बिहार के नालंदा जिले में तड़के सुबह ख़वातीन सड़कों पर निकलती हैं। ख़वातीन की ये टोली पहरे पर निकली है, जिसका मकसद है खुले में बाइतुल खुला करने वालों को खदेड़कर आबादी वाले इलाकों से दूर करना। नालंदा जिले के अरौत गांव की 16 ख़वातीन की ये पहरेदारी इलाके के लोगों को सफाई का पाठ पढ़ाने के लिए है। गांव में तकरीबन पौने तीन सौ घर हैं, लेकिन ज्यादातर घरों में बाइतुल खुला नहीं। ऐसे में औरत-मर्द दोनों बाइतुल खुला के लिए रास्तों के किनारे खुले में बैठा करते थे।
गांव में रहने वाले सुदामा प्रसाद कहते हैं, “दस फुट की सड़क पर चलने की खातिर चार फुट भी जगह नहीं बचती थी। रात के अंधेरे में नीचे खेत में उतर कर आते-जाते थे कि मैला ना लगे”। गंदगी और उनसे होने वाली बीमारियों से परेशान गांव की ही एक खातून गिरजा देवी ने गुजिशता साल अक्तूबर में पहल करते हुए गांव की कुछ ख़वातीन को इकट्ठा कर सुबह और शाम रास्ते पर पहरेदारी करने का फैसला लिया।
घरों में बाइतुल खुला नहीं और अंधेरे में दूर तक जाना महफूज़ नहीं, ऐसे में पहरा देने वाली टोली की ख़वातीन बाइतुल खुला करने वाली ख़वातीन को दूर खेत तक छोड़कर आती हैं। यही नहीं ग्रुप की ख़वातीन हफ्ते में एक बार गाँव की नालियाँ भी साफ करती हैं।
ग्रुप की तमाम ख़वातीन दलित हैं और पढ़ाई-लिखाई का कभी कोई मौका नहीं मिला, लेकिन सफाई के फी इनकी अहद देखते बनती है। पहरेदारी के लिए निकली राज मुन्नी देवी बातों-बातों में कहती हैं, “काम भले ही नेक हो, लेकिन सफाई के लिए पहरेदारी करना आसान नहीं है।” गांव के कई लोगों से इन औरतों का बैर हुआ और तो कइयों ने बोल-चाल तक बंद कर दी, लेकिन काम चलाऊ डंडे और हाथ में टॉर्च लेकर अंधेरे मुंह मुस्तैदी करने वाली इन ख़वातीन की पहल रंग ला रही है। इस मुहिम को लोगों का हिमायत मिल रहा है।