गुजरात के वो तीन नेता जिन्होंने उड़ाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नींद

साल 2017 के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी पकड़ को मजबूत बनाने की कोशिश करनी शुरू कर दी है। इस कड़ी में एक पार्टी नेताओं को डरा धमका कर या ख़रीद कर अपने पाले में लाने की कोशिश में लगी है। गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार हार्दिक, अल्पेश  और जिग्नेश की तिकड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस तिकड़ी के एक साथ कॉंग्रेस को समर्थन देने से भाजपा का सफाया तय माना जा रहा है।

हालांकि आम आदमी पार्टी के गुजरात चुनाव लड़ने की खबर से भारतीय जनता पार्टी को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।

आज हम आपको मिलवा रहे है गुजरात की उस तिकड़ी से जिसने भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की नींद उड़ा रखी है।

हार्दिक पटेल

साल 2015 में उठी पटेल आरक्षण की मांग के समय हार्दिक पटेल का नाम तेज़ी से उभरकर सामने आया था इस आंदोलन को दबाने की गुजरात सरकार की कोशिशों के बावजूद अभी तक यह मांग उठती चली आ रही है।

जुलाई 2015 में हार्दिक की बहन, मोनिका राज्य सरकार की छात्रवृति प्राप्त करने में विफल रही। इस कारण उन्होंने एक पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का निर्माण किया। जिसका लक्ष्य अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल होना था। हार्दिक पटेल गुजरात में पटेल समुदाय द्वारा ओबीसी दर्जे की मांग को लेकर जारी आरक्षण आंदोलन के युवा नेता हैं। यह ओबीसी दर्जे में पटेल समुदाय को जोड़कर सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण चाहते हैं।

पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक हार्दिक पटेल किसी भी पार्टी में न शामिल होने की बात कह चुके हैं।

हार्दिक पटेल ने कई सार्वजनिक मंचों से खुले तौर पर बीजेपी को आरक्षण न देने के लिए दोषी ठहराया है। अमित शाह को गुजरात गौरव यात्रा के दौरान भी पाटीदार युवाओं का विरोध झेलना पड़ा था। इसके साथ ही हार्दिक पटेल ने कांग्रेस की तरफ़ झुकाव भी प्रकट किया है  कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के गुजरात जाने पर हार्दिक ने ट्वीट करके उनका स्वागत किया था। और राहुल गांधी से हार्दिक पटेल की मुलाकात की खबरें भी आती रही है ऐसे में बीजेपी की चिंताएं बढ़ना लाज़मी है।

पाटीदार भले ही 12 प्रतिशत का वोट शेयर रखते हों लेकिन अपनी आर्थिक ताक़त के कारण वह स्थितियां प्रभावित करने के लिए काफी है। शुरुआत में इस आंदोलन का विरोध करने के बाद अब बीजेपी पाटीदारों का वोट पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। आंदोलन में शामिल पाटीदार नेताओं के ख़िलाफ़ केस वापस लिए गए हैं और अनामत आंदोलन समिति के सदस्यों पर हुए पुलिस अत्याचार की जांच के लिए समिति का निर्माण किया गया है। पाटीदार नेताओं को पैसे देकर खरीदने की कोशिश भी की गयी।

हालांकि, इसके बावजूद भी हार्दिक पटेल का रुख़ बीजेपी के प्रति नरम पड़ता नहीं दिख रहा है। हार्दिक पटेल का बीजेपी के साथ जाने का सवाल ही नहीं उठता। वह राहुल गांधी का स्वागत करके अपने झुकाव का संकेत दे चुके हैं।

जिग्नेश मेवाणी

राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी राज्य में दलितों पर हो रहे हमलों के लिए गुजरात सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। लगातार दलितों पर हुए हमले की ख़बरों के बाद बीजेपी की छवि का पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक भी है।

गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर उभरे जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन का जिग्नेश ने नेतृत्व किया था। जिग्नेश पर आम आदमी पार्टी से जुड़े होने के आरोप भी लगते रहें है जिनकी अभी पुष्टि नही हो सकी है।

