गुजरात चुनाव: बीजेपी की दबदबा वाली सीटों पर बदल रहे हैं समीकरण!

अहमदाबाद। मध्य और उत्तरी गुजरात में राज्य विधानसभा के दूसरे चरण का चुनाव 14 दिसंबर को होने जा रहा है और सब की निगाहें अहमदाबाद के 39 लाख मतदाताओं पर टिकी हुई हैं।

यहां विधानसभा के 16 सीटों पर चुनाव होने हैं। 1990 के दशक से इस क्षेत्र को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। बीजेपी ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान यहां घटलोदिया, जमालपुर-खाड़िया, वेजलपुर, वाटवा, एलिसब्रिज, नारनपुरा, निकोल और नरोदा सहित 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

कांग्रेस को यहां सिर्फ दो सीटों- साबरमती और असरवा (एससी) से ही संतोष करना पड़ा था। गुजरात के अन्य शहरों की तरह ही इस शहरी इलाके के लोग बीजेपी का समर्थन 90 दशक के शुरुआत से ही कर रहे हैं।

कम से कम यहां के पांच सीटों घटलोदिया, निकोल, मणिनगर, साबरमती और ठक्करबापा नगर में पाटीदार समुदाय बड़ी संख्या में हैं।यहां की चार सीटों- जमालपुर-खाड़िया, दरियापुर, दनीलीमादा और वेजलपुर में मुस्लिम मतदाता काफी संख्या में हैं।

मणिनगर विधानसभा का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तात्कालीन विधायक और मुख्यमंत्री के रूप में साल 2002 से 2014 तक किया था।

इस सीट को शहर का सबसे प्रभावशाली सीट और बीजेपी का गढ़ कहा जाता है। साल 2012 में यहां पीएम मोदी को 86,000 मतों से जीत मिली थी।

साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। बीजेपी उम्मीदवार सुरेश पटेल ने यहां 52,000 पाटीदार वोट पाकर 49,000 मतों से जीत हासिल की थी।

बीजेपी की तरफ पटेल को फिर इस सीट से उम्मीदवार बनाया गया है और अब उनका मुकाबला कांग्रेस के युवा चेहरे श्वेता ब्रह्मभट्ट से है जो आईआईएम से पढ़ी हुई हैं।

इसके अलावा घटलोदिया विधानसभा सीट भी काफी अहम है। इस सीट का प्रतिनिधित्व कभी गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल करती थीं। आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन के बाद आनंदीबेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पाटीदारों के द्वारा इस क्षेत्र में भी हिंसक प्रदर्शन हुआ था।

इस बार चुनाव नहीं लड़ने की आनंदीबेन पटेल की ‘इच्छा’ का सम्मान करते हुए बीजेपी ने यहां से अन्य वरिष्ठ नेता भूपेंद्र पटेल को टिकट दिया है। यहां की पड़ोसी सीट नारनपुरा की है।

यहां करीब 40,000 पाटीदार वोटर हैं, इस सीट का प्रतिनिधित्व पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह करते थे। राज्यसभा में चुने जाने के बाद शाह ने अगस्त में इस सीट से इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने यहां से पूर्व मंत्री कौशिक पटेल को टिकट दिया है, ऐसा माना जाता है कि पटेल शाह के करीबी हैं।

पाटीदार समुदाय पिछले दो दशक से बीजेपी का कट्टर समर्थक माने जाते रहे हैं। आरक्षण की मांग को लेकर पटेल समुदाय के आंदोलन और बीजेपी को इस बार सत्ता से बाहर करने की हार्दिक पटेल की अपील के बाद चुनावी समीकरण बदले हुए हैं।

इसके अलावा इस क्षेत्र के ठक्करबापा नगर (35,000 पाटीदार मतदाता), बापूनगर (31,000), निकोल (52,000), नरोदा (34,000) और साबरमती (44,000) सीटों पर पाटीदारों के गुस्से का असर पड़ सकता है।

पाटीदार वोटों को लेकर चल रही खींचतान के बीच जमालपुर-खाड़िया सीट भी विभिन्न कारणों से चर्चा के केंद्र में मुस्लिम। इस विधानसभा क्षेत्र में 1.98 लाख मतदाता हैं, उनमें मुस्लिमों की संख्या एक लाख से ज्यादा है और वह निर्णायक भूमिका में हैं।

उनका वोट मौजूदा विधायक भूषण भट्ट के भविष्य को तय करने में अहम स्थान रख सकता है। साल 2012 में भट्ट को प्रत्यक्ष तौर पर स्वतंत्र उम्मीदवार साबिर काबुलीवाला और कांग्रेस अध्यक्ष समीरखान पठान के अल्पसंख्यक वोटों के बंटवारे की वजह से लाभ मिला था।

कांग्रेस के बागी काबुलीवाला को करीब 30,000 वोट मिले थे, इससे भट्ट के जीतने का रास्ता तय हो गया था। भट्ट को 6,300 वोटों से जीत मिली थी।

इस बार भी काबुलीवाला कांग्रेस से टिकट मिलने की आस लगाए बैठे थे लेकिन टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने गुस्से में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नामांकन पत्र दायर किया। यहां से कांग्रेस ने स्थानीय काउंसलर इमरान खेड़ावाला को टिकट दिया है।

खेड़ावाला और काबुलीवाला दोनों ही छीपा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जमालपुर-खाड़िया सीट में 25,000 से 30,000 लोग छीपा समुदाय के हैं। काबुलीवाला ने अंतिम समय में अपना नामांकन वापस ले लिया। इस अचानक बदले समीकरण से बीजेपी को इस सीट पर कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।

इसके अलावा मुस्लिम बहुल दरियापुर सीट मौजूदा समय में कांग्रेस के विधायक गयासुद्दीन शेख के पास है। ‘प्रगतिशील’ नेता की छवि से इन्हें कुछ हिंदू मतदाताओं का समर्थन भी प्राप्त है।