गुजरात के पाश हिंदू इलाक़ों में ओक़ाफ़ी जायदादों पर नाजायज़ क़बज़े, मुस्लिम इदारों को नोटिस

गुजरात में बिलख़सूस पाश हिंदू अक्सरियती इलाक़ों में मुस्लिम ओक़ाफ़ी जायदादों पर बड़े पैमाने पर नाजायज़ क़ब्ज़ों के दौरान गुजरात स्टेट वक़्फ़ बोर्ड (जी ऐस डब्लयू बी) ने उल्टा उन 287 मुस्लिम इदारों को ही नोटिस जारी कर दिया है जो तक़रीबन 5000 ओक़ाफ़ी जायदादों की सयानत करते हैं।

इन इदारों से कहा गया है क़ि वो गुजिशता कई साल से वक़्फ़ बोर्ड में लाज़िमी अतयात जमा नहीं किए हैं जिस के नतीजे में उनके नाम नोटिस जारी की गई है। चंद मुस्लिम ओक़ाफ़ी इदारों के ज़राए ने कहा है कि सियासतदानों, बिल्डरों और समाज दुश्मन अनासिर की गठजोड़ से सैंकड़ों करोड़ रुपये मालियती क़ीमती ओक़ाफ़ी आराजियात पर नाजायज़ क़बज़े किए जा चुके हैं।

अहमदाबाद में बी जे पी के ज़ेर-ए-असर इलाक़ों सरखेज, लाल दरवाज़ा, शेवा रंजनी और लागारडन में वक़्फ़ बोर्ड की कई क़ीमती आराजियात थीं जो अब नहीं रही हैं। दीगर कई मुक़ामात पर भी ओक़ाफ़ी जायदादों का कोई पुर्साने हाल नहीं है।

अक्सर पाश शहर इलाक़ों में ओक़ाफ़ी आराजियात पर हमा मंज़िला रिहायशी-ओ-तिजारती कामपलकस तामीर होचुके हैं और हैरत तो इस बात पर है कि ये सब कुछ वक़्फ़ बोर्ड के दफ़्तर से बहुत क़रीब हुआ है।

गुजरात के सालाना बजट में वक़्फ़ बोर्ड के लिए कोई फ़ंडस तय नहीं किए जाते और तो और बोर्ड को फिक्स्ड डिपाज़िट पर सालाना 37 लाख रुपयॆ सूद वसूल होता है और तो और गुजरात वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन ए आई सय्यद का कहना है कि बोर्ड को इस के इलावा भी सालाना 75 लाख रुपये की आमदनी होती है जिस के मिनजुमला 45 लाख रुपये होनहार मुस्लिम तलबा-ए-ओ- तालिबात को दिए जाते हैं बाकी रक़म फ़ाज़िल रहती है।

सय्यद ने कहा कि रियास्ती हुकूमत कोई फ़ंड नहीं देती और ना ही हमें उस की कोई ज़रूरत है। सय्यद एक रिटायर्ड आई पी एस ऑफीसर हैं जो वज़ीफ़ा पर सबकदोशी के बाद बी जे पी में शामिल हुए थे जिन्हें नरेंद्र मोदी हुकूमत ने रियास्ती वक़्फ़ बोर्ड का सदर नशीन बनादिया है।

रियास्ती सेक्रेटरी के एक गोशा में सय्यद का दफ़्तर वाके है जहां लटकी तस्वीरों में चीफ़ मिनिस्टर नरेंद्र मोदी एक तक़रीब के दौरान होनहार मुस्लिम बच्चों को मुबारकबाद देते हुए दिखाए गए हैं। गुजरात वक़्फ़ बोर्ड के सरकारी रिकार्ड के मुताबिक़ अगरचे इस रियासत के अहम मुक़ामात पर 55000 एकड़ पर मुहीत 11,428 जायदादें दर्ज हैं लेकिन हक़ीक़त में अक्सर जायदादों का वजूद बाक़ी नहीं रहा है।