गुजरात हाईकोर्ट के रीटायर्ड जज डी पी बोच ने आज रियासत के चौथे लोक आयुक्त की हैसियत से हल्फ़ लिया। याद रहे कि ये ओहदा गुजिश्ता दस साल से खाली था।
गवर्नर कमला बेनीवाल ने उन्हें ओहदा का हल्फ़ दिलाया। तक़रीब का एहतिमाम राज भवन में किया गया था जहां वज़ीर-ए-आला नरेंद्र मोदी और एसेंबली स्पीकर वाजू वाला भी मौजूद थे। जस्टिस आर एम सोनी लोक आयुक्त की हैसियत से दिसम्बर 2003 में सबकदोश हुए थे और जब से ये ओहदा खाली था।
यहां इस बात का तज़किरा भी दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी हुकूमत 2011 से गवर्नर के साथ इख़तिलाफ़ात का शिकार थी जो दरअसल लोक आयुक्त की तक़र्रुरी के मौज़ू पर पैदा हुए थे ताहम 27 नवंबर को हुकूमत ने लोक आयुक्त के ओहदा के लिए जस्टिस बोच के नाम की सिफ़ारिश की और ये तक़र्रुरी एक ऐसे वक़्त की जा रही है जब इस ओहदा के तवील अर्सा तक खाली रहने पर नरेंद्र मोदी को कांग्रेस की तन्क़ीदों का सामना है।
कांग्रेस का कहना बजा ही नज़र आता है कि बी जे पी के वज़ारत-ए-उज़मा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अरसा-ए-दराज़ से यूपी ए की क़ियादत वाली हुकूमत में बद उनवानियों के मौज़ू को बराबर उठाते रहे हैं और यू पी ए हुकूमत पर तन्क़ीद का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देते लेकिन ख़ुद उन्होंने क्या किया ? ख़ुद अपनी रियासत में अरसा-ए-दराज़ से खाली लोक आयुक्त की जायदाद पर तक़र्रुरी से क़ासिर हैं।
ये मुआमला उस वक़्त मज़ीद मुतनाज़ा होगया था जब जस्टिस (रीटायर्ड) आर ए महित को 25 अगस्त 2011 को रियासती हुकूमत से मुशावरत किए बगैर गवर्नर ने लोक आयुक्त मुक़र्रर करदिया था जिस से एक नई क़ानूनी कशाकश पैदा होगई और मुआमला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा जहां कोर्ट ने भी गवर्नर के फैसला को बरक़रार रखा।
मज़ीद एक तनाज़ा उस वक्त पैदा हुआ जब जस्टिस महित ने जारिया साल अगस्त में अपने ओहदा का जायज़ा हासिल करने से इनकार करदिया था जिस के लिए उन्होंने अपनी तक़र्रुरी पर पैदा हुए क़ानूनी कशाकश का हवाला दिया था और कहा था कि हुकूमत ओहदा की अफादियत से बे परवाह है।