लखनऊ 19 अप्रेल 2016। रिहाई मंच ने आगरा की एक निचली अदालत द्वारा गुलजार अहमद वानी को बेकसूर करार देते हुए 15 साल बाद बरी किए जाने को खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की मुस्लिम विरोधी मानसिकता को उजागर करने वाला निणर्य बताया है। मंच ने आरोप लगाया है कि अगर सपा ने आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाह मुसमलानों को छोड़ने का वादा पूरा किया होता तो गुलजार वानी की जिंदगी के चार साल बर्बाद होने से बच जाते।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञिप्ति में मंच के अध्यक्ष और लखनऊ के सहकारिता भवन पर 15 अगस्त 2000 को हुए कथित आतंकी विस्फोट मामले में गुलजार को 2014 में बरी कराने वाले उनके वकील मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि गुलजार वानी का बरी होना खुफिया एजेंसियों द्वारा मुस्लिम युवकों की आतंकी छवि बनाने के आपराधिक षडयंत्र को बेनकाब करता है। क्योंकि अलीगढ़ विश्वविद्यालय से अरबी में पीएचडी कर रहे कश्मीर के तहसील पट्टन, जिला बारामूला निवासी गुलजार वानी को खुफिया एजेंसियों ने कश्मीरी अलगाववादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन और सिमी के बीच का लिंक बताते हुए 30 जुलाई 2001 को दिल्ली से गिरफ्तार करने का दावा किया था। मोहम्मद शुऐब ने कहा कि गुलजार का बरी होना एक बार फिर साबित करता है कि खुफिया एजेंसियां मुसलमानों खास कर कश्मीरीयों को जानबूझ कर आतंकवाद के फर्जी आरोपों में फंसाकर बहुसंख्यक हिंदू समाज में मुसलमानों से काल्पनिक दहषत और मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाने के देशविरोधी एजंेडे पर काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि गुलजार वानी को फंसाने वाले खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के बीच दो समुदायों के बीच वैमनस्य और साम्प्रदायिकता फैलाने का मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जानी चाहिए।
रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि गुलजार को आतंकवाद के मामले में खुफिया विभाग ने बदले की भावना के तहत फंसाया था क्योंकि गुलजार और उनके साथियों ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय के हबीब हाॅस्टल में एक संदिगध व्यक्ति को 6 सितम्बर 1999 को आते-जाते और संदिग्ध हरकत करते देखा। जिसने पकड़े जाने के बाद अपना नाम राजन शर्मा, असिस्टेंट सेंट्रल इंवेस्टिगेशन आॅफिसर बताया। शर्मा ने विश्वविद्यालय के कुलपति हामिद अंसारी, अलीगढ़ के डीएम और एसपी की मौजूदगी में आयोजित प्रेस कांफें्रस में चार महत्वपूण तथ्यों को स्वीकार किया था। पहला, उसे यूपी पुलिस के खुफिया विभाग ने सिक्रेट मिषन के तहत यहां भेजा था। दूसरा, 3 सितम्बर को बीयूएमएस अंतिम वर्ष के छात्र अब्दुल मोबीन जिन्हंे कैम्पस के अंदर से सादी वर्दी मंे आए लोग बिना नेम प्लेट की सूमो में उठा ले गए थे, और दूसरे दिन उसे आतंकी बता कर आगरा की अदालत में पेश किया गया, वह बिल्कुल निर्दोष था। उसे अलीगढ़ विश्वविद्यालय को बदनाम करने की साजिश के तहत पकड़ा गया था। तीसरा, पकड़े/उठाए जाते समय मोबीन के पास कोई हथियार या विस्फोटक नहीं था। उसके पास से जो आरडीएक्स बरामद दिखाया गया उसे एतमादौल्ला पुलिस स्टेषन, आगरा के एसएचओ शशिकांत शर्मा, एएसआई आरपी सिंह, सिपाही ऐनुद्दीन और सर्किल आॅफिसर सिविल लाइंस अलीगढ़ जगदीष शर्मा ने उसके पास से फर्जी तरीके से बरामद दिखाया जिसकी व्यवस्था उन्होंने खुद की थी। चैथा, एसपी खुफिया विभाग राम नारायण उससे हमेशा कुछ छात्रों के बारे में जांच करने और उनके खिलाफ सुबूत लाने की बात करते हैं और जब वे उन्हें बताते हैं कि वे लड़के अच्छे और कानून को मानने वाले हैं तो राम नारयण उन्हें गालियां देते हैं।
