नोटबंदी के बाद देश के बैंकिंग सिस्टम की असली तस्वीर सामने है। हालात ये है कि आज भी 90 फीसदी से ज्यादा इलाके में बैंक ही नहीं है, जबकि अब भी लोगों ने अपने खाते नहीं खुलवाएं हैं।
देश के लिए डिजिटल बैंकिंग का सपना देख रही केंद्र सरकार के लिए बहुसंख्यक आबादी का बैंकिंग सिस्टम में नहीं होना, एक झटका तो है, लेकिन इसी चुनौती के बीच केंद्र सरकार इस्लामिक बैंकिंग के जरिये अल्पसंख्यकों को भी बैंकिंग के लिए तैयार कर रही है।
सऊदी अरब सरकार से देश भर में इस्लामिक बैंक की शाखाएं खोलने के लिए एक समझौता किया है। पीएम मोदी ने अप्रैल में यूएई दौरे के दौरान, भारत की एक्सिम बैंक ने आईडीबी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे।
आपको बता दें कि जेद्दा के इस्लामिक डेवेलपमेंट बैंक (आईडीबी) की पहली शाखा गुजरात में खुलेगी। यह बैंक प्रधानमंत्री मोदी के क़रीबी ज़फ़र सरेशवाला के नेतृत्व में खुल रहा है। माना जा रहा है कि इस्लामिक बैंक खुलने से भारत के अल्पसंख्यक समुदायमें आर्थिक स्तर पर बदलाव आएगा।
इस्लामिक बैंक शरीयत के कानूनों के अनुसार गठित किया जाता है। यह बैंक अपने ग्राहकों के जमा पैसे पर न तो ब्याज देता है और न ही ग्राहकों को दिए गए किसी कर्ज पर ब्याज लेता है। ला सकते हैं ये बैंक? और मोदी सरकार क्यों लाना चाहती है देश में इस्लामिक बैंकिंग?
इस्लामिक बैंक को भारत में लाने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा अपने विकास को एजेंडे को आगे बढ़ाना है। हालांकि सरकार के इस कदम की हिंदू संगठन विरोध भी कर रहे हैं। इसमें विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों का आरोप है कि इससे टैरर फंडिंग में इजाफा होगा।
हालांकि देखा जाए तो भारत में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। यही नहीं इस्लामिक नियम कायदे भी गरीब मुसलमान परिवार इस्लामिक कानून के कारण बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जुड़ पाते। जबकि खाड़ी देशों सहित अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में भी मुसलमानों को बैंकिग से जोड़ने के लिए इस्लामिक बैंकों को खोला गया है।
आपको बता दें कि भारत में आरबीआई पहले ही ऐसे बैंकों की स्थापना के लिए हरी झंड़ी दे चुका है। यदि आर्थिक विकास और देश में अल्पसंख्यक समुदाय के पिछड़ेपन को मानक माना जाए तो ऐसे में मोदी सरकार का यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हो सकता है।
पूरी दुनिया के 56 देशों में इस्लामिक बैंक हैं। इन बैंकों का उद्देश्य उसके सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास के लिए काम करना है। और IDB तो मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए भी काम करता है। ऐसे में भारत जैसे देश में जहां, मुस्लिम समाज का बहुत बड़ा तबका भयावह गरीबी, अशिक्षा में डूबा हुआ है, उनके लिए इस्लामिक बैंक वरदान साबित हो सकते हैं।
देश का पहला इस्लामिक बैंक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीब माने जाने वाले गुजरात के बिजनेस मैन जफर सरेशवाला के नेतृत्व में खुलने जा रहा है। हालांकि इस्लामिक बैंक को लेकर देश में नैतिकता को लेकर बहस भी शुरू हो गई है। इस बहस के बीच जफर सरेशवाला कहते हैं कि – इंडिया में शरिया बैंकिंग हो या न हो, इस पर बहस करने की बजाय फोकस 3 लाख करोड़ डॉलर के बड़े इस्लामिक फाइनेंस मार्केट को भुनाने पर होना चाहिए
आपको बता दें कि देश के सर्वौच्च बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बीते हफ्ते ही में देश में शरिया बैंक खोलने का प्रस्ताव रखा है। इसकी शुरुआत बैंकों में मुसलमानों के लिए अलग खिड़की से की जाएगी।