सियासत के मैदान का ये खिलाड़ी टीवी के कैमरों पर कभी – कभार ही चमकता है लेकिन अपने तीखे तकरीरों और मुतनाज़ो को लेकर ये चेहरा अक्सर सुर्खियों में भी बना रहा है. सड़क से लेकर पार्लियामेंट तक सियासत की लंबी पारी खेलने वाला ये शख्स आज मुल्क में मुस्लिम सियासत का नया चेहरा बन कर उभर रहा है.
असदुद्दीन ओवैसी यूं तो हैदराबाद की सियासत की पहचान रहे है लेकिन इन दिनों मुल्क की सियासत में भी उनके नाम की चर्चा है तो उसकी वजह है हाल ही में हुए महाराष्ट्र विधानसभा के इलेक्शन
ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन ने महाराष्ट्र विधानसभा इंतेखाबात में 2 सीटें जीतीं है और उनकी इस जीत ने शिवसेना और एनसीपी समेत कांग्रेस के खेमें में भी हलचल मचा दी है. महाराष्ट्र में एमआईएम की ये जीत भले ही छोटी है लेकिन ओवैसी और उनकी पार्टी के बुलंद होते इरादों से जहां इलाकई पार्टी चौकन्ना हो गए है वहीं कांग्रेस और बीजेपी जैसी क़ौमी पार्टियों अलर्ट हो गई हैं क्योंकि महाराष्ट्र में जीत के बाद असदुद्दीन ओवैसी की नजरें अब दिल्ली विधानसभा इंतेखाबात पर आ जमीं है. बिहार से लेकर मगरिबी बंगाल तक औऱ उत्तर प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक ओवैसी अपनी पार्टी एमआईएम को आगे बढ़ाना चाहते हैं और इसीलिए अब मुखालिफ भी उन पर वार कर रहे हैं .
आज हम आपको बताएंगे कि यह शख्स इंतेखाबी बिसात पर कहां खड़े है असदुद्दीन ओवैसी के घोड़े और कहां टिकी है उनकी तलवार. साथ ही पड़ताल इस बात की भी करेंगे कि क्या है एमआईएम का ज्योग्राफी और उसकी पूरी तारीख
असदउद्दीन ओवैसी के मुताबिक उनकी पार्टी एमआईएम की हिस्ट्री इंडिपेडेंट इंडिया से शुरु होती है पर जो पीछे हो चुका है उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं.
एमआईएम यानी ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलेमीन के सदर असदउद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी के इकलौते एमपी हैं गुजश्ता दस सालों से ओवैसी हैदराबाद से इलेक्शन जीत कर लोकसभा में पहुंचते रहे हैं. इससे पहले उनके वालिद सलाहुद्दीन ओवैसी भी हैदराबाद से मुसलसल छह बार एमपी रह चुके हैं यही वजह है कि हैदराबाद की सियासत में एमआईएम का दबदबा लंबे वक्त से कायम है लेकिन अब असदउद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एमआईएम ने हैदराबाद से बाहर दूसरे रियासतों की सियासत में भी अपने पैर फैला दिए है.
असदउद्दीन ओवैसी ने आइंदा होने वाले इंतेखाबात को लेकर कहा कि, ‘हम कोशिश करेंगे कि दिल्ली में हमारी पार्टी स्टेबलिश करें. उत्तर प्रदेश में हम कई सालों से वहां काम कर रहे हैं. कई बार मुझे उत्तर प्रदेश जाने से रोक दिया गया. आजमगढ नहीं जा सकता हूं इलाहबाद नहीं जा सकता हूं. बताइये कि एक एमपी पार्लियामेंट में खड़े होकर तकरीर कर सकता है पर इलाहबाद आजमगढ़ नहीं जा सकता है इसलिए की मुलायम सिंह ये समझते हैं कि उनकी प्राइवेट प्राप्रटी है |
लेकिन इशांअल्लाह हम उत्तर प्रदेश में भी काम कर रहे है. और हमें उम्मीद है कि अवाम हमे पसंद करेगी. हमारी सरपरस्ती करेगी और इंशाअल्लाह हम अच्छा परफार्म करेंगे.
