यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि अलीगढ़ में ईसाई स्कूलों को क्रिसमस नहीं मनाने का ‘आदेश’ देने वाला हिंदू जागरण मंच हिंदू युवा वाहिनी से संबंध रखता है। यह वही युवा वाहिनी है, जिसका गठन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था। ईसाई समुदाय पर इस तरह का अत्याचार कथित धर्मांतरण के नाम पर हो रहा है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद ऐसे तत्वों को खुली छूट सी मिल गई है।
असहिष्णुता की हद तो यह है कि इसी महीने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की पत्नी को सिर्फ इसलिए ट्रॉल किया गया, क्योंकि वह एक ईसाई कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंची थीं। यह कार्यक्रम आर्थिक स्तर पर बेहद कमजोर बच्चों के उत्थान के लिए आयोजित किया गया था। इसी राज्य के भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार को भी ऐसे ही एक कार्यक्रम के लिए आलोचना झेलनी पड़ी थी। सोचिए अगर एक राज्य के मुख्यमंत्री की पत्नी या भाजपा अध्यक्ष के साथ ऐसा हो सकता है, तो राह चलते आम ईसाई और मुसलमान की क्या बिसात है।
ईसाईयों की स्थिति पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था ‘ओपन डोर्स’ के मुताबिक साल 2017 की पहली छमाही में ही भारत में रह रहे ईसाईयों पर हमलों के 410 मामले सामने आए। इस आंकड़े की भयावहता ऐसे समझी जा सकती है कि साल 2016 में कुल 441 मामले सामने आए थे।
द गार्डियन’ जैसा प्रतिष्ठित अखबार इसी साल जनवरी में भारत को ईसाई धर्मावलंबियों के लिहाज से खतरनाक देश करार दे चुका है। ऐसे मामलों में भारत 15वें पायदान पर पहुंच चुका है, जबकि 2013 में इस सूची में भारत 31वें स्थान पर था।
पता नहीं कुछ लोग क्यों भूल रहे हैं कि भारत उसमें रहने वाले हरेक नागरिक का है। ऐसे में अगर एक भी भारतीय महज अपने धर्म को लेकर डरा हुआ महसूस करे, तो इससे ज्यादा शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता है। ऐसी घटनाएं ‘राष्ट्र निर्माण’ भी नहीं होने देंगी।
इन घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कड़े कदम उठाने ही होंगे। अन्यथा देश की छवि को बट्टा लगता रहेगा।
राम पुनियानी के लेख से ली गयी कुछ अंश