खुतबा-ए-नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)- हज्जतुल विदा

(मौलाना मोहम्मद जैनुल आबदीन रशादी मजाहरी)अल्लाह तआला ने इंसानियत की हिदायत के लिए नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को दुनिया में भेजा। आप के कौल व फेअल को हमारे लिए नमूना करार दिया। एक मुसलमान आप के बताए हुए तरीके पर चल कर ही हिदायतयाफ्ता हो सकता है और उसके लिए जन्नत की राहें आसान हो सकती हैं।

दर हकीकत सीरतुन्नवी आप की अदाओं का नाम है, आप के गुफ्तार व रफ्तार का नाम है, आप के अखलाके अजीमा का नाम है, आप ने अपनी शीरी जबान खिताबत के जरिए हर मौके पर उम्मत के लिए हिदायत के खजाने जमा फरमा दिए। यह उम्मत बड़ी खुश किस्मत है कि उसके सामने आप की हिदायात एक मुकम्मल दफ्तर की शक्ल में महफूज है।

अल्फाज में आज तक वही सोज व गुदाज और वही उम्मत की फिक्र और आखिरत का गम पोशीदा है जो चैदह सौ साल पहले सहाबा‍ किराम ने महफूज किया कयामत तक यह एजाजे नबवी उसी तरह महफूज रहेगा। उन्हीं अकवाले मुबारका में से एक दिल सोज खुतबा-ए-नबवी जो आपने हज्जतुल विदा के मौके पर इरशाद फरमाया जिसके एक-एक लफ्ज से हिदायत और रहबरी का निशान बेमिसाल मिलता है।

इसलिए नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि ऐ लोगो! मैं ख्याल करता हूं कि मैं और तुम फिर कभी इस मजलिस में इकट्ठा नहीं होंगे। लोगो! तुम्हारे खून तुम्हारे माल और तुम्हारी इज्जते एक दूसरे पर ऐसी ही हराम है जैसा कि आज के दिन की, इस शहर की, इस महीने की हुरमत करते हो। लोगो! तुम्हे बहुत जल्द खुदा के सामने हाजिर होना है और वह तुमसे तुम्हारे आमाल की बाबत सवाल करेगा, खबरदार मेरे बाद गुमराह न बन जाना कि एक दूसरे की गर्दने काटने लगो।

पढ़ने वालो! मोमिन की हुरमत को बलद अमीन, शहरूल्लाहुल हराम के साथ नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तशबीह दी है। हकीकत में सीरतुन्नवी यही है कि हम आप की हिदायत को अपनी जिंदगी का जुज बना लें। लेकिन आज के पुर फितन दौर में फिजा ऐसी बन चुकी है कि मोमिन की इज्जत के साथ खिलवाड़ करना एक हुनर बन गया है। वाह-वाह हासिल करने के लिए मजलूम की आह लेना बहुत आसान हो चुका है। ऐबो को उछालना और फिर राई का पहाड़ बना देना एक मशगला बन गया है।

लोगो! जाहिलियत की हर बात मैं अपने कदमों के नीचे पामाल करता हूं, जाहिलियत के कत्लो के तमाम झगड़े मालियामेट करता हूं, पहला खून मेरे खानदान का है यानी रबिया बिन हारिस का खून जो बनो साद में दूध पीता था और हजील ने उसे मार डाला था। मैं छोड़ता हूं। जाहिलियत के जमाने का सूद मलियामेट कर दिया गया। पहला सूद अपने खानदान का जो मैं मिटाता हूं वह अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सूद है। वह सारा का सारा छोड़ दिया गया।

