इन दिनों डील आफ़ सेंचुरी की बातें अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में बार बार आ रही हैं। यह फ़िलिस्तीन के संबंध में इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू की साज़िश है जिसमें उन्हें अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के दामाद जेर्ड कुशनर, अमरीका के विशेष दूत जैस ग्रीनब्लाट की भरपूर मदद मिल रही है।
इलाक़े के देशों की बात की जाए तो सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के बारे में कहा जाता है कि उन्हें भी यह योजना पसंद आ गई है हालांकि यह भी अटकलें हैं कि मुहम्मद बिन सलमान की पसंद या नापसंद का सवाल नहीं है उन्हें सऊदी अरब की सत्ता में बग़ैर बारी के इसीलिए पहुंचाया गया है कि वह अमरीका और इस्राईल की मांगों को चुपचाप मानते जाएं।
डील आफ़ सेंचुरी के बारे में अभी कोई औपचारिक घोषणा तो नहीं की गई है लेकिन इसके संबंध में जानकारियां लीक होकर आ रही हैं। इन जानकारियों से पता चलता है कि इस डील में मिस्र और जार्डन की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
बताया जाता है कि इस डील के तहत ग़ज़्ज़ा पट्टी के इलाक़े को पश्चिमी तट के इलाक़े से पूरी तरह अलग कर दिया जाएगा। ग़ज़्ज़ा वासियों के लिए पीने के पानी, बिजली, अन्य देशों की यात्रा की सुवधा, बंदरगाह और एयरपोर्ट का बंदोबस्त किया जाएगा।
यही काम ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर उत्तरी आयरलैंड में कर चुके हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में ठोस राजनैतिक समाधान देने के बजाए आर्थिक व अन्य सुविधाएं देकर मामले को दबा दिया था। ग़ज़्ज़ा के मामले में यह पैसा सऊदी अरब और इमारात से अदा करवाया जाएगा और यह रक़म एक अरब डालर के आस पास बताई जाती है।
ग़ज़्ज़ा के लिए जो बिजली सप्लाई की जाएगी उसका केन्द्र मिस्र के भीतर बनाया जाएगा। ग़ज़्ज़ा के लिए जो एयरपोर्ट बनाया जाएगा उसका संचालन भी मिस्र के हाथ में रहेगा इसी तरह गज़्ज़ा के लिए जो बंदरगाह बनाई जाएगी उसे भी मिस्र के नियंत्रण में दिय जाएगा ताकि कोई भी ग़ज़्जा की यात्रा करना चाहे तो पहले वह मिस्र से इसकी अनुमति हासिल करें
पश्चिमी तट के बारे में यह योजना बनाई गई है कि इस्राईल क़ब्ज़े से इसका जो हिस्सा बचा रह गया है उसे जार्डन के हवाले कर दिया जाएगा जो इस क्षेत्र को फ़ेडरल सिस्टम के आधार पर चलाएगा। इसका मतलब यह है कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना की योजना पर पूरी तरह पानी फेर देने की कोशिश हो रही है तथा बैतुल मुक़द्दस को पूरी तरह इस्राईल को सौंप दिया जाएगा।
फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को पानी बिजली, बंदरगाह एयरपोर्ट इन सभी चीज़ों की ज़रूरत तो है लेकिन इन चीज़ों के लिए वह अपनी मूल मांगों से पीछे हट जाए इस बात की संभावना नहीं है।
वैसे डील आफ़ दी सेंचुरी के बारे में यह बातें भी कही जाने लगी हैं कि इस योजना का फ़िलिस्तीन की ज़मीनी सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है।
फ़ारेन पालीसी मैगज़ीन ने अपने एक लेख में लिखा भी है कि यह योजना पूरी तरह से विफल योजना है और इससे एक बड़ी त्रासदी की आशंका उत्पन्न होने जा रही है।
अमरीका के प्रसिद्ध टीकाकार एलिन गोल्डनबर्ग ने फ़ारेन पालीसी में अपने लेख में लिखा है कि कुशनर की योजना में कोई दम नहीं है, ग़ज़्ज़ा की स्थिरता का मामला बहुत महत्वपूर्ण है।
इस्राईल का के अख़बार इस्राईल टुडे की रिपोर्ट के अनुसार मिस्र, सऊदी अरब, इमारात और जार्डन ने इस डील को स्वीकार कर लिया है लेकिन क्या फ़िलिस्तीनी भी इस डील को स्वीकार करे लेंगे? इस सवाल का जवाब यह है कि हो सकता है कि इस्राईल और अमरीका कुछ नेताओं को ख़रीद लें और अपनी मनमानी की कोशिश करें लेकिन फ़िलिस्तीनी जनता को उसकी मूल मांगें छोड़ने पर तैयार करना असंभव है।
अमरीका इस समय फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुखय महमूद अब्बास की जगत पर किसी अन्य व्यक्ति को लाने की कोशिश में है क्योंकि महमूद अब्बास ने इस डील को मानने से इंकार कर दिया है।
नेता बदलने से भी कुछ होने वाला नहीं है फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का फ़ैसला नहीं बदलेगा।