राजीव यादव ने कहा कि इस घटना के बाद ही खुफिया विभाग और पुलिस ने एएमयू के छात्रों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाने का षडयंत्र रचा जिसके षिकार पीएचडी फाइनल सेमेस्टर के छात्र गुलजार वानी भी हुए। जिन्हें 30 जुलाई 2001 को दिल्ली से यह कहते हुए गिरफ्तार दिखा दिया गया कि वे हिजबुल मुजाहिदीन और सीमी के बीच लिंक का काम करते थे। बदले की इस कार्रवाई के तहत पुलिस ने गुलजार पर दिल्ली में 7, कानपुर में 3, नागपुर में 2, जलगांव में 1, लखनऊ में 1, बाराबंकी मंे 1 और आगरा में 1, यानी कुल 16 मुकदमे दर्ज किए। इनमें से नागपुर में संघ परिवार के दफ्तर और दिल्ली के साउथ ब्लाॅक, नाॅर्थ ब्लाॅक और सेना भवन जैसे अतिमहत्वपूर्ण स्थानों पर हुए कथित आतंकी घटनाओं का मास्टरमाइंड बताया गया। इनमें से अब उनपर सिर्फ बाराबंकी में एक केस रह गया है जिसकी बेल ऐप्लिकेषन सुप्रीम कोर्ट में पड़ी है, बाकी सभी मामलों में वे बरी हो चुके हैं।
राजीव यादव ने कहा कि गुलजार वानी का बरी होना यह भी साबित करता है कि किस तरह खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने सिमी पर 27 सितम्बर 2001 को प्रतिबंध लगाने से पहले उसके खिलाफ झूठे सुबूत इकठ्ठा करने के लिए गुलजार जैसे बेगुनाहों को फंसाया ताकि सिमी के खिलाफ समाज में खौफ और संदेह का माहौल बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि इसीलिए सिमी द्वारा 1997 में अलीगढ़ विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन के बाद से ही साजिष के तहत विश्वविद्यालय को आतंकी गतिविधियों के केंद्र के बतौर बदनाम करने के लिए खुफिया एजेंसियों ने अपने लोगों को यहां प्लांट किया और पकड़े जाने पर लोगांे को फंसाना षुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि गुलजार के बरी होने के बाद एक बार फिर यह साबित हो जाता है कि 15 अगस्त 2000 को लखनऊ के सहकारिता भवन पर हुए कथित आतंकी विस्फोट, बिल क्ल्ंिटन के भारत दौरे के दौरान आगरा में हुए दो कथित विस्फोट, बाराबंकी में साबरमती एक्सप्रेस में हुए कथित आतंकी विस्फोट समेत ऐसी तमाम घटनाएं जिनमें गुलजार को आरोपी बनाया गया था, उनके असली दोषियों को सुरक्षा एजेंसियों ने बचाने के लिए गुलजार जैसे बेगुनाह युवकों को फंसाया या फिर इन सभी आतंकी घटनाओं को खुद खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने अंजाम दिया। उन्होंने मांग की कि संता बंता पर बनने वाले चुटकुलांे से सिखों की छवि खराब होने के मामले को गम्भीरता से लेने वाले सर्वोच्च अदालत को गुलजार वानी के बरी होने के बाद पूरे देश से आंतकवाद के नाम पर पकड़े जाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों के मामले को भी गम्भीरता से लेते हुए एक न्यायिक जांच आयोग गठित करना चाहिए क्योंकि फर्जी मकदमों मंे इस तरह फंसाए जाने से मुस्लिम समुदाय की छवि खराब होती है जो देष के समावेषी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हानिकारक है।