क्यूँ नहीं बर्दाश्त हो पा रही टीना दाबी और अतहर शफ़ी खान की सफलता?

आरक्षण को लेकर कई लोग यूं है कि आरक्षण के समर्थन में हैं तो कुछ यूं भी हैं जो इसका समर्थन नहीं करते. दोनों बातों के अपने अपने तर्क हो सकते हैं या यूं भी हो सकता है कि कुछ मुद्दों पर आपको आरक्षण का समर्थन करने वाले पसंद आयें तो कुछ पर विरोध करने वाले लेकिन जो ये गुस्सा है जो हमें अक्सर नज़र आता है ख़ासतौर से उन पक्षों की तरफ़ से जो आरक्षण के विरोधी हैं ये सही नहीं है. ज़िन्दगी के इतने सालों में मैंने नहीं देखा कि कोई इंसान जो बेहतर समझ रखता है वो दुनिया में कामयाब ना हो पाए. ऐसा ज़रूरी तो नहीं कि सब आईएएस ही बनें और ऐसा भी ज़रूरी नहीं कि सबको अपनी योग्यता साबित करने के लिए कोई इम्तिहान ही पास करना पड़े.
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बहरहाल मौजूदा बहस टीना दाबी को लेकर है. टीना दाबी ने इस बार आईएएस की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया है और ये एक बड़ी ख़ुशी की बात है इसलिए भी क्यूंकि वो लड़की हैं और इसलिए भी कि वो दलित हैं, हालाँकि इन सब बातों का ज़िक्र करके मैं उनकी कामयाबी को कम नहीं करना चाह रहा क्यूंकि उनकी पहचान में उनका टीना दाबी होना ज़्यादा अहम है बजाय उनके जेंडर या उनकी ज़ात के. फिर भी उस कौम के लिए जो सदियों से पीछे रही है उसको ऐसे हीरो-हीरोइन की तलाश होती है इसलिए ज़िक्र करना ज़रूरी था. एक और कारण है इस बातचीत का वो है पिछले कुछ दिनों से चली आ रही सोशल मीडिया की बहस. अपनी प्रोफाइल और कई दूसरी फेसबुक प्रोफाइल के ज़रिये मुझे ये जानकारी मिली कि कोई एक ऐसा कैंडिडेट था जिसने टीना से ज़्यादा नंबर आईएएस की प्रेलिम्स परीक्षा में हासिल किये लेकिन टीना चूंकि दलित थीं तो उनको मुख्य परीक्षा देने को मिल गयी जबकि दूसरा कैंडिडेट चूंकि सवर्ण था इसलिए उसे नहीं मिली. इस बात को लेकर आरक्षण विरोधी टीना को निशाना बना रहे हैं वैसे आपको जानकार हैरानी होगी कि इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जो दो दिन पहले तक टीना की तारीफ़ों के पुल बांध रहे थे, बार बार एक पोस्ट शेयर की जा रही थी जिसमें बताया जा रहा था कि टीना प्रधानमंत्री मोदी को अपना आदर्श मानती हैं लेकिन जैसे ही टीना ने इस बात का खंडन किया, मामला पलट गया.
मुद्दे की बात ये है कि हो सकता है कि किसी और के नंबर प्रेलिम्स में टीना से ज़्यादा आये हों, किसी और के क्या कईयों के आये होंगे लेकिन ये कौन सा लॉजिक है कि भाई इंटर में टॉप किया तो क्या प्री-बोर्ड में हमारे ज़्यादा थे.
कुछ लोगों ने इस वाकये को आरक्षण-विरोध के समर्थन में एक बड़ा तर्क माना जबकि इसके उलट ये तो आरक्षण का फ़ायदा नज़र आता है, मैं समझता हूँ कि अगर प्री टेस्ट में वो कुछ नंबर कम होने के नाते निकाल दी गयी होतीं तो हम एक होनहार प्रतिभा को सामान्य महसूस करते.मेरी समझ में ये बात नहीं आती कि टीना टॉप नहीं करतीं तो कोई और करता या फिर कोई और, पिछले इतने सालों में ये पहली बार हो रहा है जब हम एक आईएएस टॉपर को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.इसका सिर्फ़ एक ही कारण नहीं है बल्कि दो हैं, एक तो उस लड़की का दलित होना और उससे भी बड़ा उस लड़की का लड़की-दलित होना. इसके बाद जब इन आरक्षण समर्थकों की निगाहें जाती हैं तो दूसरे नंबर पे एक मुसलमान है वो भी आम मुसलमान नहीं, कश्मीरी मुसलमान. इन बातों को पचा पाना आरक्षण विरोधियों के लिए मुश्किल है. कुछ लोग ये बात कह सकते हैं कि कश्मीरी मुसलमान वाली बात ज़बरदस्ती लिखी गयी है लेकिन वो इसीलिए लिखी गयी है कि ये उन लोगों को चोट पहुंचाए जो हर जगह नफ़रत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.
सही मायनों में मुझे आईएएस के एग्जाम में कोई टॉप करे या न करे इससे अब कोई ख़ास फ़र् पड़ता लेकिन जिस तरह से आजकल कुछ लोग अफवाहें फैला रहे हैं वो निंदनीय है. जिसने टॉप कर दिया है उसको मान लो अब, बिला-वजह का ड्रामा करने से कुछ होना नहीं है. बल्कि सभी देशवासियों को इस बात को लेकर ख़ुश होना चाहिए कि हमारे मुल्क में टॉप चार रैंक चार अलग अलग तबक़ों के पास गयी हैं इनमें दलित भी है, मुसलमान भी, सिख भी और सवर्ण भी.. मैं उम्मीद करूंगा अगली बार इस लिस्ट के ऊपरी पायदान पर इसाई और दूसरे अल्पसंख्यक समाज की नुमाइंदगी हो.

और हाँ, जिसको आरक्षण का विरोध करना है समर्थन करना है करो लेकिन इस खेल तमाशे में  किसी व्यक्ति को टारगेट करना ठीक नहीं है.

(अरग़वान रब्बही)