इंसान को अपनी मेहनत का फल ज़रूर मिलता है। मेहनत के ज़रीए वो अपने तमाम मसाइल हल करने में कामयाब होता है। लेकिन इस कामयाबी के लिए उसे सब्र के एक तवील मरहले से भी गुज़रना पड़ता है। बहरहाल हमारे शहर में ऐसी हज़ारों ख़्वातीन और लड़कियां हैं जो सख़्त मेहनत के ज़रीए ना सिर्फ़ अपनी और अपने अरकाने ख़ानदान की ज़िन्दगियों को संवारने में मसरूफ़ हैं बल्कि उन की इस मेहनत के नतीजे में दूसरे ख़ानदानों की मदद भी हो रही है।
क़ारईन! हमारे शहर में मुस्लिम अक्सरीयती इलाक़ा हसन नगर को ख़ास अहमियत हासिल है। दरगाह हज़रत मीर महमूद साहब (रह) (पहाड़ी हज़रत मीर महमूद (रह)), मीर आलम टैंक, नेहरू जियोलाजिकल पार्क ( बहादुर पूरा ज़ू) और ईदगाह मीर आलम से घिरे इस मुहल्ला को इस लिए भी अहमियत हासिल है कि यहां मेहनत कश तबक़ा मुक़ीम है और घरेलू सनअतों से वाबस्ता ये लोग रियासत और मुल्क की तरक़्क़ी में अपना हिस्सा अदा कर रहे हैं।
हसन नगर में ऐसी सैंकड़ों लड़कियां हैं जो अगरबत्तियां बना कर अपनी शादियों के लिए जहेज़ जमा करने में मसरूफ़ हैं वो नहीं चाहतीं कि अपने गरीब और ज़ईफ़ वालिदैन के कमज़ोर काँधों पर शादी ब्याह के ख़र्च का बोझ डाले क्यों कि उन्हें अच्छी तरह अंदाज़ा है कि उनके वालिदैन का वजूद पहले ही दूसरी बहनों की शादियों में हासिल कर्दा सूदी क़र्ज़ के बोझ तले दबा हुआ है।
राक़िमुल हुरूफ़ ने देखा कि हसन नगर में नौजवान मुस्लिम लड़कियां मुसलसल आठ-आठ घंटों तक अगरबत्तियां बनाते हुए अपनी ज़िन्दगियों में उन अगरबत्तियों की ख़ुशबू को बिखेर रही हैं।
जब कि कई ज़ईफ़ ख़्वातीन ऐसी भी हैं जिन के हाथों की लकीरें कई दहों से अगरबत्तियां बनाने के नतीजा में मिट चुकी हैं उन पर कमज़ोरी और ज़ईफ़ी का ग़लबा हो गया है इस के बावजूद वो ख़ुशहाल ज़िंदगी की तलाश में मेहनत किए जा रही हैं। हम ने हसन नगर में 50 ता 55 साला एक ऐसी ख़ातून को भी देखा जो गुज़िश्ता 40 बर्सों से अगरबत्तियां बनाने का काम करती हैं।
हर रोज़ सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक उन के हाथ मशीन की तरह हरकत में रहते हैं और हाथों की इन हरकतों के साथ हज़ारों अगरबत्तियां तैयार होती जाती हैं। हम ने ऐसी कई लड़कियों को भी देखा जो विद्या वालेन्टीयर्स की हैसियत से काम करते हुए पाई पाई सिर्फ़ इस लिए जमा कर रही हैं ताकि अपनी शादियों के लिए रक़म का इंतेज़ाम हो।
बहरहाल इस तरह की लड़कियों से शादियों में ताम, घोड़े जोड़े और दीगर नाजायज़ मुतालिबात मुआशरा को तबाही और बर्बादी की राह पर ले जा रहे हैं। काश हमारे नौजवान और घोड़े जोड़े का मुतालिबा करने वाले लोग सुग़रा बी की मेहनत से सबक़ लेते।