गज़नी- इस्लामी सक़ाफ़ती दारुल हुकूमत

काबुल 30 जनवरी- काबुल से 140 किलो मीटर दूर जुनूब मग़रिब में क़ंधार जाने वाली सड़क के किनारे वाके गज़नी शहर की शोहरत महमूद ग़ज़नवी की वजह से है। इसी वजह से वो इस साल का इस्लामी सक़ाफ़ती दारुल-हकूमत क़रार पाया है।

2013 के एशिया के इस्लामी सक़ाफ़ती दारुल-हकूमत गज़नी की सलामती की सूरत-ए-हाल अबतर होने की वजह से वहां जाना बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी माहिरीन शहर की पुरानी दीवार की मुरम्मत में मदद दे रहे हैं।

ग़ज़नवी ख़ानदान के हुकमरान महमूद ग़ज़नवी ने इस्लाम, फ़ारसी ज़बान और तुर्क फ़ौजी फ़न सिपाह गिरी को आपस में मिला दिया था। महमूद ग़ज़नवी की सलतनत आज के ईरान से लेकर हिंदूस्तान तक फैली हुई थी। महमूद ग़ज़नवी ने वस्त एशिया के बहुत से इलाक़ों से फ़नकारों, अदीबों और असातिज़ा को अपने दरबार में जमा कर के गज़नी शहर को एक बेमिसाल शान-ओ-शौकत अता की। जर्मनी की आखन यूनीवर्सिटी के कार्स्टन ली एक टीम के साथ गज़नी की बहाली और मुरम्मत का काम अंजाम दे रहे हैं।

काबुल से गज़नी का सफ़र दो घंटे का है। लेकिन एक अफ़्ग़ान सहाफ़ी आरिफ़ ने कहा: मैं फ़िलहाल गज़नी का सफ़र नहीं कर सकता। तालिबान ग़ैर मुल्की मीडीया या ग़ैर मुल्कीयों के साथ मिल कर काम करने वालों के अग़वा या कत्ल की धमकी दे रहे हैं।

क्या इन हालात में गज़नी इस्लामी सक़ाफ़ती दारुल-हकूमत बन सकता है? वहीद उल्लाह उमर यार गज़नी में एक निजी रेडीयो स्टेशन के डायरेक्टर हैं। उन्हों ने कहा: जब गज़नी को सक़ाफ़ती दारुल-हकूमत बनाने का ऐलान हुआ तो यहां सब इस पर ख़ुश हुए, मैं भी। इस तरह इस शहर की तारीख़ ज़िंदा हो रही है और दुनिया हमें फ़रामोश नहीं कर रही है।

लेकिन 30 मंसूबों में से बहुत कम अपने निज़ामुल औकात के मुताबिक़ मुकम्मल हो रहे हैं। अफ़्ग़ानिस्तान के मीडीया इन दिनों ये तंबीह कर रहे हैं कि कहीं ऐसा ना हो कि जश्न मनाए जाने से पहले ही इस्लामी सक़ाफ़ती दारुल-हकूमत का एज़ाज़ गज़नी के हाथ से छिन जाये। सहाफ़ी वहीद उल्लाह ने कहा: जश्न की तक़रीबात के लिए अफ़्ग़ान हुक्काम को 15 मिलयन डालर की रक़म दी गई थी। लेकिन मेरे इलम में इस रक़म से कोई भी प्रोजेक्ट नहीं मुकम्मल किया गया। खासतौर पर एक हवाई अड्डा लाज़िमी है। इस के बगै़र मेहमान यहां नहीं आ सकेंगे।

गज़नी के एक लाख चालीस हज़ार शहरीयों से वादा किया गया है कि वहां बिजली का बहुत अच्छा इंतिज़ाम किया जाएगा और नई सड़कें भी तामीर की जाएंगी। कार्स्टन ली ने कहा: पिछले साल हम ने दीवार की बुनियादों को मज़बूत बना दिया ताकि इस में मज़ीद टूट फूट ना हो।रोज़ाना यहां 400 कारीगर और मज़दूर काम कर रहे हैं। हमें ख़ौफ़ नहीं कि उन्हें कोई नुक़्सान पहुंचेगा। हमें खुदकुश हमले का ख़तरा नहीं क्योंकि इन हमलों के लिए इंसानों के बड़े मजमा को चुना जाता है। गज़नी में मग़रिबी फ़ौज शहर के अंदर नहीं बल्कि इस के दरवाज़ों के बाहर ताय्युनात हैं। (एजेंसी)