गांधी जी के चर्ख़ा का जादू आज भी सर चढ़ कर बोलता है

गांधी जी ने हमेशा खादी के पहनावे की ताईद की और चर्ख़ा इनका कभी ना बिछड़ने वाला रफ़ीक़ था। गांधी जी आज इस दुनिया में नहीं लेकिन उन के अक़ीदत मंदों और नक़श-ए-क़दम पर चलने वालों की तादाद कम नहीं है। चर्ख़ा कातने वाले बड़ी दिलचस्पी से ये काम करते हैं और इसने साबर मती आश्रम में बेपनाह मक़बूलियत हासिल कर ली है जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि चर्ख़ा की फ़रोख्त में गुज़श्ता साल तीन गुना इज़ाफ़ा नोट किया गया था।

गांधी जी कहा करते थे कि हमें मआशी तौर पर ख़ुद कफ़ील होने के लिए और बर्तानवी सामराज्य के ज़माने में इसे फ़रोग़ देने के लिए लोगों में स्वदेशी तहरीक के तईं बेदारी पैदा करना ज़रूरी है।

दरीं असना साबरमती आश्रम के सेक्रेटरी अमृत मोदी ने पी टी आई से बात करते हुए कहा कि चरखे तीन साइज़ों में दस्तयाब हैं जिन की क़ीमतें 100, 200 और 300 रुपये है। 2010 11 के मालीयाती साल के दौरान 3 लाख रुपये के चरखे फ़रोख्त हुए जबकि 2011 12 के मालीयाती साल के दौरान 9 लाख रुपये के चरखे फ़रोख्त हुए।

मिस्टर मोदी ने कहा कि चरखे की फ़रोख्त में इस क़दर तेज़ इज़ाफ़ा उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी में नहीं देखा। मेरा ख़्याल है कि चर्खों की फ़रोख़्तगी में इसलिए इज़ाफ़ा हो रहा है क्योंकि आलमी सतह पर महात्मा गांधी के अक़ीदत मंदों में भी इज़ाफ़ा हुआ है। आज के इस गड़बड़ ज़दा दौर में महात्मा गांधी के अदम तशद्दुद और सच्चाई के पैग़ामात को लोग समझ रहे हैं और इन पैग़ामात से सादिक़ दिल के साथ वाबस्ता होना चाहते हैं।

मिस्टर मोदी ने मज़ीद कहा कि अब हम साबरमती आश्रम आने वाले सय्याहों के सामने भी चर्ख़ा कातने का मुज़ाहरा करते हैं ताकि उन्हें मालूम हो जाए कि चर्ख़ा कैसे चलाया जाता है। हृदय कुंज में गाँधियाई फ़लसफ़ा के दिलदादा किशोर भाई गोहिल चर्ख़ा चलाने के सेशन मुनाक़िद करते हैं और वो आश्रम के इसी मुक़ाम पर चर्ख़ा चलाते हैं जहां कभी महात्मा गांधी बैठ कर चर्ख़ा कातते थे।