खतियान की बुनियाद पर झारखंडी तय करना मुश्किल

डोमिसायल के मुद्दे पर वजीरे आला हेमंत सोरेन की तरफ से दिये गये बयान पर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने कहा था कि जिनका नाम खतियान में है, वही असली झारखंडी हैं। झारखंड के बड़े हिस्से में सर्वे के बाद 1932 में खतियान बना था, इसलिए 81 साल पहले जिन लोगों के नाम खतियान में थे, वही झारखंडी होंगे, इस दलील को लेकर इत्तेहादी जमातों में एख्तिलाफ़ है।

सियासी महेरीन इस बयान को सिर्फ सियासी प्रोप्गेंडा मानते हैं और इसे कबीले अमल करार देते हैं। वे इसके हक़ में दलील देते हैं कि जो लोग (क़बायली भी हो सकते हैं) इस रियासत में 1932 के पहले से भी रह रहे हों, अगर उनके पास जमीन नहीं है, तो क्या वे झारखंडी नहीं हैं? डोमिसायल पॉलिसी तय नहीं होने की वजह इसका बहाली पर असर पड़ रहा है।

झारखंड का एक बड़ा तबका यह मानता है कि हर हाल में डोमिसायल पॉलिसी बननी चाहिए पर सिर्फ 1932 के खतियान पर अड़ने से किसी का फायदा नहीं होगा। कोई पॉलिसी नहीं बन पायेगी। इत्तेफाक राय से एक ऐसा साल तय करना चाहिए, जिससे पहले से यहां रहनेवाले झारखंडी हैं। इसी तबके का यह मानना है कि जमीन या खतियान से जोड़ने से बेहतर होगा कि मजकुरा सख्स ने झारखंड में कितने साल मुसलसल पढ़ाई की है।