सुप्रीम कोर्ट ने मंगल के रोज़ कहा कि ऐसे मामलों में जहां सज़ा ए मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बरकरार रखा जाता है, गुनाहगार के पास यह इख्तेयार होगा कि सज़ा ए मौत के फैसले पर नज़रे शानी से मुताल्लिक उसकी दरखास्त पर सुनवाई तीन जजों की बेंच एक खुली अदालत करे।
इसके लिए मुल्ज़िम को आधे घंटे का वक्त दिया जाएगा। चीफ जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की सदारत वाली आईनी बेंच (Constitution Bench) ने कहा कि सज़ा ए मौत पाने वाला मुजरिम अदालत की तरफ से खारिज की गई नज़रे शानी की दरखास्त पर दोबारा तीन जजों की बेंच के सामने खुली अदालत में सुनवाई की अपील कर सकता है और उसे अदालत में अपनी बात रखने के लिए आधे घंटे का वक्त दिया जाएगा।
हालांकि उसे ऐसे ही मामलों में खारिज की गई नज़रे शानी की दरखास्त पर दोबारा तीन जजों की बेंच के सामने खुली अदालत में सुनवाई की अपील करने का इख्तेयार होगा, जिसमें अदालत ने मौत की सजा पर मुहर नहीं लगाई हो। जिन मामलों में “क्यूरेटिव पिटीशन” पर पहले ही सुनवाई हो चुकी होगी, वहां गानहगार को इस आप्शन का फायदा नहीं मिलेगा।
Constitution Bench का यह फैसला आली अदालत की तरफ से सज़ा ए मौत को बरकरार रखने के बाद फैसले पर नज़रे शानी की दरख्वास्त पर गौर करने के बाद आया, जिसमें गुनाहगारों ने खुली अदालत में तीन जजों के सामने दरखास्त की दोबारा सुनवाई की अपील की थी। अब तक सज़ा ए मौत के फैसलों पर नज़रे शानी की दरखास्त पर जज अपने चैंबर में सुनवाई करते थे।