो इस प्रोजेक्ट पर बरसों से काम कर रहे हैं और इस वक़्त तक चैन नहीं आएगा जब तक कि वो इस मौक़ूफ़ा अराज़ी को हज़म नहीं कर जाते ।

जैसा कि हम ने पहले ही ज़िक्र किया था कि ये अपनी नौइयत-ओ-अंदाज़ के मुनफ़रद सदर हैं ।मौसूफ़ का शुमार शहर के जाने माने रूडी शेटरस में हुआ करता था लेकिन उन्हों ने अपने असर-ओ-रसूख़ को इस्तिमाल में लाते हुए साल 2001 में रूडी शीट बंद करवाली एक और मस्जिद के इमाम ने बताया कि तमाम सात मसाजिद के अइम्मा सदर के नाज़ेबा सुलूक-ओ-रवैय्या से बदज़न हैं उन की जहालत का ये हाल है कि दूसरी मस्जिद जाने के बारे में कहा जाता है तो धमकियां देते हैं कि तुझे वहां से उठा कर लाॶउ गा तुझे उसी मस्जिद में इमामत करना पड़ेगा । इन इमाम साहब का कहना कि वो लोग सदर के जाहिलाना रवैय्या से परेशान हैं । हम से तो दूर की बात आम मुस्लियों से भी वो सीधे मुँह बात नहीं करते । यानी मुस्लियों के ख़्याल में उन्हों ने अपने लिये सख़्त इसलिए बना लिए हैं ताकि लोग उन से बात ना करें-ओ-मस्जिद के मुआमलात पर सवालात ना उठाएं । इस सदर ने मसाजिद कमेटियों में अपने चेलों , चापलूसों , जी हुज़ूरियों और हामियों को भर लिया है ।

ज़राए से ये भी पता चला है कि ये साहब सिर्फ नमाज़ जुमा अदा करते हैं और आम दिनों में मसाजिद के करीब से गुज़रते भी नहीं या कुछ मतलब की बात हो तो उन की गाड़ी मस्जिद के करीब दिखाई देती है । आप को ये भी बतादें कि इन का किसी सयासी जमात से ताल्लुक़ नहीं है इस के बावजूद उन के घर में इसी दर्जनों तसावीर लटकी हुई हैं जिस में वो सयासी क़ाइदीन के साथ नज़र आते हैं । हमारी मसाजिद के सदूर इस तरह होंगे तो एक सालेह मुआशरा की तशकील कैसे होगी । मुहल्ला के हर शख़्स की ज़िम्मेदारी है कि वो अपनी मस्जिद में एसे सदर का इंतिख़ाब करे जो पाबंद शरीयत हो । बहतरीन किरदार का हामिल हो और इस का दिल ख़ौफ़ ख़ुदा से काँपता हो जो अवाम के लिए ज़हमत नहीं बल्कि राहत साबित हो ।

हमारे इलम में ये बात भी आई कि बाअज़ लोग मसाजिद के सदूर की जहालत लड़ाई झगड़ों की आदत से तंग आकर अपने घरों में ही नमाज़ पढ़ने को तरजीह देते हैं । पहले ऐसा होता था कि अगर कोई मुसल्ली किसी नमाज़ में नज़र ना आता तो सदर मस्जिद कमेटी उसकी ख़ैरियत दरयाफ़त करने इस के घर पहूंच जाते ।

क़ारईन ! आप को अगर अना परस्ती में मुबतला किसी सदर से सामना पड़े तो हरगिज़ मत डरे , इस से घबराने की कोई ज़रूरत नहीं क्यों कि जिस के दिल में ख़ौफ़ ख़ुदा होता है और जो अल्लाह से डरता है वो किसी से नहीं डरता । एक सच्चा और पक्का मुस्लमान ऐसा ही होता है । काश हम भी एसे ही ख़ुदा से डरने वाले बन जाएं तो कितना बेहतर होता इस तरह के सदूर से ज़रूर छुटकारा मिल जाता ।