मुसलमानों के मुफाद की वकालत करने वाली ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलेमीन का हौसला इन दिनों बुलंदी पर है. दरअसल हाल के महाराष्ट्र विधानसभा इंतेखाबात में एमआईएम ने दो सीटें जीती हैं और अब उसके निशाने पर मगरिबी बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे रियासत आ गए है. मगरिबी बंगाल में 25 फीसदी मुसलमान है जो तृणमूल कांग्रेस के पाले में जाते रहे हैं और एमआईएम इन रियासतों में मुस्लिम वोट पर सेंध लगाना चाहती है.
मगरिबी बंगाल के अलावा एमआईएम की नजर झारखंड और उसके बाद दिल्ली विधानसभा इंतेखाबात पर भी टिकी हुई हैं.
ओवैसी की पार्टी पर मटियामहल के एमएलए शोएब इकबाल ने बताया, महाराष्ट्र में दो सीट जीतने से पहले एमआईएम आंध्र प्रदेश की सियासत तक ही महदूद हुई थी. इसी साल हुए तेलंगाना विधानसभा इंतेखाबात में एमआईएम ने 7 सीटें हासिल की हैं इसके बाद उसे इलाकई पार्टी का दर्जा भी हासिल हो चुका है लेकिन अब एमआईएम की पालिसी बदल चुकी है.
ओवैसी की पार्टी पर शिवसेना लीडर दिवाकर राउत का कहना है, ‘अगर औवेसी ऐसा कहते हैं कि हम 25 करोड़ है और 100 करोड़ हिंदु हैं हिंदु को खत्म करेने जैसी सोच होगी तो ये हमारे मुल्क के लिए खतरा होगा और फिर इस मुल्क में मुस्तकबिल में दूसरा पाकिस्तान की तामीर करने की इनकी गुंजाइश है क्या ? इसकी तलाशी लेना पड़ेगा.’
लेकिन अपनी पार्टी के लिए ओवैसी के बोल इन बयानों से इतर हैं ओवैसी का कहना है कि, हमारा एजेंडा कमजोर की तबकात है. उन तमाम को साथ लेकर उन तमाम की एक सियासी लीडरशिप डेवलप की जाए और हम यहीं चाहते हैं कि पार्लियामानी जम्हूरियत में जो कमजोर तबकात हैं चाहे वो दलित हो मुसलमान हो या ओबीसी हों. इन सबको मौका दिया गया है कि वो अपने वोट के जरिए अपने नुमाइंदों को कामयाब करें
बीजेपी लीडर एकनाथ खड़से ने औवैसी की एमाआईएम पर इल्ज़ाम लगाते हुए कहा, जज़्बातों को भड़का कर जो वोट लिए उसी के सबब दो सीट जीत कर आई है . अगर यही सीट दूसरी जगह से जहां माइनॉरटी कम है या नहीं है ऐसे इलाको से चुनकर आते तो मैं ये मानता कि ये एक बरतर्फ मौज़ूदा इदारा हैं और मुल्क में एक नई पार्टी का तलावा हुआ है . ये एक तरह की मज़हबी और महदूद पार्टी है जो आज पैदा हुई है जो उसी के समाज के ऊपर चल रही है, उसी के समाज की फिक्र करती है या उम्मीद करती है.
तकरीबन 56 सालों के अपने सियासी सफर में MIM मुसलमानों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करती रही है और इसी मुद्दे पर वो महाराष्ट्र विधानसभा इलेक्शन में भी उतरी थी. औरंगाबाद सेंट्रल के अलावा मुंबई की भायखला सीट पर कब्जा जमाने वाली एमआईएम की ये जीत भले ही छोटी है लेकिन इसके मायने बड़े लगाए जा रहे हैं. जानकारों भी मानते हैं कि मुस्लिम वोटों के लिए छिड़ी इस जंग में एमआईएम आने वाले विधानसभा इंतेखाबात में कांग्रेस और मुबय्यना तौर पर सेक्युलर पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती है और इसीलिए एमआईएम पर बीजेपी के साथ साठ-गांठ के इल्ज़ाम भी लग रहे है.
