वाशिंगटन, 02 मई: अमरीकी कांग्रेस के आज़ादाना पियानल बराए मज़हबी आज़ादी ने चीफ़ मिनिस्टर गुजरात नरेंद्र मोदी पर वीज़ा पाबंदी को बरक़रार रखने पर ज़ोर दिया और कहा कि मोदी के 2002 के गुजरात मुस्लिम कश फ़सादाद में शामिल होने के ग़ैरमामूली सबूत पाए जाते हैं। अमरीकी कमीशन बराए बैनुल अक़वामी मज़हबी आज़ादी की ख़ातून चेयरमैन कैटरीन लांसटोस स्वीट ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि गुजरात में जो मुस्लिम कश फ़सादाद और होलनाक वाक़ियात-ओ-तशद्दुद बरपा हुआ था इस में नरेंद्र मोदी के शामिल होने के ग़ैरमामूली सबूत मौजूद हैं।
इस वजह से उन्हें वीज़ा जारी करना मुनासिब नहीं होगा। इस पियानल (USCIRF) की सालाना रिपोर्ट ने हिन्दुस्तान को मज़हबी आज़ादी पर टायर 2 मुल्कों में जगह दी है। इस के साथ दीगर सात मुल्क अफ़्ग़ानिस्तान, अज़रबाईजान, क्यूबा, इंडोनेशिया, क़ज़्ज़ाक़िसतान, लाओइस और रूस भी शरीक हैं। सालाना रिपोर्ट बराए 2013 में यू एस सी आई आर एफ़ ने सिफ़ारिश की है कि सेक्रेटरी आफ़ स्टेट को इन 8 मुमालिक की अज़सर-ए-नौ ज़मुरा बंदी करनी चाहिए। इन हलक़ों को ख़ास तशवीश वाले मुल्कों के तौर पर दुबारा नामज़द करे जिन में बर्मा, चीन, अरीटारा, ईरान, शुमाली कोरिया, सऊदी अरब, सूडान और उज़बेकिस्तान की निशानदेही की है।
नरेंद्र मोदी वाहिद फ़र्द हैं जिन के ख़िलाफ़ अमरीका ने अब तक अपने वीज़ा पाबंदी के क़ानून को इस्तिमाल किया है जो मार्च 2005 में मज़हबी आज़ादी से मुताल्लिक़ दफ़आत से मरबूत है क्योंकि उन्होंने मुबय्यना तौर पर 2002 में फ़सादाद करवाए थे जिस के नतीजे में तक़रीबन 1,100 ता 2000 मुसलमान हलाक हुए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि यू एस सी आई आर एफ़ ने डिपार्टमेंट आफ़ स्टेट और होमलैंड सेक्यूरिटी पर ज़ोर दिया है कि वो इन बुनियादों पर अमरीका में दाख़िल होने के अहल नहीं हैं उन की फ़हरिस्त पर नज़रसानी करे।
वाज़िह रहे कि नवंबर 2012 में इस पियानल ने उस वक़्त की सेक्रेटरी आफ़ स्टेट हीलारी क्लिन्टन को एक ख़त लिख कर मोदी के ख़िलाफ़ अमरीकी पालिसी जारी रखने पर अंदेशा ज़ाहिर किया था कि चीफ़ मिनिस्टर गुजरात फिर एक बार वीज़ा के लिए दरख़ास्त दे सकते हैं। पियानल का कहना है कि मज़हबी आज़ादी की संगीन ख़िलाफ़वरज़ी के मुर्तक़िब इस तरह के अफ़राद को अमरीका में दाख़िल होने से सख़्ती से रोकना ज़रूरी है। इस के लिए उन की शनाख़्त से मुताल्लिक़ रास्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
ये लोग आई आर एफ़ ए (बैनुल अक़वामी मज़हब आज़ादी क़ानून 1998) की ख़िलाफ़वरज़ी के मुर्तक़िब हुए हैं। सदर अमरीका के लिए भी ज़रूरी है कि वो मज़हबी आज़ादी की ख़िलाफ़वरज़ी के मुर्तक़िब ज़िम्मेदारों पर कड़ी नज़र रखने के लिए ख़ुसूसी ओहदेदारों का तक़र्रुर अमल में लाएंगे ताकि जब कभी ऐसे लोग वीज़ा के लिए दरख़ास्त दें तो उन पर नज़र रखी जा सके। इस ज़रूरत के बावजूद किसी भी तशवीश से मरबूत मुल्क ने इन्फ़िरादी ओहदेदारों का तक़र्रुर अमल में नहीं लाया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2002 के गुजरात फ़सादाद की पादाश में गुज़िश्ता दो साल के दौरान 100 से ज़ाइद अफ़राद को मुख़्तलिफ़ जराइम की सज़ाएं दी गई हैं। ये सज़ाएं मामूली मालियाती जुर्मानों से लेकर उमर क़ैद की सज़ा तक शामिल हैं और ज़ाइदाज़ 100 अफ़राद को सबूत की कमी की वजह या गवाहों की जानिब से गवाही देने से इंकार पर बरी कर दिया गया।