गुजरात दंगों से निपटने के तरीकों से मायूस थे वाजपेयी : चीफ इंटेलिजेंस एजेंसी रॉ

नई दिल्ली: मुल्क की अहम इंटेलिजेंस एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड अनालिसिस विंग) के साबिक चीफ एएस दुलत के मुताबिक साबिक वज़ीर ए आज़म अटल बिहारी वाजपेयी 2002 के गुजरात दंगों को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी और इसे एक गलती करार दिया था।

इन दंगों के बाद वह काफी मायूस थे और उन्होंने इन दंगों को हैंडल करने में हुई नाकामी को माना था। दुलत ने कहा कि यह बात वाजपेयी के साथ एक बैठक के वक्त की है। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में दुलत ने कई बातों का खुलासा किया है।

इस इंटरव्यू में दुलत ने वाजपेयी के साथ अपनी आखिरी बैठक का जिक्र किया। उनके मुताबिक, उस बैठक में वाजपेयी ने गुजरात दंगों के हवाले में कहा कि वह हमारे से गलती हुई है। दुलत ने कहा, 2004 के लोकसभा इंतेखाबात के बाद वाजपेयी ने मुझसे बातचीत में 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र किया था। वाजपेयी की मायूसी को साफ महसूस किया जा सकता था।

वाजपेयी ने माना था कि गुजरात दंगे गलती का नतीजा था। अटल ने कहा था कि गुजरात में हमसे कुछ गलती हो गई। दुलत साल 2002 तक रॉ के चीफ रहे और बाद में वाजपेयी के वक्त वज़ीर ए आज़म के दफ्तर में कश्मीर मुद्दे पर खुसूसी सलाहकार थे।

दुलत की बुक “कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स” जल्द ही रिलीज होने वाली है। इस बुक में वाजपेयी के इक्तेदार के दौर का जिक्र है। ब्रजेश मिश्र से खुश नहीं थे आडवाणी दुलत के मुताबिक, अटल और आडवाणी के रिश्ते बहुत अच्छे थे, लेकिन आडवाणी अटल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ब्रजेश मिश्रा को मिलने वाली इम्पॉर्टेंस से खुश नहीं थे।

दुलत के मुताबिक, ब्रजेश मिश्रा ही एक तरह से हुकूमत चलाते थे। वह खामोशपसंद लेकिन बहुत शार्प माइंड के आदमी थे। आडवाणी को लगता था कि प्रिंसिपल सेक्रेटरी को डिप्टी पीएम से ज्यादा अहमियत मिलती थी और दोनों लीडरों के बीच यह अहम मुद्दा था।

दुलत ने बताया कि साल 2001 में वाजपेयी और पाकिस्तान के सदर परवेज मुशर्रफ के बीच आगरा में हुई बातचीत आखिरी वक्त पर फेल हुई। दुलत ने कहा, बातचीत अच्छे माहौल में शुरू नहीं हुई। बातचीत शुरू होने के पहले वाली रात को आडवाणी पाक सदर से मिले और उनसे साफ कहा कि पाकिस्तान दाऊद इब्राहिम को हमें सौंप दे।

मुशर्रफ ने इसका सीधा जवाब न देते हुए कहा कि आगरा में बात करते हैं। वाजपेयी पर बहुत दबाव था। जब मैंने ब्रजेश मिश्रा से पूछा कि बातचीत फेल क्यों हो गई, तो उन्होंने भी कोई सीधा जवाब नहीं दिया।

दुलत का मानना है कि साल 1999 में हुए ढढ्ष्ट-814 प्लेन हाईजैकिंग मामले में सही हिकमत अमली नहीं अपनाई गई। उन्होंने कहा, कोई नहीं चाहता था कि यह प्लेन अमृतसर से बाहर निकल पाए, लेकिन क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप इस मामले को सही तरीके से हैंडल नहीं कर पाया।

जम्मू-कश्मीर के उस वक्त के वज़ीर ए आला फारूख अबदुल्ला भी दहशतगर्दों की रिहाई के मरकज़ के फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने इसे गलती बताते हुए इस्तीफा देने का मन बना लिया था।

दुलत ने बताया कि वाजपेयी नहीं चाहते थे कि मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू-कश्मीर के वज़ीर ए आला बनें। साबिक रॉ चीफ ने लिखा है कि, वाजपेयी चाहते थे कि सोनिया गांधी सईद को वज़ीर ए आला बनाने का प्लान बदल दें, क्योंकि इस बात का शक था कि सईद की बेटी महबूबा के रिश्ते दहशतगर्द तंज़ीम हिज्बुल मुजाहिदीन से हैं।

वाजपेयी ने फारूख अबदुल्ला को नायब सदर बनने का ऑफर दिया था। वह चाहते थे कि उमर अबदुल्ला फारूख की जगह कश्मीर के वज़ीर ए आला बनें, क्योंकि वह उन्हें अच्छा नौजवान लिईडर नेता मानते थे। ब्रजेश मिश्रा ने वाजपेयी के कहने पर फारूख अबदुल्ला को नायब सदर जम्हूरिया बनने का ऑफर दिया, लेकिन फारूख को लगता था कि मरकज़ की हुकूमत उन पर भरोसा नहीं करती।