गाज़ा लड़ाई: नेतन्याहू सरकार पर मंडरा रहा है खतरा!

इस्राईल के युद्धमंत्री और येस्राईल तैबनू पार्टी प्रमुख अविग्डोर लेबर मैन के त्यागपत्र के बाद ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामीन नेतेनयाहू को अभूतपूर्व राजनैतिक संकट का सामना है।

नेतेनयाहू का संकट, लेबरमैन के त्यागपत्र से आरंभ हुआ और अभी यह संकट समाप्त नहीं हुआ है क्योंकि येस्राइल बैतूनू पार्टी की इस्राईली संसद नेसेट में 8 सीटें हैं और लेबरमैंन के सत्तारूढ़ पार्टी से गठबंधन तोड़ने और सरकार से अलग होने की घोषणा के साथ ही यह सांसद भी सरकार के गठबंधन से निकल जाएंगे।

कहा जाता है कि नेतनयाहू सरकार ने मध्यावधि चुनाव के क़ानून बारे में नेतेनयाहू के बयान पर शंका व्यक्त की है और इसे एेतिहासिक ग़लती क़रार देते हुए कहा है कि वह 1992 के संकट को एक बार फिर से सही ढंग से पेश करें।

बताया जाता है कि जब लेबर पार्टी ने इस्हाक़ शामीरा के नेतृत्व में लिकोड पार्टी को सत्ता से अलग किया तो उस समय मध्यावधि चुनाव आयोजित कराए गये थे और इस्हाक़ राबिन को प्रधानमंत्री बनाया गया था।

होने वाली सहमति के दृष्टिगत कुछ परिणाम सामने आते हैं। पहला परिणाम यह है कि एक बार फिर सुरक्षा मामलों विशेषकर लेबनान या फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधक बलों से मुक़ाबले में स्वयं को आंतरिक राजनैतिक मामलों में उलझा लिया जो अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के भविष्य निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।

नेतेनयाहू और इस्राईल के सेना प्रमुख गादी आइज़्नकोट को यह बात समझ में आ चुकी है कि ग़ज़्ज़ा से इस्राईली क्षेत्रों पर होने वाले मीज़ाइल हमलों और ग़ज़्ज़ा के पतिरोध के दृष्टिगत आयरन डोम का सक्रिय रहना इस्राईल के हित में नहीं है और दूसरी ओर ज़ायोनी शासन अपनी उन कमज़ोरियों पर भी नज़र रखे हुए है जिसके बारे में प्रतिरोध को भनक लग गयी है और वह अगले मुक़ाबले में इस्राईल के इसी कमज़ोर बिन्दु को निशाना बनाएंगे।

इसके मुक़ाबले में लेबरमैन और बेनिट ने युद्ध के भयावह परिणाम की अनदेखी करते हुए इस बात की ओर अधिक रुझान रखते हैं और यही कारण है कि ग़ज़्ज़ा में संघर्ष विराम के बाद की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया और उन्होंने मध्यावधि चुनाव के लिए दबाव डालने हेतु अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

दूसरा यह कि नेतेनयाहू को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना है कि शायद एक बार फिर लीकूड पार्ट उस पर नियंत्रण कर लेगी। बहरहाल गत 30 मार्च से तीव्रता के साथ शुरू होने वाले इन प्रदर्शनों ने अतिग्रहणकारी इस्राईल को गहरी चिंता में डाल दिया है और वह प्रदर्शनों को रोक पाने में पूरी तरह विफल हो चुका है।

हर शुक्रवार को इस्राईली हमलों में फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारी शहीद हो रहे हैं। शहीदों की संख्या 210 से अधिक हो चुकी है लेकिन फ़िलिस्तीनियों के प्रदर्शनों में कोई कमी नहीं आई है।

इन प्रदर्शनों के कारण सारी दुनिया के सामने यह हक़ीक़त बार बार आ जाती है कि इस्राईल की अपनी कोई धरती नहीं है बल्कि वह फ़िलिस्तीनियों की धरती पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा करके बैठा है और इन ज़मीनों के मालिक मौजूद हैं जो अपनी इन ज़मीनों पर लौटना चाहते हैं।

यही नहीं वह अपनी ज़मीनें पुनः हासिल करने के लिए अपनी जान देने के लिए भी तैयार हैं। यहां पर यह कहा जा सकता है कि ग़ज़्जा ने जो इस्राईल को घाव दिया है अब वह नासूर बनता जा रहा है।