सीनीयर सहाफी शेष नाराय़ण सिंह का माननता है कि ‘बीजेपी सपोर्ट कर रही है इसके बारे में मुकम्मल मालूमात नहीं लेकिन अगर जो ये हालात है उनसे लगता है कि ये अगर बीजेपी कर रही है जो उनके खिलाफ है उनको वो डिवाइड कर रही है तो वो सियासत में जायज है. मुसलमानों के वोट बांट के और अपने खिलाफ खड़ी हुई जमातों को अगर कमजोर कर रही है तो कर रही है कर सकती है.’
बीजेपी पर असदउद्दीन ओवैसी का कहना है ‘देखिए बीजेपी अगर मुझे इस्तेमाल कर रही है तो आप कोई प्रूफ तो बता दो ना भईया. भई 15 साल से आप लोग पावर में रहे महाराष्ट्र में मालेगांव का ब्लास्ट हुआ 2004 और 2006. एक फैसला ये नहीं कर सके दस साल हुकूमत किए दिल्ली में और पंद्रह साल यहां महाराष्ट्र में. कौन किया मालेगांव का ब्लास्ट. हिंदुओं ने किया या अभिनव भारत ने किया या मालेगांव के उन आठ नौ मुसलमान बच्चों ने किया. मेरा बीजेपी से मैं तो बीजेपी का सबसे बड़ा बिटर अपोनेंट हूं. और रहूंगा इंशाअल्लाह तआला जब तक जिंदा रहूंगा आरएसएस और बीजेपी का मैं सख्ती से मुखालफत करुंगा.’
दरअसल असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी MIM का वजूद मुस्लिम वोटों पर ही टिका हुआ माना जाता है और यही वजह है कि हैदराबाद से बाहर दूसरे रियासतों की उन्हीं सीटों पर MIM अपने उम्मीदवार उतार रही है जहां मुसलमान वोटर्स की तादाद ज्यादा है. लेकिन असदउद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोट बैंक की इस सियासत को ही सिरे से नकार रहे हैं.
मुस्लिम वोट बैंक पर असदउद्दीन ओवैसी ने सफाई देते हुए कहा,’ मुसलमानों का वोट बैंक तो है ही नहीं भाई मैंने तो नरेंद्र मोदी को मुबारकबाद दिया पार्लियामेंट में आपने अच्छा किया जो मुस्लिम वोट बैंक के इस मिथ को आपने तोड़ दिया. मैं तो मुबारक बाद दिया अब फिर दे रहा हूं. कहां है मुस्लिम वोट बैंक. हम तो 1956 से कहते आ रहे हैं. एक मेजारिटी वोट बैंक है. मुस्लिम वोट बैंक तो था ही नहीं कभी. मेजारिटी वोट बैंक को जो मजबूत करता रहा वो हुकूमत बनाता रहा और हमको ये कह कर बहलाया गया कि अरे आपका मुस्लिम वोट बैंक है आपका फला है और हम लोग खुश होते रहे. और नतीजा क्या हुआ हम वहां से नीचे नीचे आकर यहां गिर गए. तो कोई मुस्लिम वोट बैंक नहीं है ये गलत बात है.
बीजेपी लीडर एकनाथ खड़से के मुताबिक ,’आज तक मुसलमान मआशरा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ये अपना मआशरा है अपने खूटे से बांधा हुआ समाज है ऐसे समझ कर चलती थी जब इनका वोटर बाहर खिसकता नजर आ रहा था तो किसके ऊपर इल्ज़ाम लगाना था बीजेपी पर. एक बात है कि बीजेपी ने एमआईएम का साथ कभी नहीं दिया और ना ही कभी लिया. कभी उनकी हिमायत भी नहीं किया और बाद में भी नहीं करेंगे तो कैसे कह सकते हैं ये समाजवादी. धीरे धीरे अगर ये मुसलमान मआशरा एमआईएम की तरफ चला जाएगा तो जैसी कांग्रेस की हालत आज हो रही है जैसा् मोदी जी ने कहा है कि कांग्रेस आज़ाद हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के सारे रियासतों में ये दिख रहा है तो इनको ये डर है कि आज महाराष्ट्र में 30४0 एमएलए उनके दिख रहे हैं अगले 5 साल में 5-10 भी दिखते या नहीं दिखते.
