गीतकारों और संगीतकारों को रॉयल्टी नहीं देने पर म्यूजिक कंपनियों को ईडी ने भेजा नोटिस, हाजिर होने को कहा

मुंबई : बॉलीवुड की म्यूजिक कंपनियों को वर्तन निदेशालय ने गीतकारों और संगीतकारों को रॉयल्टी का भुगतान करने में विफल होने पर हाजिर होने का आदेश दिया है. क्लासिकल सिंगर शुभा मुद्गल ने इस साल की शुरूआत में दिल्ली पुलिस में म्यूजिक कंपनियों के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी जिस पर कार्रवाई करते हुए मुंबई के प्रवर्तन निदेशालय ने समन जारी किया था. शुभा मुद्गल ने कहा कि, ‘मैंने आईपीआरएस, पीपीएल और उनके निदेशक और अधिकारियों के खिलाफ दिल्ली पुलिस के ईओडब्ल्यू के सामने एक शिकायत दर्ज की है. म्यूजिक कंपोजर्स ऑफ इंडिया और फिल्म राइटर्स एसोसिएशन ने भी इसी तरह की शिकायत दर्ज की थी. एफआईआर नंबर 167 के तहत 2016 में ये केस दर्ज किया गया था.’

साथ ही उन्होंने कहा कि, ‘ये मैटर आईपीआरएस से आवश्यक आश्वासन के बाद सेटल कर दिया गया था और आईपीआरएस/पीपीएल दोनों के द्वारा इसे रद्द करने का एक पिटीशन भी फाइल किया गया था. अन्य लोगों के द्वारा इस प्राथमिकी में अभियुक्त और माननीय उच्च न्यायालय के सामने मेरे जरिए संयुक्त रुप से शिकायत दर्ज की गई थी. ये सभी अब तक निपटान के लिए लंबित हैं और अब इस पर 20 नवंबर 2017 तक विचार करने को कहा जा रहा है.’

आपको बता दें कि, टी-सिरीज के हेड भूषण कुमार इस मामले में पहले ही अपना बयान दर्ज करवा चुके हैं. इसके बावजूद कंपनी के मार्केटिंग हेड के जरिए एक स्टेटमेंट जारी किया गया था. यशराज फिल्म्स के हेड आदित्य चोपड़ा को भी इस मामले में निदेशालय ने समन भेजा है. उनके स्टेटमेंट को इस सप्ताह रिकॉर्ड किया जाएगा. कुछ और म्यूजिक कंपनी जैसे सोनी म्यूजिक और यूनिवर्सल म्यूजिक को भी समन भेजा गया है.

पिछली सरकार के वक्त संसद में एक विधेयक पारित किया गया था, जिसे कॉपीराइट (संशोधन) कानून- 2012 भी कहते हैं। इसके तहत यह तय हुआ था कि फिल्मी गाने या अन्य सामग्री इस्तेमाल होने पर जो धन म्यूजिक कंपनियां, फिल्म निर्माता या अन्य कंपनियां लेती हैं, उसका एक हिस्सा एक कोष में जाएगा, जिसे उन गीतों या अन्य रचनात्मक सामग्रियों के लेखक, संगीतकारों व संगीत-निर्देशकों में वितरित किया जाएगा। जब पिछले हफ्ते मैं प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर से मिला, तो पता चला कि उन्हें आज तक इस कोष से एक भी पैसा नहीं मिला है। उस मुलाकात के वक्त केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी मौजूद थे और उन्होंने इस कानून के बारे में लताजी को आश्वस्त किया कि यह कानून लागू हो जाएगा।

अगर इस पूरे प्रकरण की तहकीकात की जाए, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। कई म्यूजिक कंपनियों, खासतौर से टी-सीरीज, यशराज फिल्म्स, आईपीआरएस शेमारू, स्वामी फिल्म्स आदि ने फिल्म निर्माताओं से इन गानों के अधिकार खरीद लिए हैं। आज देश में पांच सौ से ऊपर टीवी चैनल और तमाम एफएम रेडियो हैं। ये टीवी चैनल और एफएम रेडियो जब भी कोई गाना बजाते हैं, तो उन्हें इन म्यूजिक कंपनियों को हर बार पैसा देना पड़ता है। इस तरह से सैकड़ों करोड़ रुपये ये कंपनियां टीवी चैनल और एफएम रेडियो से इकट्ठा करती हैं और थोड़ा-सा हिस्सा फिल्म निर्माताओं को देकर बाकी पैसा खुद हजम कर जाती हैं। यह काम पिछले दस साल से चल रहा है।

जब जावेद अख्तर राज्यसभा सदस्य बने, तो उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी लड़ाई छेड़ी और सरकार से कॉपीराइट कानून बनाने के लिए कहा, ताकि लेखकों, गायकों, संगीतकारों व अन्य को भी इसमें एक हिस्सा मिल सके और सारा पैसा सिर्फ म्यूजिक कंपनियां खुद न खा लें। म्यूजिक कंपनियों ने इस बिल का भारी विरोध किया, लेकिन अंततोगत्वा यह बिल पारित हुआ। जावेद अख्तर ने तो यहां तक कह दिया था कि जब तक यह बिल पास नहीं होगा, वह संसद में बोलेंगे नहीं और अपना पहला भाषण इस बिल के पक्ष में देंगे।