गुंबदान-ए-क़ुतुब शाही में औरंगज़ेब आलमगीर की मस्जिद फ़न तामीर का शाहकार

हैदराबाद 11 फ़रवरी क़िला गोलकुंडा, गुंबदान क़ुतुब शाही, दक्कन और बीजापूर का जब भी ज़िक्र आता है या लोग शरीयत पर सख़्ती से अमल करने और दूसरों को अमल करवाने वाले हुक्मराँ टोपियां बुन कर और क़ुरआन मजीद के नुस्ख़ा तहरीर करते हुए दो वक़्त की रोटी का इंतिज़ाम करने वाले और सरज़मीन हिंद पर अदल और इंसाफ़ के ख़ाहां बादशाह , दीनी तालीम से ख़ुसूसी दिलचस्पी रखते, क़ुरआन मजीद की आयात और अहादीस नबवी को अपने ज़हन और क़ल्ब में बिठाने के लिए हमेशा बेचैन रहने वाले,

दीन के लिए अपने अरकान ख़ानदान की एहमीयत को नजर अंदाज़ करने के साथ साथ क़ाबिल तरीन लोगों की हौसला अफ़्ज़ाई, ताक़तवर और ज़हीन शहनशाह का हवाला दिया जाता है तो बेशतर लोग और ग़ैर जानिबदार मोअर्ख़ीन छटवें मुग़ल हुक्मराँ अबू मुज़फ़्फ़र मही उद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगी के बारे में सोचने लगते हैं।

क़ारईन सलतनते मुग़्लिया के इस ताक़तवर तरीन हुक्मराँ ने जहां ज़िंदगी भर अपनी सलतनत को वुसअत देने के लिए जंगें किए वहीं आलमगीर औरंगज़ेब की ये ख़ासीयत रही कि उन्हों ने जहां-जहां डेरा डाला वहां मस्जिद की तामीर ज़रूर करवाई।

मसाजिद की तामीर के दौरान वो ख़ुद सिपाहीयों के साथ बा नफ्स नफ़ीस काम करते ऐसी ही एक ख़ूबसूरत मस्जिद गुंबदान क़ुतुब शाही में वाक़े है जहां आज भी अल्लाह के बंदे अपने रब की बारगाह में पेश होकर सजदा रेज़ होते हैं। औरंगज़ेब को दक्कन और बिल ख़सूस गोलकुंडा से ख़ास उंसीयत रही।

उन के वालिद शाहजहां ने जब उन्हें दक्कन का वाइसरे मुक़र्रर किया था। उस वक़्त से ही वो दक्कन को अपनी ममलकत में शामिल करने के ख़ाहां रहे और गोलकुंडा पर 1686 में हमला किया और इस हमले में औरंगज़ेब ने मुसलसल कई बरसों से जो कोशिश की थी उसे बिलआख़िर कामयाबी मिल ही गई।

औरंगज़ेब ने जो मज़हबी मुआमलात में बहुत सख़्त थे गुंबदान क़ुतुब शाही के बाबुल दाखिला की सीधी जानिब तीन कमानों की एक मस्जिद तामीर करवाई इस मस्जिद में वो अक्सर और बेशतर इबादात और अज़कार में मसरूफ़ रहा करते थे।

उन के दौरे इक्तदार में सालाना 100 मिलयन स्टर्लिंग पाऊंडस टैक्सों, कस्टमज़ और लैंड रीवैन्यू की शक्ल में सरकारी ख़ज़ाना में जमा होते लेकिन 48 बरस तक सारे बर्रे सग़ीर पर हुकूमत करने वाला ये मुग़ल बादशाह टोपियां बुन कर और क़ुरआन मजीद के नुस्खे़ तहरीर करते हुए अपनी गुज़र बसर का इंतिज़ाम कर लिया करते थे।

4 नवंबर 1618 को गुजरात के मुक़ाम धोद में मुमताज़ महल से जन्म लेने वाले औरंगज़ेब के दौरे इक्तदार में हिंदुस्तान का हर इलाक़ा उन के ज़ेर नगीं हो चुका था। हिंदुस्तान की तारीख़ में सब से पहली बार नशा बंदी का एज़ाज़ भी औरंगज़ेब को ही हासिल है।