अपनी जवान और अन ब्याही बेटियों की फ़िक्र में नींद मुझ से कोसों दूर होगई है । इन बच्चियों के बारे में सोच-ओ-फ़िक्र ने मुझे इतना कमज़ोर कर दिया है कि कुछ दूर तक चलना फिरना भी अच्छा नहीं लगता । रातों को अचानक उठ कर अपनी बेटियों की जानिब देखती हूँ तो उन के मुस्तक़बिल के बारे में सोचते सोचते मेरी आँखों से आँसू रवां(जारी) होजाते हैं और फ़िक्र-ओ-गहिरी सोच के बाइस मेरे सर में इतना शदीद दर्द शुरू होजाता है कि इस की शिद्दत को बयान करना तक मुश्किल है ।
अल्लाह से रो रो कर यही इल्तिजा करती हूँ कि ए पाक परवर दिगार मेरी इन जवान बच्चियों की शादियों का इंतिज़ाम करदे उन की ढलती उमरें मेरे लिये नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त हो गईं हैं । सोच-ओ-फ़िक्र रंज-ओ-अलम हसरत-ओ-यास से भरे ये अलफ़ाज़ मजबूर-ओ-बेबस और गरीब-ओ-मुफ़लिस ख़ातून ज़किया सुलताना के हैं जिन की चार बेटियां शादी की उम्र को पहुंचने के बावजूद लड़के वालों की जानिब से किए जा रहे घोड़े जोड़े के मुतालिबात के बाइस घर में ही बैठी हुई हैं । क़िस्मत की सितम ज़रीफ़ी देखिए कि चारों लड़कियां ज़ाकिरा सुलताना , शाकिरा सुलताना , नाज़िरा सुलताना और फ़ातिमा किसी से बात नहीं करतीं और आस पास के पड़ोसी कभी इन लड़कियों की आवाज़ भी नहीं सुनी हैं जब कि ये लड़कियां दूसरों की बातें या आवाज़ सुनने से भी क़ासिर(मजबूर) हैं ।
यानी ज़किया सुलताना की ये बेटियां गूंगी और बहरी हैं जो 27 , 25 , 24 और 15 साल की उम्रों की हैं । तफ़सीलात के मुताबिक़ सलमान नगर चिन्तल मेट अता पूर मैं मुक़ीम मुहम्मद ख़्वाजा मोइन उद्दीन लारी ड्राईवर हैं वो पाँच बेटियों और दो बेटों के बाप हैं । सब से बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है । मुहम्मद ख़्वाजा मोइन उद्दीन अपनी अहलिया (बीवी) ज़किया सुलताना के साथ अपनी बेटियों की देख भाल पर ख़ुसूसी तवज्जा देते हैं । उन्हें दो लड़के भी हैं बड़ा बेटा किसी वर्कशॉप में स्कूटर मीकानिक है और छोटा बेटा बेरोज़गार है । राक़िम उल-हरूफ़ ने देखा कि ये ख़ानदान इंतिहाई गरीब है जब कि इन लड़कियों को जो रिश्ते आरहे हैं घोड़े जोड़े की मांग की जा रही है । ज़ाकिरा , शाकरा , नाज़रा और फ़ातिमा गूंगे और बहरे होने के बाइस एक तरह से माहौल से कट कर रह गए हैं ।
कहीं जाते आते नहीं वैसे माँ बाप इन बच्चियों को कहीं जाने भी नहीं देते ताहम (फिर भी) बस्ती के कुछ हमदर्दों के मश्वरा पर चारों लड़कियां एक साल से मलक पेट में वाकै गूंगे बहरों के सरकारी गर्लज़ स्कूल को जा रही हैं । सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ये तमाम लड़कियां स्कूल में तालीम हासिल करती हैं । तमाम की तमाम एक साथ स्कूल जाती हैं और एक साथ वापिस होती हैं । सोम-ओ-सलात की पाबंद ज़किया सुलताना की चारों बेटियां मुकम्मल हिजाब में रहती हैं । इबतदा-ए-में इन लड़कियों को माँ स्कूल ले जाया करती थी लेकिन घुटनों में शदीद दर्द के बाइस परेशान ज़किया सुलताना अब अपनी बेटियों के हमराह स्कूल नहीं जा रही हैं ।
