इस दुनिया को तखलीक देने वाला वही है जो हम सबका रब है। हर चीज उसके हुक्म के ताबे है। सूरज का निकलना और डूबना, बारिश का बरसना, जमीन से पैदावार होना यह सब अल्लाह के हुक्म से है। जिंदगी और मौत का मालिक वही है। उसकी कुदरत के अजीब नमूने हैं। मसलन अल्लाह ने आसमान को बुलंद किया बगैर खम्भों के जमीन सितारे और सैयारे किसी सहारे के बगैर खला में घूम रहे हैं।
इन चीजों का मुअल्लक होना खालिक की अजमत का नाकाबिले बयान सबूत है ईमान खुदा की दरयाफ्त है और यह इंसान के अंदर खौफे इलाही और तकवा पैदा करती है यानी आखिरत में खुदा की पकड़ से डरना। खुदा के सामने जवाब देही को सोच कर हमेशा अपना मुहासिबा करना ही सच्चे ईमान की अलामत है।
मौजूदा दौर में अफसोस कि हमारा मकसद दुनिया की चीजे हासिल करना है। खौफे खुदा से आदमी के अंदर संजीदगी पैदा होती है। आजिजी की सिफत पैदा होती है। गलती के एतराफ का जज्बा पैदा होता है। इंफिरादी बड़ाई को खत्म करके एत्तेहाद पैदा करता है। कुरआनी सोच पैदा करता है। आदमी को मजबूर करता है कि वह हमेशा अपनी मौत को याद करता रहे। बहुत से लोग ऐसे हैं जो खुदा के वजूद को मानते हैं लेकिन वह मुहासिबा पर यकीन नहीं रखते।
ऐसा अकीदा एक गैर मतलूब अकीदा है। खुदा का दुरूस्त अकीदा वह है जिसके तसव्वुर से आदमी का दिल दहल जाए और उसके बदन के रोंगटे खड़े हो जाए। आदमी को हमेशा सच बोलने पर मजबूर करता है। आप और मैं इस वाक्ये/ वाकिये से बखूबी वाकिफ हैं कि सैयद अब्दुल कादिर जिलानी (रह०) अपनी कमसिनी में अपने वतन से इराक की तरफ बगरज आला तालीम हासिल करने एक काफिले के साथ सफर कर रहे थे।
रास्ते में एक डाकुओं की टोली ने उस काफिले को घेर लिया और काफिले का सारा सामान लूट लिया। जब सैयद अब्दुल कादिर जिलानी (रह०) के पास से कोई माल बरामद नहीं हुआ तो एक डाकू ने उनसे पूछा कि उनके पास कोई माल नहीं है जबकि सफर के लिए घर से रवाना हुए हो। आप ने डाकू से कहा कि मेरे कुर्ते की बगल में मेरी मां ने चंद दीनार छुपा दिए है ताकि वह किसी के हाथ न लगें।
अगर तुम चाहते हो तो उन्हें ले लो। आप के इस जवाब को सुनकर डाकू को हैरत हुई और वह अपने सरदार से सारा माजरा सुनाया। सरदार ने जब आप से पूछा कि क्या तुम्हें इस बात का खौफ नहीं है कि सच बोलने पर तुम्हारे दीनार छीन लिए जाएंगे बेहतर होता कि आप झूठ कह देते कि आप के पास कुछ भी नहीं है।
हमें इस बात का इल्म भी नहीं होता कि आप के पास दीनार हैं। आप ने फरमाया कि मेरी मां ने मुझे ताकीद की है कि किसी भी हालत में झूट न बोलो और सिवाए खुदा के किसी से न डरो। सरदार ने जब यह जवाब सुना तो बहुत शर्मिन्दा हुआ और आंखों से नदामत के आंसू बहने लगे। फौरन उसने तौबा कर ली और उसके तमाम साथियों को आजाद कर दिया और खुद भी डाकाजनी का पेशा छोड़ दिया और लूटा हुआ माल काफिले के लोगों को लौटा दिया।
जिसके दिल में अल्लाह का खौफ नहीं होता वह तकब्बुर का शिकार होता है। यहां तक कि वह खुदाई दावा करने लगता है। इसकी तारीख में कई मिसालें हैं।
नमरूद ने अपने आप को खुदा होने का दावा किया। फिरऔन मिस्र ने भी खुद को खुदा होने का दावा किया। उनका अंजाम क्या हुआ हम सब उससे बखूबी वाकिफ है। हजरत नूह (अलै०) की दावते इस्लाम को उनकी कौम ने ठुकराया। हजरत लूत (अलै०) की कौम ने अपनी बदआमालियों से तौबा नहीं की। हजरत सालेह की कौम ने खुदा के वजूद का मजाक उड़ाया उन सबने खौफे खुदा से इंकार किया और यह सब अपने अंजाम को पहुंच गए।
हमारे रोजर्मा के कारोबार में अगर हमने खौफे खुदा के एहसास को फरामोश किया तो हम गुनाह के कुसूरवार होंगे। बात-बात पर झूठ बोलने से गुरेज नहीं करेंगे। वादा खिलाफी हमारी तर्जे जिंदगी बन जाएगी। अमानत में ख्यानत करने के लिए कोशां रहेंगे। हक तलफी के आदी हो जाएंगे। धोका/दोखा और फरेब हमारी पहचान बन जाएगी। इस सूरत में हम खुदा के सामने क्या जवाब देंगे। अगर हमारे दिलों में खौफे खुदा पैदा हो जाएगा तो हम इन गुनाहों से बच सकते हैं और समाज में अपने मआशरे को आला मकाम हासिल होगा।
लोगों की जबान पर हमारी सच्चाई, वादा की पासदारी, मामलात में ईमानदारी और इंसाफ पसंदी के चर्चे होंगे। हमारे कारोबार में तरक्की होगी आला ओहदे पर फायज होंगे। मगर हम इस हकीकत को नजर अंदाज कर रहे हैं और यह कहते फिरते हैं कि घर वाले रिश्तेदार दोस्त, समाज और सरकार वगैरह सब हमारे साथ सौतेला सुलूक कर रहे हैं।
यह हमारी जिहालत है कि हम इस्लाम के उसूलों को फरामोश कर चुके हैं। दीन पर इस्तिकामत का जज्बा जरा बराबर भी नहीं है। खुदा परस्ती को छोड़कर दुनिया परस्ती में मुब्तला हो गए हैं। हम भूल गए हैं कि दुनिया हमारे लिए दारूल अमल है और आखिरत की जिंदगी दारूल बका।
हम सब दुनिया में अपना अपना इम्तहान दे रहे हैं जिसका नतीजा महशर के दिन निकलेगा और उसी के मुताबिक हमारा ठिकाना जन्नत या दोजख करार होगा। मौत से गफलत की जिंदगी गुनाहों की आमाजगाह बन जाती है। खुदा हर जगह मौजूद है अगर हम इस हकीकत को नजरअंदाज करें तो हम खुदा के खौफ से महरूम हो जाते हैं और शैतान के हथकंडो का शिकार हो जाते हैं। अगर हमें खुदा को राजी करना है तो लोगों के हुकूक से राजी करें और यह उस वक्त तक मुमकिन नहीं जब तक हमारे अंदर खौफे खुदा न आ जाए। अल्लाह पाक से यह दुआ है कि हमारे दिलों को फेर दे और उसमें अल्लाह से खौफ पैदा कर दें।
(अब्दुल मन्नान)
—–बशुक्रिया: जदीद मरकज़