इस बाबरकत जुमले में नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जाहिलियत के तमाम कामों को अपने कदमों के नीचे पामाल कर दिया लेकिन आज उम्मते मुस्लेमा में जाहिलियत का रंग नुमायां है इंतकामी जज्बा, सूद, खुमार, तबीयत सानिया बन चुकी है।
लोगो! अपनी बीवियों से मुताल्लिक अल्लाह से डरते रहो, खुदा के नाम की जिम्मेदारी से तुमने उनको बीवी बनाया और खुदा के कलाम से तुमने उनका जिस्म अपने लिए हलाल बनाया है, तुम्हारा हक बीवियों पर इतना है कि वह तुम्हारे बिस्तर पर किसी गैर को न आने दे लेकिन वह अगर ऐसा करें तो उनको ऐसी मार मारो जो नमूदार न हो और औरतों का हक तुम पर यह है कि उनको अच्छी तरह खिलाओ और अच्छी तरह पहनाओ। इस इरशाद में बीवियों के साथ अच्छा बरताव और उनकी अच्छी तर्बियत पर जोर दिया है क्योंकि औरतों के अखलाक अगर दुरूस्त हो जाएं तो एक समाज दुरूस्त हो सकता है।

लोगो! मैं तुम में वह चीजे छोड़े जा रहा हूं कि अगर उसे मजबूत पकड़ लोगे तो कभी गुमराह न होगे वह कुरआन मजीद यानी अल्लाह की किताब है। इस जुमले में कुरआन को थामने और उस पर अमल पैरा होने की ताकीद फरमाई है। कुरआन पर अमल पैरा होने के बाद गुमराही का तसव्वुर दूर-दूर तक नहीं हो सकता। बशर्ते कि बंदा हिदायत तलबी के साथ तिलावत में मशगूल हो।

लोगो! न तो मेरे बाद कोई नबी है और न ही कोई उम्मत तुम्हारे बाद पैदा होने वाली है। खूब सुन लो अपने परवरदिगार की इबादत करो, और पंज गाना नमाज अदा करो और रमजान के रोजे रखो और माल की जकात खुश दिली के साथ अदा करो। खाना-ए-खुदा का हज करो और एहकाम की इताअत करो। जिस का बदला यह है कि अपने रब के जन्नत में दाखिल हो जाओ।

इस इरशाद में एहकामे इस्लाम की पाबंदी का हुक्म दिया है जिन पर इस्लाम की बुनियाद है। एक मोमिन बंदा उन पर अमल करके ही इस्लाम के अंदर दाखिल हो सकता है। और इस्लाम वह दौलत है जिसके जरिए बंदा जन्नत का हकदार होता है।

लोगो! कयामत के दिन तुमसे मेरी बाबत भी दरयाफ्त किया जाएगा, मुझे बताओ कि तुम क्या जवाब दोगे? सबने कहा कि हम इसकी शहादत देते हैं कि आपने अल्लाह के एहकाम को हम तक पहुंचा दिए आपने रिसालत नबुवत का हक अदा कर दिया, आपने हम को खोटे खरे की बाबत अच्छी तरह बता दिया।

उस वक्त नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने शहादत की उंगली उठाई आसमान की तरफ उंगली को उठाते थे। और फिर लोगो की तरफ झुकाते थे। और कहते जाते कि ऐ खुदा सुन ले (तेरे बंदे क्या कह रहे हैं) ऐ खुदा सुन ले (तेरे बंदे क्या कह रहे हैं) ऐ खुदा सुन ले (तेरे बंदे क्या कह रहे हैं)

खबरदार! जो लोग मौजूद है वह उन लोगो को जो मौजूद नहीं है, इसकी तब्लीग करते रहे मुमकिन है बाज सामईन में से वह लोग ज्यादातर इन बातों को याद रखने वाले होंगे जिनपर तब्लीग की जाए।

इन इरशादात में नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हक में सहाबा की गवाही और फिर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का उम्मत को तब्लीगे इस्लाम पर खड़ा करना साफ साफ अल्फाज में मौजूद है। अगर हम इस हजतुल विदा के खुतबे पर अमल करने वाले हो गए तो अल्लाह की जात से उम्मीद है कि हम इंशाअल्लाह सीरतुन्नवी के हक अदा करने की कोशिश करने वालों में शुमार हो जाएंगे। अल्लाह हमको अमल की तौफीक अता फरमाए-आमीन