मेवाणी तब अचानक सुर्खियों में आए जब उन्होंने वेरावल में उना वाली घटना के बाद घोषणा की कि ‘अब दलित लोग समाज के लिए ”गंदा काम” नहीं करेंगे,’ यानी मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकाला, मैला ढोना आदि…

‘आज़ादी कूच आंदोलन’ में जिग्नेश ने 20 हज़ार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी। इस आंदोलन में दलित मुस्लिम एकता भी दिखाई दी थी।

बीबीसी को दिए साक्षत्कार में जिग्नेश मेवाणी दलितों पर हो रहें अत्याचार पर कहते है कि, ”राज्य में दलित पर हो रहे हमलों को रोकने और उनकी स्थिति में सुधार के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। बीजेपी का हिंदुत्व का एजेंडा है और इस सरकार के रहते उनका भला नहीं हो सकता।“

मेवाणी को कॉलेज में पढ़ा चुके प्रोफ़ेसर और कार्यकर्ता संजय भवे कहते हैं, ”उन्होंने स्टालिन से लेकर चर्चिल और गांधी से लेकर अंबेडकर तक को पढ़ा है। किसी ने उन्हें प्रभावित नहीं किया।

मेवाणी साफ़-साफ़ कहते हैं, ”इस बार बीजेपी को हर क़ीमत पर हराया जाना चाहिए.” हालांकि, वह अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कुछ भी साफ़ तौर पर नहीं कह रहे हैं। राज्य में दलितों का वोट प्रतिशत क़रीब सात फ़ीसदी है। राज्य की कुल आबादी लगभग 6 करोड़ 38 लाख है, जिनमें दलित 35 लाख 92 हज़ार के क़रीब हैं। गुजरात में दलितों का प्रतिनिधित्व बहुत ज्यादा न होने के बावजूद भी चुनाव में हर एक वोट बहुत कीमती होता है। ऐसे में बीजेपी के लिए जिग्नेश मेवाणी मुसीबत ला सकते हैं।

अल्पेश ठाकुर

ओबीसी नेता के तौर पर उभरे अल्पेश ठाकुर पाटीदारों को आरक्षण देने का विरोध करते रहे हैं। साथ ही वह देसी शराब से होने वाले नुक़सान के चलते शराबबंदी के पक्षधर रहे हैं।

ओबीसी, एससी और एसटी एकता मंच के संयोजक अल्पेश ठाकुर ने अलग-अलग मंचों से गुजरात की हालत ख़राब होने की बात कही है। वह कहते हैं कि विकास सिर्फ दिखावा है। गुजरात में लाखों लोगों के पास रोज़गार नहीं है। ओबीसी का वोट प्रतिशत 40 है जो पाटीदार और एससी व एसटी से कहीं ज्यादा है। ऐसे में बीजेपी के लिए ये वर्ग और महत्वपूर्ण हो जाता है।

लेकिन, पाटीदारों को आरक्षण देने के मसले पर बीजेपी और उनकी राय एक होने के चलते अल्पेश ठाकुर का झुकाव बीजेपी की तरफ जाने की संभावना थी। लेकिन हाल ही में गुजरात में राहुल गांधी के साथ मंच साझा करके उन्होंने कॉंग्रेस की सदस्य्ता ग्रहण कर ली है।

हालांकि इससे पहले अल्पेश ठाकोर ने हार्दिक पटेल पर पटेलों को भड़काने का आरोप भी लगाया था। लेकिन अब भाजपा को हराने के लिए दोनों एक ही पार्टी को समर्थन देने जा रहें है।

गुजरात चुनाव का परिणाम जो भी निकले लेकिन गुजरात की इस तिकड़ी ने भारतीय जनता पार्टी की मुसीबतें बढ़ा दी है। इस तिकड़ी के खिलाफ़ जाने के कारण गुजरात में भाजपा की रैलियों में भी कम भीड़ देखने को मिल रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार गुजरात से भाजपा का साफ होना तय है।