हैदराबाद की सियासत में बरसों से चमक रही मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन की पहचान एक मुस्लिम सियासी पार्टी के तौर पर होती है यही वजह है कि इस पार्टी की नीयत औऱ इसके मकसद को लेकर कई तरह की शकों के बोल भी सुनाई पड़ते रहे हैं MIM को लेकर रही इन शकों का जिक्र भी हम करेंगे आगे लेकिन उससे पहले देखिए MIM के जन्म और उसमें आए बदलाव की ये कहानी.
मजलिस इत्तेहादुल मुसलेमीन यानी एमआईएम की तंसीइब आज से तकरीबन 94 साल पहले इसी हैदराबाद शहर में की गई थी. शुरुवात में ये एक गैर सियासी तंज़ीम हुआ करता था और इस तंज़ीम का मकसद मुसलमानों को एक प्लेटफॉर्म पर लाना था. लेकिन बदलते दौर और हालात के साथ -साथ एमआईएम का चेहरा और उसका मकसद भी बदलता चला गया और आज वो पूरी तरह एक सियासी पार्टी बन चुकी है.
ये दास्तान उस दौर की है जब देश को आजाद होने में 20 साल बाकी थे. जुनूबी हिंदुस्तान की रियासत हैदराबाद पर निजाम उस्मान अली खान की हुकूमत थी. निजामशाही के उस दौर में नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने 1927 में मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन नाम की शफाकती तंज़ीम (Cultural Organization) की नींव रखी थी. 1938 में इस तंज़ीम का पहला सदर बहादुर यार जंग को बनाया गया था. एमआईएम के फाउंडर मेम्बर्स में हैदराबाद के एक सियासतदां सैयद कासिम रजवी भी शामिल थे जो रजाकार नाम के हथियारबंद लड़ाकू तंज़ीम के मुखिया भी थे और इसीलिए मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन तंज़ीम को खड़ा करने में रजाकारों का भी अहम किरदार माना जाता रही है. रजाकार और मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन तंज़ीम निजाम हैदराबाद के पैरोकार और उनके कट्टर हामियों में शुमार किए जाते थे और यही वजह है कि जब 1947 में मुल्क आजाद हुआ तो हैदराबाद रियासत के हिंदुस्तान में मिल जाने का कासिम रजवी और उसके पैरामिल्ट्री तंज़ीम यानी रजाकारों ने जमकर एहतिजाज भी किया था.
नवंबर 1947 में हिंदुस्तान के पहले वज़ीर ए दाखिला सरदार पटेल और कासिम रजवी की दिल्ली में ये पहली और आखिरी मुलाकात थी. कासिम रजवी निजाम हैदराबाद का खासम-खास था और 1947 आते आते निजाम और उसकी सरकार पूरी तरह से रजवी की गिरफ्त में आ चुकी थी. 10 सिंतबर 1948 को सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब को एक खत लिखा जिसमें उन्होने हैदराबाद को हिंदुस्तान में शामिल होने का आखिरी मौका दिया था.
लेकिन हैदराबाद के निजाम ने जब सरदार पटेल की अपील को ठुकरा दी तो इसके जवाब में हिंदुस्तानी फौज ने 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत पर चारों तरफ से धावा बोल दिया और आखिरकार निजाम हैदराबाद को झुकना पड़ा.
हैदराबाद रियासत का हिंदुस्तान में मिल जाने के बाद मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन तंज़ीम भी कुछ सालों तक गैर फआल पड़ा रहा लेकिन साल 1958 में एक बार फिर एमआईएम एक नई सोच के साथ सियासत के मैदान में कूद पड़ा.
सन 1958 में मजलिस इत्तेहादुल मुसलेमीन को हैदराबाद के ही मशहूर वकील मौलवी अब्दुल वहीद ओवैसी ने दोबारा सरगर्म किया था. साल 1959 में एमआईएम ने इंतेखाबी सियासत में अपना पहला कदम रखा और हैदराबाद म्यूनसपालिटी के जिम्नी इंतेखाबात में वो दो सीटें जीतने में कामयाब भी रही थी. ये वो पहली जीत थी जिसके बाद एमआईएम और ओवैसी खानदान की सियासतबाज़ी का सिलसिला हैदराबाद में फिर कभी थमा नहीं.