मुहम्मद ख़्वाजा मोइन उद्दीन और ज़किया सुलताना की इन लड़कियों के तालीम हासिल करने के शौक़-ओ-जज़बा से स्कूल के गैर मुस्लिम टीचर्स काफ़ी मुतास्सिर हैं और हैरत-ओ-दिलचस्पी की बात ये है कि ये गैर मुस्लिम टीचर्स ही इन गूंगी और बहरी मुस्लिम लड़कियों के लिये गूंगे और बहरे लड़कों के रिश्ते तलाश कर रहे हैं । इन असातिज़ा का कहना है कि चूँकि लड़कियां गूंगी और बहरी हैं इस लिये आम लड़कों से उन की शादियां करना ठीक नहीं होगा इस लिये कि लड़का और लड़की एक दूसरे को समझ नहीं पाएंगे और बात चीत का सब से बड़ा मसला उन के दरमियान दीवार बन कर हाइल (रोकावट) हो जाएगा इस लिये इन लड़कियों की ख़ुशहाल अज़दवाजी ज़िंदगी के लिये लड़के भी उन्ही की तरह गूंगे और बहरे होने चाहीए । लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि आम लोगों की तरह जहेज़ की बीमारी गूंगे और बहरे नौजवानों में भी है और उन के ख़ानदान लालच-ओ-हिर्स की तबाहकुन बीमारियों से मुतास्सिर नज़र आते हैं ।
ज़किया बेगम ने जिन के चेहरे पर फ़िक्र-ओ-परेशानी के आसार नुमायां तौर पर नज़र आरहे थे अपने आनसुवों को पोंछते हुए गुलूगीर लहजे में बताया कि तालीम याफ्ता गूंगे और बहरे लड़के शादियों के लिये राज़ी तो होरहे हैं लेकिन इन का मुतालिबा है कि कम अज़ कम 50 हज़ार रुपये नक़द जोड़े की रक़म और मोटर सैक़ल जहेज़ में दी जाय वर्ना उन्हें इन लड़कियों से शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है । ज़किया सुलताना ने मज़ीद बताया कि वो इतनी बड़ी रक़म और जहेज़ में मोटर सैक़ल देने का तसव्वुर (सोच)भी नहीं कर सकते । चूँकि ख़्वाजा मोइन उद्दीन ज़ईफ़(बूढे) हैं इस लिये घर चलाने की सारी ज़िम्मेदारी बड़े बेटे के कंधों पर है जो स्कूटर मीकानिक का मामूली काम करता है और इस की कोई मुस्तक़िल आमदनी भी नहीं है ।
ज़ाकिरा , शाकरा , नाज़रा और फ़ातिमा स्कूल जाने से पहले घर में अगरबत्ती बीड़ी बनाने और कारचोब का काम करलिया करती थीं । ज़किया सुलताना से बात चीत के मौक़ा पर मुहल्ला के एक समाजी कारकुन मुहम्मद ताहिर भी मौजूद थे ।उन की मुसलसल कोशिशों से उन लड़कियों को माहाना दो सौ रुपये वज़ीफ़ा मिल रहा है । मुहम्मद ताहिर चाहते हैं कि ये गरीब ख़ानदान दीगर सरकारी इसकीमात से भी मुस्तफ़ीद हो इस सिलसिला में वो कोशिश कर रहे हैं । मुहम्मद ख़्वाजा मोइन उद्दीन और ज़किया सुलताना मुहम्मद ताहिर की कोशिशों और तआवुन(मदद) को क़दर की निगाह से देखते हैं । बहरहाल हमारे मुआशरा में जहेज़की लानत ने हर किसी को अपनी लपेट में ले लिया है चाहे वो आंखें रखते हुए अंधे ,ज़बान रखते हुए गूंगे और कान रखते हुए भी बहरे हूँ उन्हें तो सिर्फ एक चीज़ दिखाई सुनाई देती है और वो है सिर्फ और सिर्फ जहेज़ ।
अल्लाह के फ़ज़ल से हमारे शहर में ख़ुशहाल ख़ानदानों की कोई कमी नहीं है अगर इन ख़ानदानों के ज़िम्मेदार या सदर ख़ानदान अपने आस पास रहने वाले गरीब लड़कियों की शादियों के एहतिमाम के लिये आगे बढ़ें और उन के घर बसाने में तआवुन(मदद)-ओ-इश्तिराक करें तो उसे मैं ज़किया सुलताना की तरह कई मजबूर माओं के मसाइल हल हो सकते हैं । उन के चेहरों पर मुस्कुराहट खिल सकती है और मुआशरा इस मजबूर-ओ-बेकस माँ की इस फ़रियाद को सुनने से महफ़ूज़ रह सकता है कि देखो अपनी जवान बेटियों की शादी की फ़िक्र-ओ-सोच में , मैं रातों की नींद दिन के सुकून-ओ-चैन से महरूम हो गई हूँ । काश हमारे मुआशरा में एसा होता तो कितना बेहतर होता ।।