क्या मीडिया मुसलमानों के ख़िलाफ साजिश कर संघ के सामप्रदयिक ऐजेंडों को पूरा कर रही है ?

दंगों की आग की लपटों से राजनैतिक रोटियों को सेंककर प्रधानमंत्री की कुर्सी कैसे हासिल की जा सकती है इसकी शुरूवात संघ परिवार ने अपने हाथ की कठपुतली नरेन्द्र मोदी के माध्यम से गुजरात से की थी ।
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को पुख़्ता करने के लिये उसका मुस्लिम विरोध का प्रचार प्रसार संघ परिवार के साथ साथ दूसरे राजनैतिक दलों ने भी बडे पैमाने पर किया था । संघ परिवार ने मुस्लिम विरोध में तैयार किये गये राजनैतिक और ग़ैर राजनैतिक गुंडों की टोलियों की अगुवाई और उसका भार गुजरात के सबसे बडे गुंडे और माफिया अमित शाह के कंधों पर सौंप दिया था । ये पहला ट्रायल था जब संघ परिवार ने अपने राजनैतिक और ग़ैर राजनैतिक सभी गुंडों को इस बात के कडे निर्देश दिये थे कि मुसलमानों की इज़्जत आबरू और जानों को छीनकर वे देश को सामप्रदयिकता की भट्टी में फेंककर उनकी लाशों पर सियासत की इमारत तामीर करें । संघ के मंसूबे और उसके तयशुदा कार्यक्रम को बडे ही सहजता से मोदी और अमितशाह ने अमल में लाना चालू कर दिया । संघ के आदेशों का पालन करते हुये अमित शाह ने तो राजनैतिक और ग़ैर राजनैतिक गुंडों की फौज के साथ साथ सरकारी तंत्र में में भी मुस्लिम विरोधी गुंडों का एक संगठन खडा कर दिया जिसकी अगुवायी डी. जी. बंजारा जैसे उच्च पदों पर पदासीन अफसरों को सोंप दी गयी , जिसके बाद सरकारी तंत्र में बैठे इन गुंडों ने सोहराबुद्दीन से लेकर इशरत जहाँ तक कई बैगुनाह मुसलमानों को फर्ज़ी ऐनकाउंटर में शहीद कर मुसलमानों के ख़िलाफ भय और आतंक का माहौल कायम कर गुजरात को पूरी तरह आतंकवाद का सियासी अड्डा बनाकर खडा कर दिया ।

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दंगों का आरोपी मोदी और तडीपार अमित शाह हो या फर्ज़ी ऐनकाउंटर स्पेशलिस्ट डी जी बंजारा सभी के ख़िलाफ कोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते माननीय न्यायलय ने उन्हें ढील देते हुये किसी को बरी तो किसी को ज़मानत पर रिहा कर दिया । बरी या रिहा हुये संघ परिवार के इन गुंडों का कभी भी मीडिया के द्वारा किसी प्रकार का कोई समाचार प्रस्तुत करना तो दूर उल्टे उनके रिहाई के मामले को न्याय की जीत बताते हुये , इनको राष्ट्रवादियों के तमग़े से सुसज्जित कर दिया गया ।

दरअसल संघ परिवार के द्वारा इस्लाम और मुस्लिम विरोध में बुना गया ये ताना बना अपराधियों के धर्म के आधार पर “हिंदूकरण” की नई पटकथा है जिसमें मीडिया तथा अन्य राजनैतिक दल उसके मुस्लिम विरोध और सामप्रदयिकता की आग को फैलाने का प्रचार प्रसार का मात्र एक माध्यम हैं, रही बात माननीय न्यायालय की तो सरकरी तंत्र में बैठे न्याय करते गुंडो का धर्म के आधार पर एक ही केस में अलग अलग फैसले (हिंदुओं के लिये अलग फैसला, मुसलमानों के लिये अलग) उनका हिंदुत्ववादी प्रेम और संघ के एजेंडे को नंगा करने के लिये काफी है ।

धर्म के आधार मुसलमानों के ख़िलाफ होते ये अन्याय देश के संविधान में असंतोष का एक मुख्य कारण बनता जा रहा है और यही संघ परिवार का मुख्य ऐजेंडा भी है कि कैसे वो देशवासियों में बाबा साहेब के बनाये संविधान में असंतोष को पैदा कर उसमें मन मर्ज़ी के अनुसार काट छांट कर देश को हिंदूराष्ट्र के नाम पर ग़ुलाम कर ले । समाज को आज इसपर गंभीर चिंतन और मनन करने की अतिआवश्यकता है ।

डॉ. उमर फारूक आफरीदी
(यह लेखक के निजी विचार हैं)