अपनी पार्टी की तारीख को लेकर औवैसी का कहना है कि,’लोग एमआईएम की हिस्ट्री की बात करते है मगर मैं उनको बताना चाह रहा हूं कि हमारी हिस्ट्री इंडिपेडेंट इंडिया से शुरु होती है. जो पास्ट में हुआ मैं उसका जिम्मेदार नहीं हूं. हम तो हिंदुस्तान की आजादी पर फख्र करते हैं. और हमने अपनी पार्टी के आईन को बदला और कहा कि हम इंडिया के आईन (संविधान) को मानेंगे. और हम पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में हिस्सा लेंगे. पुरानी एमआईएम से हमारा कोई लेन देन नहीं है. ये जो नई वाली एमआईएम है हम ना सिर्फ डेमोक्रेसी में यकीन करते है बल्कि पार्टीसिपेट करते हैं. माजी में जो हुआ उससे हमें कोई मतलब नहीं है.’
महाराष्ट्र इलेक्शन में एमआईएम की जीत के बाद असदुद्दीन और उनकी पार्टी चर्चा में हैं लेकिन औवेसी और उनकी पार्टी अपने मुतनाज़ो और भड़काउं तकरीरों की वजह से अक्सर सुर्खियां बटोरती रही है. साल 2012 में ओवेसी के छोटे भाई और पार्टी एमएलए अकबरुद्दीन ओवौसी को आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले में भड़काऊं तकरीर देने के लिए जेल भी जाना पड़ा है|
अकबररुद्दीन का वो मुतनाज़ा तकरीर आज भी उनका और उनकी पार्टी मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन का पीछा नहीं छोड़ रहा है.
शिवसेना लीडर दिवाकर राउत का कहना है ये जो स्पीच मैंने बताई अगर उसमें ये औवैसी बिरादरान ऐसा कहते होंगे कि हां हम तो पाकिस्तान जाएंगे नहीं लेकिन इस देश को पाकिस्तान में बदली करके हमारे लिए क्या रखेगें टूटा फूटा राम मंदिर रखेंगे, हम सब लेकर जाएगें, लालकिला, ताजमहल ये सब लेकर जाएंगे और टूटा फूटा राममंदिर छोड़ेंगें. ये जो उनका एक्शन देश के लिए नुकसान देह है.
मुकदमें पर अकबरुद्दीन ओवैसी ने सफाई देते हुए कहा, ‘वरुण गांधी पर भी तो मुकदमा चला था और हम उम्मीद करते है कि जिस तरह कोर्ट ने वरुण गांधी के साथ इंसाफ किया था कोर्ट हमारे साथ भी इंसाफ करेगी. मगर एक बात बता दीजिए महाराष्ट्र में प्रवीण तोगड़िया के उपर और दूसरी पार्टी के बड़े लीडर है उनके ऊपर कितने एफआईआऱ है उनके वारंट क्यों तामील नहीं होते ये दोहरा रवैया क्यों? अगर कानून है तो कानून सबके ऊपर इस्तेमाल कीजिए मगर वो सब पर इस्तेमाल नहीं होता.
असदुद्दीन ओवैसी का दावा है कि मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन सिर्फ मुसलमानों की पार्टी नहीं है बल्कि इसमें पिछडे और दलित तबका के लोग भी शामिल है. मआशरे के कमजोर और मरहूम तबके को इक्तेदार में हिस्सेदार बनाने को वो अपनी पार्टी का सबसे अहम मकसद भी बताते है. लेकिन गुजरे जमाने में लोगों के जज़्बातो को भड़काने के इल्ज़ाम और मुसलमानों की खुल कर वकालत की वजह से उनकी पार्टी की शबिया (इमेज) एक मुस्लिम सियासी पार्टी के तौर पर बनी है और यही वजह है कि उनकी पार्टी की नज़रिया और उसकी नीयत को लेकर भी तमाम सवाल खड़े होते रहे हैं.
