क्या है यूनिफार्म सिविल कोड ?

जाकिर रियाज़, नई दिल्ली: केन्द्रीय विधि आयोग द्वारा सामान नागरिक सहिंता (यूसीसी) के मुद्दे पर राय मांगे जाने के बाद एक बार फिर समान नागरिक सहिंता की बहस का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है | यूसीसी, देश की स्वतंत्रता के वक़्त से ही बहस और मुद्दों का केंद्र रही है | इस बहस में शासक दल की विचारधारा के आधार पर विचार विमर्श बदलते रहते हैं | हमें आगे बढ़ने से पहले यह समझना होगा कि यूनिफार्म सिविल कोड क्या है?

यूनिफार्म सिविल कोड

भारतीय संविधान के चौथे अध्याय में अनुच्छेद 44 में राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह यूसीसी लागू करे | यहाँ हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि यह अध्याय राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (डीपीएसपी) के बारे में बात करता है और संवेधानिक दृष्टि से इसको लागू करना आवश्यक नहीं हैं | इन नीति निदेशक तत्वों को लागू न किये जाने को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है |
सामान नागरिक सहिंता (यूसीसी) से आशय है कि सामान परिस्तिथियों में सामान क़ानून | अनुच्छेद 44 के अनुसार यूसीसी वर्तमान में विभिन्न समुदाय में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, बच्चों की अभिरक्षा, बच्चों को गोद लेने व भरणपोषण के सम्बन्ध में प्रचलित अलग अलग पारिवारिक कानूनों की जगह लेगा | इनमें हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ(शरियत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937, क्रिस्चियन मैरिज एक्ट व पारसी मैरिज एंड डायवोर्स एक्ट शामिल हैं |

यूसीसी पर बहस

स्वतंत्र भारत में सबसे पहले यूसीसी को लागू करने की दिशा में प्रयास जवाहर लाल नेहरु और डॉ अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल के जरिये किया था | जब हिन्दू कोड बिल संसद में प्रस्तुत किया गया तब हिन्दू महासभा के नेताओं एनसी चटर्जी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसका कड़ा विरोध किया | उन्होंने कहा कि यह बिल हिन्दू समाज के लिए खतरा है और इसके लागू होने से हिन्दू समाज बिखर जाएगा | इस बिल के ज़रिये हिन्दू क़ानून में कुछ सीमित सुधार लाने का प्रयास किया गया था | इसमें तलाक की प्रक्रिया निर्धारित की गयी थी और पुत्रियों को अपने पिता की संपत्ति में उनकी विधवा और पुत्रों के बराबर अधिकार दिए गए थे | यह विधेयक कुछ कांग्रेस नेताओं को भी स्वीकार्य नहीं था जिसे कारण डॉ अंबेडकर को विधि मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था | हालाँकि यह बिल बाद में तीन अलग अलग एक्ट बना कर लागू किया गया लेकिन ये वैसा नहीं था जिसकी कल्पना जवाहर लाल नेहरु और डॉ अंबेडकर ने की थी |
इसके पश्चात यूसीसी पर एक बार फिर बड़ी बहस 1985 में शाह बानो केस के बाद शुरू हुयी | यह केस शाह बानो ने अपने पति से गुज़ारा भत्ता पाने के लिए किया था | इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के हक में फैसला किया लेकिन मुस्लिम समुदाय के एक बड़े तबके के विरोध के बाद तत्कालीन सरकार ने मुस्लिम महिला (तालाक अधिकार सरंक्षण) एक्ट, 1986 लागू कर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावित करने की कोशिश की | हालाँकि 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने इसी एक्ट के आधार पर डेनियल लतीफी केस में मुस्लिम महिलाओं के हक में गुज़ारे भत्ते की एक बेहतरीन व्याख्या की |
इस बहस में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भारतीय के नारीवादी आन्दोलन ने अपने शुरूआती दौर में यूसीसी की मांग की थी परन्तु बाद में उसने यह मांग बंद कर दी | नारीवादी आन्दोलन के नेताओं को यह अहसाह हो गया कि यूसीसी की बात सिर्फ इसलिए की जा रही है ताकि अल्प्संख्याओं का दानवीकरण किया जा सके और उनके धार्मिक क़ानूनों के स्थान पर हिन्दू सवर्ण वर्ग के उतने ही या उनसे ज्यादा पित्रसत्तात्मक परम्पराओं को देश पर लादा जा सके | आज यूसीसी के पक्ष में सबसे ज्यादा बातें भाजपा और हिन्दू राष्ट्रवादियों द्वारा की जा रही हैं | यह आश्चर्यजनक है कि वे हिन्दू संगठन, जिन्होंने हिन्दू कोड बिल का जी जान से विरोध किया था, अब इस आधार पर यूसीसी लागू किये जाने की मांग कर रहे हैं कि इससे महिलाओं को न्याय मिलेगा | जो हिन्दू नेता अपनी महिलाओं को अधिक अधिकार देना नहीं चाहते थे, वे अब मुस्लिम महिलाओं के संरक्षक बनने की कोशिश कर रहे हैं | क्या हम उन पर भरोसा कर सकते हैं ?
यह स्पष्ट है कि मुस्लिम महिलाओं के लिए मुंहज़बानी तलाक़ और पति से गुज़ारा भत्ता प्राप्त करना बड़ी समस्याएं हैं | परन्तु घरेलु हिंसा अधिनियम, 2005 और दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 125 ने मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ता पाने का अधिकार दिया है | डेनियल लतीफी और शमीम आरा जैसे मामलों में न्यायालयों के निर्णय से पतियों द्वारा मनमाने ढंग से तलाक़ पर भी रोक लगी है | इसलिए जब न्यायालयों द्वारा न्यायोचित निर्णय आ रहे हैं तब मौजूदा शासक दल जो अपने अल्पसंख्यक द्वेष के लिए जाना जाता है उसकी यूसीसी के पीछे छिपी मंशा को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है |

यूसीसी की मांग के पीछे क्या कारण हैं?

दरअसल, यूसीसी का इस्तेमाल कर मुसलमानों को एक राष्ट्रविरोधी समुदाय के रूप में प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है | इसके माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है कि मुसलमान दकियानूसी और पिछड़ा हुआ है | वह महिलाओं का सम्मान नहीं करता | साथ ही वह देश के संविधान और वह न्याय व्यवस्था में यकीन नहीं रखता | यह मुसलमानों का दानवीकरण कर आने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव में फायदा उठाने की साजिश के तहत किया जा रहा है | इससे पहले भी गौमांस और लव जिहाद के मुद्दों को उछल कर भाजपा ऐसा कर चुकी है |