ओवैसी ने आगे कहा, ‘हम तो कम्यूनल हैं ठीक है जो सेक्युलर पार्टी है उनको समझना चाहिए कि हम जब बीजेपी को अपोज करेंगे तो इसका ये मतलब नहीं है कि हम इनका साथ देंगे. इन सो कॉल्ड सेक्युलर पार्टियों का हम अपोज करेंगे ये मेरा डेमोक्रेटिक राइट है मैं अपोज करुंगा. लेकिन ये कांग्रेस पार्टी या सेक्युलर पार्टियों के पास क्या कोई इटंलेक्चुअल नोटरी आफिस है
क्या सेक्युरालिज्म का सर्टिफिकेट देने के लिए कि इन्ही के पास गए तो हम सेक्युलर हो गए कल तक नारायण राणे, राणे ने तो कहा था कि श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट पर अमल होगा तो मुंबई जलेगा. उनके दूसरे एमपी जो अभी इलेक्शन हार गए अभी लोकसभा तक वो शिवसेना में थे जैसे कांग्रेस से एनसीपी में आ गए सेक्युलर हो गए. मुझे इनके सेक्युलर सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं है. हम अपना काम करेंगे अवाम हमको पसंद करेगी तो वोट डालेंगे मगर ये पेट्रोनाइजिंग एटीट्यूड. ये फ्यूडिलिस्टिक एटीट्यूड है वो गया जमाना. ये नया हिंदुस्तान है.
असदउद्दीन ओवैसी ने साल 2004 में पहली बार हैदराबाद से लोकसभा का इलेक्शन लड़े थे और वो यहां से मुसलसल तीन बार इएक्शन जीत कर लोकसभा पहुंचते रहे हैं. इससे पहले उनके वालिद सलाहुद्दीन ओवैसी भी हैदराबाद से छह बार एमपी रह चुके हैं जाहिर है हैदराबाद और उसके आस- पास के इलाके में ओवैसी और उनकी पार्टी का दबदबा लंबे वक्त से कोई तोड़ नहीं सका है.
साल 1984 के बाद से हैदराबाद लोकसभा सीट पर एमआईएम का कब्जा है. हैदराबाद औऱ आस-पास के इलाके में आज भी ओवैसी बिरादरान की सियासी ताकत का कोई तोड़ नहीं ढूढा जा सका है तो इसके पीछे एक वजह यहां किए गए तरक्की के काम भी है.
मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर सड़क, अस्पताल और मोहल्ले की नाली तक हर काम में ओवैसी बिरादर अपना सीधा दखल रखते हैं. एमआईएम के इस दफ्तर के दरवाजे इलाके के लोगों के लिए हमेशा खुले रहते है और इसीलिए पार्टी का काम जमीन पर नजर भी आता है लेकिन तरक्की की इस सियासत के साथ साथ एमआईएम का एक दूसरा मुतनाज़ा चेहरा भी लोगों के सामने आता रहा है जिसने हमेशा उसकी नीयत और उसके मकसद पर सवाल खड़े किए हैं और सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि मुसलमानों के हक की वकालत करने वाली एमआईएम का क्या मुल्क के मुसलमान भी साथ देंगे.
असदउद्दीन ओवैसी ने आगे बताया, ‘आप एमआई एम की सियासत को पसंद नहीं करते हो ये आपका डेमोक्रेटिक राइट है. मगर क्या हम इस कामयाबी को पूरे साउथ एशिया में नहीं बता सकते. कि देखो पाकिस्तान में किस तरह से हिंदुओं से बर्ताव किया जा रहा है.
यहां पर हमारी पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में एक माइनारिटी पार्टी है जो माइनारिटी के काज को आगे रखती है और रुलिंग पार्टी बीजेपी की बिटर अपोनेंट होने के बाद भी वो कामयाब होती है. ये हमारी डेमोक्रेसी की कामयाबी है. बजाए इसको बताने पूरे साउथ एशिया के पूरे के पूरे ऐसा बता रहे हैं कि आसमान गिर गया. अरे भईया मैं पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी को मजबूत कर रहा हूं इसको समझने की जरुरत है. तो जितने क्रिटिसाइज करने वाले हैं बडे बडे पत्रकार है. अखबारों में आर्टिकल लिखते मगर क्या कभी इनमें इतना दम है. कि नरेंद्र मोदी के बारे में लिख दे.
आरएसएस के बारे में आर्टिकल लिखे अपने अखबार में. कोई अखबार तो पहले छापेगा नहीं और इनमें दम भी नहीं हैलिखने के लिए. मगर क्योकि हम एक ईजी टार्गेट है हम खामोश नहीं बैठेंगे. हम इनका जवाब देंगे हम जम्हूरी अंदाज में बताएंगे लोगों को’
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